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समझ में आई ऑक्सीजन की कीमत

रविद्र नाथ कोडरमा कोरोना की पहली लहर में मौत का फीसद दूसरी लहर की तुलना में काफी

By JagranEdited By: Published: Mon, 07 Jun 2021 06:28 PM (IST)Updated: Mon, 07 Jun 2021 06:28 PM (IST)
समझ में आई ऑक्सीजन की कीमत
समझ में आई ऑक्सीजन की कीमत

रविद्र नाथ, कोडरमा : कोरोना की पहली लहर में मौत का फीसद दूसरी लहर की तुलना में काफी कम था। पहली लहर के दौरान उन लोगों की मौत हुई जो पहले से किसी न किसी बीमारी से पीड़ित थे। दूसरी लहर में संक्रमित होने वालों की संख्या काफी अधिक थी। केवल यही नहीं, मरने वालों का आंकड़ा भी काफी अधिक रहा। कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमित मरीजों में लंग्स इंफेक्शन के मामले अधिक आए। मरीजों में ऑक्सीजन के स्तर में कमी होने लगी। गंभीर रूप से बीमार मरीजों की संख्या इस कदर बढ़ी कि अस्पतालों में ऑक्सीजन व वेंटिलेटर वाले बेड कम हो गए। लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल रहे थे। लोग ऑक्सीजन सिलेंडर और कंस्ट्रेटर के लिए भटक रहे थे। लोग रांची व हजारीबाग के अस्पतालों में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर बेड के लिए फोन कर रहे थे। रांची में कई अस्पतालों में ऑक्सीजन वाले बेड के लिए रोज बीस हजार रुपये तक वसूला जा रहा था। हर कोई ऑक्सीजन के लिए परेशान था। तब लोगों को ऑक्सीजन की कीमत समझ में आने लगी।

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कृत्रिम ऑक्सीजन लेने के दौरान ब्लैक फंगस के हुए शिकार :

झुमरीतिलैया निवासी रूपेश गुप्ता कोविड 19 से संक्रमित हुए थे। उन्हें डोमचांच स्थित कोविड केयर सेंटर में भर्ती कराया गया था। बाद में हालत बिगड़ने पर कोविड हास्पिटल राज नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया। रूपेश के दोस्त अमर गुप्ता ने बताया कि उन्हें लगातार ऑक्सीजन दिया जा रहा था। उनका ऑक्सीजन लेवल 70 तक चला गया था। वहां हालत में सुधार नहीं होने लगा तो वह उसे निजी अस्पताल में ले गए। बाद में उनकी हालत में सुधार हुआ और वह ठीक होकर घर आ गए। करीब तीन-चार दिन बाद उनकी आंख के नीचे काले निशान बन गए। इस पर उन्होंने दंत चिकित्सक को दिखाया। वहां से इलाज के बाद भी सुधार नहीं होने पर उन्हें रांची ले जाया गया। वहां डॉक्टर ने इलाज के दौरान बताया कि वह ब्लैक फंगस के शिकार हुए हैं। उन्होंने बताया कि ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी के कारण इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाले सिलेंडर का भी मरीजों के लिए इस्तेमाल किया गया था। डॉक्टरों ने बताया कि इसी कारण वह ब्लैक फंगस के शिकार हुए है। कोडरमा जिले के लिए ब्लैक फंगस का यह पहला मामला है। अमर ने बताया कि ब्लैक फंगस से इलाज के दौरान अब तक करीब आठ लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। अभी दो-तीन लाख रुपये की और जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें प्रकृति मुफ्त ऑक्सीजन देती है, इसलिए इसकी कीमत नहीं समझ में आती। यह ऑक्सीजन प्राकृतिक होने के साथ पूरी तर शुद्ध होता है। वहीं जब हम कृत्रिम ऑक्सीजन लेते हैं तो काफी महंगा होने के साथ ब्लैक फंगस जैसी बीमारियां भी साथ लेकर आती है। फोटो-11

जीने के लिए शुद्ध हवा सबसे जरूरी :

चंदवारा निवासी विजय मोदी की तबीयत खराब हो गई थी। उन्होंने मामूली बुखार समझकर दवा खा लिया। दो-तीन दिन बाद उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी। इसके बाद उन्हें डोमचांच स्थित कोविड केयर सेंटर में भर्ती कराया गया। वहां उन्हें ऑक्सीजन पर रखा गया। वह बताते हैं कि वहां उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ। इसके बाद उसे एक अन्य अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया। वहां ऑक्सीजन का स्तर 71 पर चला गया था। इसके बाद भी ऑक्सीजन के स्तर में सुधार नहीं हुआ तो समझ में नहीं आने लगा कि क्या करें। इसके बाद प्रवीण मोदी बंटी की मदद से दुर्गापुर स्थित निजी अस्पताल में भर्ती हुए। वहां हालत में सुधार हुआ। वह बताते हैं कि एक बार को लगा था कि जान ही नहीं बचेगी। अब उन्हें ऑक्सीजन की कीमत समझ में आ रही है। जीने के लिए शुद्ध हवा ही सबसे जरूरी है।


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