बंद पड़ी हैं अभ्रक की 800 खदानें, फिर कहां से हो रहा है 300 करोड़ का कारोबार
1980 में वन सुरक्षा अधिनियम लागू होने के बाद में अन्य कारणों से जंगल के बाहर की खदानें बंद कर दी गईं। बावजूद इसके देश-दुनिया में झारखंड से अभ्रक की सप्लाई जारी है।
अनूप कुमार, कोडरमा। क्या आपको विश्वास होगा कि बिना खदान के भी खनन हो सकता है, लेकिन झारखंड में ऐसा हो रहा है। दरअसल, यहां बंद पड़ी 800 खदानों से अवैध तरीके से अभ्रक निकाला जा रहा है। थोड़ा-बहुत भी नहीं, इतना कि सालभर में करीब 300 करोड़ से ज्यादा का इसका कारोबार है। इसकी सप्लाई चीन, जापान, अमेरिका, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया और खाड़ी देशों में धड़ल्ले से की जा रही है।
झारखंड से अभ्रक की सप्लाई जारी
झारखंड के कोडरमा, गिरिडीह और इनसे सटे बिहार के नवादा जिले में माइका (अभ्रक) की लगभग 800 छोटी-बड़ी खदानें थीं। 1980 में वन सुरक्षा अधिनियम लागू होने के बाद जंगली क्षेत्र और बाद में अन्य कारणों से जंगल के बाहर की खदानें बंद कर दी गईं। बावजूद इसके देश-दुनिया में झारखंड से अभ्रक की सप्लाई जारी है। इस बारे में जब पड़ताल की गई तो पता चला कि खदानें तो अब भी बंद हैं, मगर खनन जारी है। अब इन सभी खदानों में अवैध खनन हो रहा है।
प्रतिवर्ष दो लाख टन माइका का निर्यात
धंधा इतना बेरोकटोक चल रहा है कि प्रतिवर्ष यहां से दो लाख टन माइका का निर्यात विदेश में होता है। इसका सालाना टर्नओवर 300 करोड़ रुपये तक का है। चूंकि कारोबार पूरी तरह अवैध तरीके से किया जा रहा है, इस कारण सरकार को न खनन रॉयल्टी मिलती है और न सेस व कस्टम ड्यूटी। पड़ताल करने पर पता चला कि पहले इस कारोबार पर नक्सलियों का कब्जा था। नक्सली कमजोर पड़े तो माफिया-अफसर गठजोड़ इस धंधे पर काबिज हो गया है।
चीन है सबसे बड़ा खरीदार
पूरे विश्व में कोडरमा के मॉस्को व्हाइट रूबी माइका की डिमांड है, जो कोडरमा, गिरिडीह व बिहार के नवादा जिले में पाया जाता है। अभी इस इलाके में उत्पादित माइका का 60 फीसद माल चीन जाता है। इसके अलावा जापान, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया और अमेरिका समेत कई खाड़ी देश भी इसके खरीदार हैं।
तेल कुओं तक में होता है उपयोग
अभ्रक का सबसे ज्यादा उपयोग पिगमेंट (वर्णक) बनाने में होता है, जो कार पेंट में उपयोग किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इलेक्ट्रोड के रूप में होता है। सौंदर्य प्रसाधन में भी इसका कुछ उपयोग होता है। तेल कुओं की ड्रीलिंग में भी इसके पाउडर का उपयोग होता है।
माइका स्क्रैप के सहारे कारोबार
माइका के अवैध कारोबार को वैधानिक मान्यता देने लिए इसके कारोबारियों ने माइका स्क्रैप का सहारा लिया है, जिसे स्थानीय बोलचाल की भाषा में ढिबरा कहते हैं। तर्क दिया जाता है कि खदानों के बाहर पूर्व में खनन के दौरान जमा हुए कचरे के ढेर से स्थानीय मजदूर माइका के छोटे-छोटे टुकड़े चुनकर लाते हैं। इसी ढिबरा का कारोबार हो रहा है। इस तरह के माइका स्क्रैप का कारोबार कानूनन वैध है और इस तरह के माइक (दो इंच से छोटे टुकड़े) पर कोई टैक्स भी लागू नहीं होता है।
सरकार बना सकती है कानून
2017 से पहले माइका मेजर मिनरल में आता था। 2017 के बाद केंद्र सरकार ने कई खनिजों के साथ इसको भी माइनर मिनरल में शामिल कर दिया। अब इसके व्यापार के संबंध में राज्य सरकार कानून बना सकती है, लेकिन अभी तक उसने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। जंगल की खदानों को लीज पर देने के लिए इलाके को गैर अधिसूचित क्षेत्र घोषित किए जाने समेत नियमों में भी कुछ बदलाव भी करने होंगे।
सरकार माइका उद्योग को पुनर्जीवित करने की हर संभावना पर विचार कर रही है। विभाग की योजना कुछ माइका ब्लॉक की नीलामी करने की है। वन भूमि से बाहर की कुछ खदानों की लीज पर देने की प्रक्रिया चल रही है।
-मिहिर सलकर, खनन पदाधिकारी, कोडरमा
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