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निजीकरण व श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ दिया धरना

निजीकरण व श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ माकपा व झारखंड राज्य किसान

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 May 2020 06:35 PM (IST)Updated: Fri, 22 May 2020 06:35 PM (IST)
निजीकरण व श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ दिया धरना
निजीकरण व श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ दिया धरना

संवाद सूत्र, चंदवा: निजीकरण व श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ माकपा व झारखंड राज्य किसान सभा (अभाकिस) ने संयुक्त रूप से घरना-प्रदर्शन किया। माकपा जिला सचिव सुरेन्द्र सिंह के आवास परिसर में शारीरिक दूरी का अनुपालन करते पार्टी नेताओं द्वारा प्रदर्शन किया गया। धरना में शामिल लोग सार्वजनिक उपक्रम एयरपोर्ट, कोयला खदान, बिजली का निजीकरण बंद करो, श्रम कानूनों में श्रमिक विरोधी संशोधन वापस लो आदि से संबंधित पोस्टर लिए हुए थे। ललन राम के नेतृत्व में आयोजित घरना-प्रदर्शन को संबोधित करते माकपा जिला सचिव सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि भाजपा नेतृत्व वाली नरेंद्र मोदी की सरकार अडानी, अंबानी समेत देश के पूंजीपति घरानों के हित में राष्ट्रीय संसाधनों और सार्वजनिक उपक्रमों एयरपोर्ट, कोयला खदान, बिजली का निजीकरण करने के लिए आमदा है। वैश्विक महामारी कोरोना के कारणकेन्द्र सरकार द्वारा इस तरह का निर्णय किसी भी ²ष्टिकोण से उचित नहीं है। आर्थिक पैकेज से लोगों को प्रत्यक्ष रूप से राहत नहीं मिलेगी अपितु उन्हें कर्ज की ओर धकेल दिया जाएगा। मध्यम वर्गों की सहायता के लिए सरकार ने इस पैकेज में किसी तरह का कोई प्रावधान नहीं होना सरकार की अदूरदर्शी नीति का परिचायक है। झाराकिस के जिलाध्यक्ष अयूब खान ने कहा कि केन्द्र की भाजपानीत सरकार दमनकारी बेरहम श्रम कानून लाए जाने की कोशिश में जुटी है। केन्द्र सरकार की तर्ज पर राज्य सरकारें श्रमिक वर्ग को गुलाम बनाने की साजिश रच रही है। केन्द्र की सबसे चितनीय स्थिति गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उड़ीसा, महाराष्ट्र, बिहार और पंजाब की हैं जहां लगभग सभी श्रम कानूनों को तीन साल के लिए निलंबित करने की कवायद जारी है। केन्द्र सरकार का अनुसरण करते हुए अन्य राज्य सरकारें भी इस दिशा में कदम उठा रही हैं। श्रम कानूनों में बदलाव निजीकरण की ओर बढ़ने का संकेत है। दैनिक कार्य आठ से बढ़ाकर बारह घंटे कर दिया गया है। कॉरपोरेट और बिल्डर्स के पक्ष में उतर प्रदेश सरकार एक झटके में 38 कानुनों को अप्रभावी बनाने की कोशिश में लगी है जो मानवाधिकारों के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है। धरना-प्रदर्शन के माध्यम से सार्वजनिक संम्पति को निजी हाथों में हस्तांतरित करने एवं श्रम कानूनों में बदलाव के फैसले पर विरोध जताया गया। प्रर्दशन के दौरान काम के 12 घंटे के प्रस्ताव को वापस लेने, छंटनी, वेतन भुगतान मे कटौती और सेवा शर्तों मे बदलाव को रोकने, सभी प्रवासी मजदूरों का नि:शुल्क घर वापसी, जरुरत मंदो को भोजन, आवास, चिकित्सा व रोजगार उपलब्ध करने, औद्योगिक तथा सड़क हादसों एवं घर लौटने के दौरान जान गवांने वाले शोक संतप्त परिवारों को उचित मुआवजा देने, अगले तीन महीने तक आयकर नहीं देने वाले सभी परिवारों के बैंक खाते में न्यूनयम साढ़े सात हजार प्रतिमाह व किसानों को राहत प्रदान करते हुए नकद राशि भेजने की मांग की गईं। मौके पर ललन राम, विभूति समेत अन्य मौजूद थे।

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