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क्षेत्र का पिछड़ापन व पलायन होगा मुख्य चुनावी मुद्दा

खूंटी विधान सभा चुनाव की नामांकन प्रक्रिया अंतिम दौर में है। 21 नवंबर को नामांकन वापसी का समय समाप्त होने के बाद चुनाव मैदान में डटे प्रत्याशियों के बीच चुनाव चिह्न आवंटित कर दिए जाएंगे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 01:15 AM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2019 06:16 AM (IST)
क्षेत्र का पिछड़ापन व पलायन होगा मुख्य चुनावी मुद्दा
क्षेत्र का पिछड़ापन व पलायन होगा मुख्य चुनावी मुद्दा

जागरण संवाददाता, खूंटी : विधान सभा चुनाव की नामांकन प्रक्रिया अंतिम दौर में है। 21 नवंबर को नामांकन वापसी का समय समाप्त होने के बाद चुनाव मैदान में डटे प्रत्याशियों के बीच चुनाव चिह्न आवंटित कर दिए जाएंगे। इसके साथ ही चुनाव प्रचार का दौर प्रारंभ हो जाएगा।

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यूं तो भगवान बिरसा मुंडा की धरती है खूंटी। इसने वह दौर भी देखा है, जब खुलेआम चुनाव बहिष्कार का आह्वान होता था। न कहीं किसी राजनीतिक दल का बैनर पोस्टर और न ही चुनाव प्रचार। एक खास दल के लावा अन्य सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों और उनके समर्थकों की इंट्री बंद। खैर, अब स्थिति बदल चुकी है। जिले में नक्सलवाद और उग्रवाद की कमर लगभग टूट चुकी है। इसलिए आसन्न विधानसभा चुनाव में नक्सलवाद या उग्रवाद कोई चुनावी मुद्दा नहीं बन सकता। हां, इतना तय है कि विकास, पलायन व बेरोजगारी जैसी बुनियादी समस्याएं चुनावी मुद्दा बनेंगी। खूंटी जिले में विधानसभा की दो सीटें आती हैं खूंटी और तोरपा। दोनों ही जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। खूंटी विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व 20 वर्षों से वर्तमान ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा करते आए हैं। उन्होंने कभी हार का मुंह नहीं देखा। वहीं लगातार चार चुनावी जीत हासिल कर एक कीर्तिमान स्थापित किया। इस बार भी भाजपा ने उन्हें ही मैदान में उतारा है। जिले के लोग भी स्वीकार करते हैं कि नीलकंठ सिंह मुंडा के कार्यकाल में खूंटी का काफी विकास हुआ है। सड़क, पुल-पुलिया व बिजली सहित अन्य क्षेत्रों में विकास कार्य धरातल पर नजर आते हैं लेकिन रोजगारोन्मुखी योजनाओं के न रहने से बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है। फलस्वरूप लोग बड़ी संख्या में पलायन करने को विवश होते हैं।

तोरपा विधान सभा क्षेत्र में विकास की वो रफ्तार नहीं है, जो खूंटी विधान सभा की है। तोरपा सीट से झामुमो के पौलुस सुरीन दो सत्र से विधायक हैं, पर आरोप है कि उन्होंने क्षेत्र के विकास पर विशेष ध्यान नहीं दिया। उन पर एक खास समुदाय के लिए काम करने के आरोप भी लगते रहे हैं। स्थानीय लोगों की मानें, तो आजादी के बाद से अब तक तोरपा इलाके में न कोई कॉलेज खुला (एक अल्पसंख्यक कॉलेज को छोड़कर) और न ही युवाओं के रोजगार के संसाधन बढ़े। कृषि क्षेत्र भी सिचाई और अन्य बुनियादी समस्याओं से जूझता रहा। बिजली की भी वही स्थिति है। अब भी सैकड़ों गांवों के लोग ढिबरी युग में जी रहे हैं। कुछ गांवों में बिजली पहुंची तो है, पर जलती भगवान भरोसे ही। जानकार बताते हैं कि इस चुनाव में तोरपा विधानसभा क्षेत्र में विकास एक बड़ा मुद्दा होगा। तोरपा (सु) विधानसभा क्षेत्र


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