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बगैर उर्दू शिक्षकों के चल रहा है उर्दू स्कूल, पढ़ाई से वंचित रह जा रहे बच्चे

तोरपा प्रखंड क्षेत्र में दो उर्दू स्कूल है। संयोग से दोनों ही स्कूल में उर्दू के एक भी शिक्षक नहीं हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 31 Mar 2021 07:25 PM (IST)Updated: Wed, 31 Mar 2021 07:25 PM (IST)
बगैर उर्दू शिक्षकों के चल रहा है उर्दू स्कूल, पढ़ाई से वंचित रह जा रहे बच्चे
बगैर उर्दू शिक्षकों के चल रहा है उर्दू स्कूल, पढ़ाई से वंचित रह जा रहे बच्चे

तोरपा : तोरपा प्रखंड क्षेत्र में दो उर्दू स्कूल है। संयोग से दोनों ही स्कूल में उर्दू के एक भी शिक्षक नहीं हैं। एक स्कूल तपकरा में राजकीयकृत उर्दू मध्य विद्यालय तपकरा है, जहां 61 बच्चे पढ़ते हैं। दूसरा स्कूल रोडो में है राजकीयकृत उर्दू मध्य विद्यालय रोड़ो, जहां 80 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। सभी मुस्लिम समुदाय के बच्चे हैं, लेकिन इनका दुर्भाग्य है कि उर्दू स्कूल में एक भी उर्दू के शिक्षक नहीं है। दोनों विद्यालयों का संचालन उर्दू स्कूलों के नियमानुसार ही होता है। उर्दू स्कूल के कारण यहां शुक्रवार को साप्ताहिक छुट्टी रहती है। स्थानीय प्रतिनिधियों ने कई बार प्रस्ताव पास कराकर यहां उर्दू शिक्षकों की बहाली की मांग की है। लेकिन शिक्षकों की पदस्थापना नहीं की गई। ऐसे में यहां के मुस्लिम समुदाय के बच्चे और अभिभावक खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। जबकि इस स्कूल में सभी बच्चे उर्दू पढ़ने वाले हैं। पहली कक्षा से लेकर आठवीं तक पढ़ने वाले स्कूल के बच्चों को उर्दू शिक्षक नहीं रहने का खामियाजा उठाना पड़ रहा है। शिक्षक नहीं रहने के कारण बच्चों को उर्दू शिक्षा से वंचित रहना पड़ रहा है। ऐसा नहीं है कि शिक्षा विभाग को इसकी जानकारी नहीं है। जानकारी रहने के बावजूद भी यहां उर्दू शिक्षकों की पदस्थापना नहीं करना कहीं न कहीं विभाग के उदासीन रवैये को दर्शा रहा है।

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झारखंड बनने के बाद नहीं हुई पदस्थापना

तपकरा व रोड़ो स्कूल 1932 से संचालित है, जहां तत्कालीन बिहार राज्य के समय तक उर्दू शिक्षक बहाल थे। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से उक्त विद्यालय में उर्दू शिक्षक की बहाली नहीं हो पाई है। हालांकि, रोड़ो स्कूल में 2004 तक एजाज रसूल नाम के शिक्षक थे, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वहीं, तपकरा स्कूल में भी 2006 से 2016 तक एक पारा शिक्षक इमरोज अंसारी थे, जो उर्दू पढ़ाते थे। बाद में उन्हें सरकारी नौकरी मिली तो वे भी रांची चले गए। उनके जाने के बाद से अब तक कोई भी उर्दू शिक्षक की बहाली नहीं हो पाई है। दोनों स्कूल में दो-दो शिक्षिका कार्यरत है। दोनों ही उर्दू नहीं जानते है।

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रविवार को लेनी पड़ती है छुट्टी

तपकरा स्कूल की प्राचार्या आभा तोपनो कहती है कि उर्दू स्कूल के कारण यहां शुक्रवार को छुट्टी रहती है। लेकिन हमारे अधिकांश पर्व-त्योहार रविवार को ही रहता है। ऐसे में हमें पर्व त्योहार के लिए छुट्टी लेना पड़ता है। उसमें भी दोनों शिक्षिका को एक साथ छुट्टी नहीं मिल पाती है। दोनों के एकसाथ छुट्टी लेने पर स्कूल में पढ़ाने के लिए कोई भी शिक्षक उपलब्ध नहीं रहेगा।

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उर्दू के साथ सरकार कर रही भेदभाव

राजकीयकृत उर्दू मध्य विद्यालय के अध्यक्ष तैयब अंसारी ने कहा कि स्थानीय उर्दू विद्यालय में उर्दू शिक्षक की पदस्थापना नहीं करना इस भाषा के साथ अन्याय है। शायद सरकार उर्दू विषय को ही समाप्त करना चाहती है। हम लोगों ने कई बार उपायुक्त को आवेदन देकर शिक्षक के पदस्थापना की मांग की। साथ ही अगर उर्दू शिक्षक की बहाली नहीं हो रही है, तबतक कोई उर्दू जानकर को ही रखने की बात भी कही गई। लेकिन अभिभावकों को आश्वासन के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ। बच्चे उर्दू जानना चाहते है, लेकिन शिक्षक नहीं रहने के कारण मन मार कर रह जाते है।


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