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आकाश ही छत, जमीन ही बिस्तर, ठंड में कट रही रात

उत्कर्ष पांडेय लातेहार ठंड के पांव पसारते ही सबसे ज्यादा दिक्कत गरीबों और बेघरों क

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 06:07 PM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 06:07 PM (IST)
आकाश ही छत, जमीन ही बिस्तर, ठंड में कट रही रात
आकाश ही छत, जमीन ही बिस्तर, ठंड में कट रही रात

उत्कर्ष पांडेय, लातेहार :

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ठंड के पांव पसारते ही सबसे ज्यादा दिक्कत गरीबों और बेघरों को हो रही है। इनके लिए आकाश ही छत है, जमीन ही बिस्तर। ठंड में ऐसे ही रात गुजर रही है। सरकारी महकमा चुप है। न कंबल बंट रहा है न अलाव की व्यवस्था हो रही है। प्रशासन तब सुध लेता है, जब ठंड जाने को होता है। अभी स्थिति यह है कि जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब तबके के लोग सर्दी की मार से बचने के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। न कंबल न जल रहा अलाव

सरकारी महकमे में यह उक्ति प्रचलित है कि योजनाएं गरीबों के लिए ही बनती हैं। लेकिन जिले में अभी तक इस वर्ग के लिए न तो कंबल वितरण किया गया है और न ही अलाव की व्यवस्था की गई है। गैरेज लेन चंदवा में फुटपाथ पर ही रोजाना रात को विश्राम करने वाले मजदूर चरका ने बताया कि पुराने कंबल के सहारे रोजाना रात को ठंड से चुनौती लेता हूं। लेकिन अभी तक प्रशासन ने हमारी फिक्र नहीं की है। चरका की तरह जिले के सभी प्रखंडों में ऐसे लोग हैं। जो रोजाना स्टेशन, बस स्टैंड व सड़कों के किनारे बेबसी में ठंड की रात गुजार रहे हैं।

रैन बसेरा हो तो गुजरे रात

जिले में किसी न किसी मुद्दे को लेकर राजनीतिक दलों व स्वयंसेवी संगठनों द्वारा आंदोलन किए जाते रहे हैं। लेकिन किसी ने कभी भी गरीबों के लिए सभी प्रखंडों में रैन बसेरा के लिए आवाज बुलंद नहीं की है। लिहाजा कई गरीब तेज ठंड के बीच जिदगी व मौत से जूझने को विवश हो रहे हैं। गरीब मजदूरों को राहत पहुंचाने के लिए जिले भर में 12 रैन बसेरा का निर्माण कराने की नितांत जरूरत है। लेकिन इस दिशा में पहल करने के लिए कोई आगे आने की जहमत लेना नहीं चाहता।

कई मानसिक दिव्यांगों भी बेहाल :

तेज ठंड के कारण गरीबों को तो परेशानी हो रही है। सबसे अधिक बुरा हाल मानसिक दिव्यांगों का है, जो फटे पुराने कपड़ों में भटकते हुए कचरों से खाना उठाकर अपने पेट की भूख मिटाने को विवश हो रहे हैं। हालांकि कुछ लोग ऐसे विक्षिप्तों पर रहम खाकर उन्हें कपड़े दे दते हैं। लेकिन ऐसे लोगों के इलाज के लिए कोई आगे नहीं आना चाहता। ऐसे में सड़क के किनारे ठंड से ठिठुरते हुए किसी विक्षिप्त की जान चली जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।


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