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कोरोना महामारी के कारण घाटे में तरबूज उत्पादक किसान

कोरोना महामारी में एक फिर जिले के तरबूज उत्पादक किसान घाटे में हैं। अपनी लागत भी नहीं मिलने के कारण किसान चितित हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 May 2021 07:04 PM (IST)Updated: Thu, 20 May 2021 07:04 PM (IST)
कोरोना महामारी के कारण घाटे में तरबूज उत्पादक किसान
कोरोना महामारी के कारण घाटे में तरबूज उत्पादक किसान

तोरपा : कोरोना महामारी में एक फिर जिले के तरबूज उत्पादक किसान घाटे में हैं। अपनी लागत भी नहीं मिलने के कारण किसान चितित हैं। कम लागत में अच्छी पैदावार के लिए किसानों ने नई तकनीक से तरबूज की नई वैरायटी लगाई थी, ताकि उन्हें मुनाफा अधिक हो। लेकिन लॉकडाउन के चलते किसानों को मुनाफा तो दूर लागत भी नहीं निकाल पा रही है। किसानों का कहना है कि कम से कम तीन रुपये किलो की दर से भी तरबूज बिक जाता है, तो उनकी लागत निकल सकती है। इस वर्ष तरबूज का उत्पादन भी भरपूर हुआ है, लेकिन लॉकडाउन के कारण फसल की बिक्री नहीं हो रही है और ना ही उचित भाव मिल रहे हैं। इससे तरबूज उत्पादक किसान निराश हैं। लगातार दूसरे साल तरबूज की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। यहां तीन से चार रुपये किलो में भी तरबूज खरीदने के लिए कोई तैयार नहीं है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल भी कोरोना के लॉकडाउन के कारण तरबूज की डिमांड कम हो गई थी। ऐसी स्थिति में जब किसानों को खरीदार नहीं मिले, तो उन्होंने खेत में ही पशुओं को तरबूज खिलाए थे। इस बार भी हाल कुछ इसी प्रकार है। कुछ महीने पहले तक कोरोना के केस काफी कम हो गए थे और ऐसे में किसी ने यह नहीं सोचा था कि गर्मी का मौसम आते ही संक्रमण के मामले बढ़ने लगेंगे और फिर से लॉकडाउन किया जाएगा। कोरोना से माहौल सामान्य होने पर किसानों ने तरबूज की खेती यह सोचकर की थी कि गर्मी में इसके अच्छे भाव मिलेंगे। अब इस बार फिर लॉकडाउन लगने से तरबूज उत्पादक किसानों के सामने समस्या खड़ी हो गई है।

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नहीं दिख रही आमदनी

प्रखंड में ऐसे कई किसान है जो एक एकड़ से भी अधिक भूमि पर तरबूज की खेती किए हैं। जिस वक्त खेती के लिए बीज बोया था उस वक्त उन्हें यह नहीं पता था कि फिर से पिछले साल की तरह किसानों को वही दिन देखना पड़ेगा। उकडीमाड़ी पंचायत के मुखिया एतवा भगत, गुतुहतु के बेंजामिन गुड़िया, विजय गुड़िया, दिनेश गुड़िया व केनित गुड़िया, जराटोली के सिटू डोडराय के अलावा ऐसे और भी कई किसान हैं, जिन्होंने एक एकड़ से भी ज्यादा खेती की है। इनका कहना है कि महंगा बीज खरीदकर फसल लगाई थी। उचित देखरेख से उत्पादन तो काफी अच्छा हुआ, लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में फसल घाटे का सौदा साबित हो रही है। बताया कि तरबूज कम भाव होने के बावजूद नहीं बिक रहा है। इसे तोड़ने के लिए भी मजदूर नहीं मिल रहे हैं। अगर ऐसा ही रहा तो अगले वर्ष तरबूज की खेती नहीं करेंगे।

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तीन रुपये किलो की दर से मिलेगा लागत मूल्य

प्रदान संस्था के तोरपा कलस्टर के एरिया कोआर्डिनेटर शशि कुमार सिंह ने बताया कि तोरपा क्षेत्र में ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां संस्था द्वारा तरबूज की खेती नहीं कराई हो। लेकिन कोविड के कारण इसका इस साल भी बाजार नहीं मिल पा रहा है। किसान तीन महीने पहले एक एकड़ में तरबूज की खेती के लिए 25 से 30 हजार रुपए खर्च किए, ताकि कम से कम डबल आमदनी हो सके, लेकिन डबल तो दूर उनका लागत मूल्य भी नहीं निकल रहा है। फिलहाल अगर तरबूज की कीमत तीच से चार रुपये किलो की दर से मिले तो किसानों का कम से कम पूंजी निकल जाएगी।

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खेतों में ही पड़ा है तरबूज

तोरपा प्रखंड में लगभग 650 एकड़ में तरबूज की खेती हुई है। इसमें सुंदारी, गुड़गुड़चुवां, बारकुली, डोड़मा, काजुरदाग, लेटेर, ईचा सहित कई जगहों में तरबूज की खेती हुई है। अबतक किसान लगभग 60 प्रतिशत तरबूज ही बेच पाए हैं। अभी भी 40 प्रतिशत तरबूज खेतों में बचे हुए हैं।


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