शराब के लिए बदनाम महुआ में है गुणों की खान
वैश्विक महामारी कोविड-19 कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के दौरान विभिन्न राज्यों व जिलों से हजारों की संख्या में प्रवासियों की घर वापसी हो रही है। सरकार का प्रयास है कि इन प्रवासियों को यहां रोजगार उपलब्ध कराया जाए। इसके लिए मनरेगा पर खास फोकस किया जा रहा है लेकिन मनरेगा के भरोसे सभी प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराना संभव नहीं लगता है।
खूंटी : वैश्विक महामारी कोविड-19 कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के दौरान विभिन्न राज्यों व जिलों से हजारों की संख्या में प्रवासियों की घर वापसी हो रही है। सरकार का प्रयास है कि इन प्रवासियों को यहां रोजगार उपलब्ध कराया जाए। इसके लिए मनरेगा पर खास फोकस किया जा रहा है, लेकिन मनरेगा के भरोसे सभी प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराना संभव नहीं लगता है। निश्चित ही मनरेगा से कुछ वर्ग लाभान्वित होंगे लेकिन कई वर्ग इसके लाभ से अछूते रह जाएंगे। ऐसे में सरकार को चाहिए कि जिले में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर उपयोग कर जिलास्तर पर रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जाएं।
जंगलों व पहाड़ों से आच्छादित खूंटी जिले में यूं तो सिचाई के भरपूर साधन उपलब्ध नहीं हैं लेकिन वनोपजों की उपलब्धता से इसकी प्रदेश में विशिष्ट पहचान रही है। सिचाई की समुचित व्यवस्था न होने के कारण कृषि कार्य मानसून पर ही निर्भर रहता है। ऐसे में वनोत्पाद लोगों के जीवन-यापन का एक बड़ा साधन है। जिले में लाह, महुवा व इमली आदि वनोत्पाद प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। वनोत्पाद को खरीदने के लिए सरकार द्वारा कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाए जाने एवं जिले में वनोत्पाद से संबंधित प्लांट की कमी के कारण ग्रामीणों को इसका समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिले में महुवा व इमली समेत अन्य वनोत्पाद के लिए कोई प्लांट नहीं है। सरकार यदि वनोत्पाद से संबंधित प्लांट लगाने की पहल करे तो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी आबादी के लिए रोजगार मुहैया हो सकता है।
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की पैदावार के अनुकूल है जिले की जलवायु
खूंटी जिले की जलवायु महुआ की पैदावार के लिए अनुकूल है। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों महुआ के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं। विशाल व फैलावदार महुआ के पेड़ों में प्रचुर मात्रा में महुआ के फूल व बीज लगते हैं। खास बात यह है कि महुआ के फूल के साथ-साथ इसके इसके बीज की भी अलग उपयोगिता है। यदि वैज्ञानिक पद्धति से महुआ की पैदावार करने की दिशा में सरकार कार्य करे और प्रोसेसिग प्लांट लगवाए तो रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध हो सकते हैं।
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महुआ की खासियत
यूं तो महुआ को मुख्यत: शराब के लिए जाना जाता है लेकिन महुआ अपने अंदर तमाम गुणों को समेटे हुए है। यह तो सबको पता है कि महुआ के फूल से शराब बनती है लेकिन यह कई बीमारियों में भी काम आता है। अभी भी ग्रामीण क्षेत्र में जड़ी-बूटी व घरेलू उपचार में महुआ का प्रयोग किया जाता है। कहते हैं कि जब छोटे बच्चे को निमोनिया होता है तो सूती कपड़े में महुआ की पोटली बनाकर आग से बच्चे की छाती में सेंक लगाने पर तुरंत आराम मिलता है। इसी प्रकार चोट लगने पर दर्द वाले स्थान पर महुआ से सेंक लगाने पर दर्द में राहत मिलती है। खून की कमी होने पर महुआ के फूल को पानी में भिगोकर उस पानी को पीने से शरीर में खून बढ़ता है। जाड़े के दिनों में महुआ के दो-तीन फूल गर्म दूध में डालकर सेवन करने से शरीर में ताकत व स्फूर्ति का संचार होता है। कहा जाता है कि यह काजू, किशमिश आदि मेवे से अधिक ताकत प्रदान करता है। कई क्षेत्रों महुआ से विभिन्न व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं। पलामू क्षेत्र में महुआ का पुआ व लड्डू भी बनाया जाता है, जो काफी पौष्टिक होता है। बताते हैं कि महुआ से गुड़ भी बनाया जाता है। महुआ के फूल से सैनिटाइज भी बनाया जाता है, जो वर्तमान में काफी महत्वपूर्ण हो गया है। वहीं इसके बीज से उन्नत किस्म का रिफाइन बनाया जाता है।
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कोई भी आदमी घर छोड़कर परदेश नौकरी करने नहीं जाना चाहता है लेकिन पेट की भूख व परिवार के पालन-पोषण के लिए घर छोड़ना पड़ता है। हम भी इसीलिए घर से तेलंगाना गए थे। लॉकडाउन होने पर वहां काम-धंधा तो बंद हुआ ही साथ ही धीरे-धीरे जमा पूंजी भी खर्च हो गयी। अंतत: मजबूर होकर वापस लौटना पड़ा। यदि यहीं पर कोई रोजगार मिल जाए तो कभी भी परदेश नहीं जाऊंगा।
-मंगरा उरांव, ग्राम कांटी महुआटोली, कर्रा, खूंटी
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सोचा था कि घर छोड़कर परदेश जाऊंगा तो वहां जो कमाई होगी उससे अपने परिवार का अच्छे से भरण-पोषण करूंगा लेकिन ऐसा हो नहीं सका। बड़े शहरों में यदि पैसा अधिक मिलता है तो खर्च भी अधिक होता है। ऐसे में पैसा जमा नहीं हो पाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। यदि अपने राज्य में ही अच्छा काम मिल जाए तो फिर कभी परदेश जाने के बारे में सोचूंगा भी नहीं। यहां परिवार के बीच रहकर काम भी करूंगा और पैसा भी जमा कर सकूंगा।
-मनीष डाडेल, ग्राम कसीरा, कर्रा, खूंटी
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अपने दो बच्चों का भविष्य बनाने के उद्देश्य से मैं मुंबई काम करने गया था। लॉकडाउन हो जाने के कारण वहां से वापस आना पड़ा। अब मैं कभी दोबारा मुंबई नहीं जाऊंगा। गांव में ही रहकर काम करूंगा। यदि सरकार यहीं पर स्वरोजगार के लिए ऋण उपलब्ध करा दे तो खटाल खोलकर यहीं रोजगार करूंगा। वैसे भी गौ सेवा हमारा पुश्तैनी धंधा है।
-सुनील उरांव, ग्राम बिनगोड़ी, कर्रा, खूंटी
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यहां कोई धंधा रोजगार न होने के कारण मैं मजबूरी में महाराष्ट्र के नासिक काम करने गया था। सोचा था कि कुछ वर्ष काम करने पर जब कुछ धन कमा लूंगा तो वापस आकर यहीं काम-धंधा करूंगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लॉकडाउन के दौरान वहां तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था और इसके चलते मुझे वापस आना पड़ गया। लेकिन, अब यह तय कर लिया है कि कुछ भी हो दोबारा घर छोड़कर नहीं जाऊंगा। यदि सरकार यहीं पर कुछ रोजगार की व्यवस्था कर दे तो बहुत अच्छा होगा।
-रतन स्वांसी, ग्राम बिनगोड़ी, कर्रा, खूंटी