गृहलक्ष्मियों के हाथ खुशहाली का खजाना, पेश कर रहीं आत्मनिर्भरता की मिसाल
लोहरदगा जिले की 36 महिला मंडलों की सदस्य अपने-अपने आजीविका महिला समूहों के माध्यम से गांवों में मिनी बैंक चला रही हैं।
राजेश प्रसाद गुप्ता, लोहरदगा। गृहस्थी संभालने वाली महिलाओं में बचत की प्रवृत्ति जन्मजात होती है। अपनी जमापूंजी की गांठ खोल कर सदियों से वे परिवार को बुरे वक्त से उबारती रही हैं। झारखंड में महिलाओं का यह नैसर्गिक गुण अब बड़े फलक पर आकार लेता दिख रहा है। लोहरदगा जिले की 36 महिला मंडलों की सदस्य अपने-अपने आजीविका महिला समूहों के माध्यम से गांवों में मिनी बैंक चला रही हैं। मिनी बैंक से 36 पंचायतों की महिलाओं को पैसे के लेन-देन में काफी सहूलियत हो गई है। अब वे बचत की छोटी-छोटी राशि को बड़ा कर अपने सपने साकार कर रही हैं।
महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर
भंडरा प्रखंड निवासी रीना लकड़ा पहले गरीबी की जिंदगी जी रही थीं, लेकिन अब वह प्रखंड के नौडीहा चौक में सखी मिनी बैंक चला रही हैं। रीना का कहना है कि पहले चंद पैसों के लिए दूसरे लोगों और परिजनों के भरोसे रहना पड़ता था। अब आजीविका महिला समूह से जुड़कर, सखी बैंक के ज़रिए 7-8 हजार रुपये महीने की कमाई हो जाती है। स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़ी महिलाओं को भी इसका फायदा मिला है। मधुमक्खी पालन, धान की कुटाई जैसे कामों के लिए उन्हें मिनी बैंक से आसानी से लोन मिल जाता है। स्वयंसेवी संस्था से जुड़ी महिलाएं भी आठ से दस हजार रुपये तक प्रति माह कमा रही हैं। उन्होंने बताया कि जेएसएलपीएस के माध्यम से जिले की सभी पंचायतों की कुशल महिला सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया था। जल्द ही जिले की सभी पंचायतों में मिनी बैंक खोले जाने की बात कही गई है।
वहीं, भौंरों पंचायत की खदीजा खातून अपने गांव सोरंदा में सखी मिनी बैंक चला रही हैं। उनका कहना है कि जेएसएलपीएस (झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी) महिला समूह के माध्यम से आज वह सखी बैंक की संचालिका बन गई हैं। इससे उनके जीवन में काफी सुधार हुआ है। पहले अपने खर्च के लिए पति से पैसे मांगने पड़ते थे, लेकिन अब वह खुद कमा रही हैं, जिससे पति को भी आर्थिक रूप से मदद मिलती है। सखी बैंक खोलने के बाद समाज में मान सम्मान भी काफी बढ़ गया है।
लोहरदगा के मसमानों महिला समूह के माध्यम से मिनी बैंक संचालित कर रहीं सुमी कुमारी कहती हैं कि कभी चंद पैसों को लेकर लाचार रहने वाली महिलाएं अब मिनी बैंक के माध्यम से दूसरों को ऋण मुहैया करा रही हैं। इसके साथ ही सरकार की जनधन योजना, बचत खाता, लक्ष्मी लाडली योजना, सहित पंचायत के विभिन्न आजीविका महिला समूहों द्वारा राशि का लेनदेन ऑनलाइन कर रही हैं।
शुरुआत में हुई थी परेशानी
सुमी कुमारी कहती हैं कि संचालन की शुरुआत में परेशानी आ रही थी। लोगों को गांव के मिनी बैंक में भरोसा नहीं होता था। लोग सिर्फ मिनी बैंक में अपना खाता चेक कराने ही आते थे, लेकिन अब लोग बेहिचक लेनदेन करते हैं। मिनी बैंक से खासकर वृद्धा-विधवा पेंशनर, राशन डीलरों को बैंक का चक्कर नहीं काटना पड़ता।
एक-दूसरे के जमा पैसे से ही चल रहा बैंक
लोहरदगा जिले में बैंक ऑफ इंडिया के सहयोग से अक्टूबर-2018 में 36 पंचायतों में मिनी बैंक खोले गए हैं। इसके बाद ग्रामीणों को अब पैसे के लेनदेन के लिए बैंक नहीं जाना पड़ता। इसके एवज में मिनी बैंक कर्मियों को बैंक ऑफ इंडिया के तरफ से एक लाख के ट्रांजेक्शन में 0.40 फीसद की दर से कमीशन मिलता है। महीने में प्रत्येक मिनी बैंक में लगभग 10 लाख तक का लेनदेन हो जाता है। इस तरह समूह को लगभग 5000 तक महीने का लाभ मिलता है। मिनी बैंक से जुड़ी सदस्यों का कहना है कि कमीशन मायने नहीं रखता, बल्कि अपने गांव-घर में पैसे का लेनदेन होने से बैंकों का चक्कर लगाने से मुक्ति मिली है यह देखकर अच्छा लगता है। जेएसएलपीएस ने मिनी बैंक के संचालन के लिए आठ माह तक अपनी ओर से 3000 हजार रुपये हर समूह को दिए। बैंक ने इन महिलाओं को बीसीए (बिजनेस कॉरस्पोंडेंट एजेंट) का दर्जा दिया है।
घर तक पहुंच रहा बैंक
महिला समूह की सदस्य अपने संगठन में राशि को जमा करने के लिए अब बैंक नहीं जातीं। खुद ही मिनी बैंक की सखी महिला संगठनों के साथ बैठक में लैपटॉप ले जाकर पैसा जमा और निकासी कराती हैं। इससे महिला समूह के सदस्यों के अलावा अन्य लोगों को भी पैसों के जमा और निकासी के लिए परेशान नहीं होना पड़ता। जिन लोगों का खाता बैंक में नहीं होता, मिनी बैंक उनका खाता भी खोल देता है। मिनी बैंक में एक-एक ग्राहकों के लेन-देन का हिसाब डेट, तारीख, आधार नंबर और फोन नंबर के साथ दर्ज कर खाता-बही मेनटेन किया जाता है। ग्रामीण महिलाओं को सखी बैंक से जोड़ा जा रहा है। इस वर्ष और भी महिलाओं को प्रशिक्षण देकर बैंक से जोड़ने का लक्ष्य है। गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना ही जिला प्रशासन का लक्ष्य है।
- आकांक्षा रंजन, उपायुक्त, लोहरदगा
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