देश की कोयला राजधानी में बिक रहा नारायणपुर का टमाटर
संवाद सहयोगी, नारायणपुर (जामताड़ा): कृषि कार्य से बेरोजगारी खत्म ही नहीं की जा सकती, बि
संवाद सहयोगी, नारायणपुर (जामताड़ा): कृषि कार्य से बेरोजगारी खत्म ही नहीं की जा सकती, बल्कि बल्कि समृद्धि भी हासिल की जा सकती है। ऐसा कर दिखाया है नारायणपुर प्रखंड के भेलाटांड़ ग्रामवासी आतस दास ने। वर्तमान में आतस दास के खेतों का टमाटर कोयला नगरी धनबाद में बिक रहा है। प्रतिदिन आतस के खेतों से दो तीन ¨क्वटल टमाटर फलते हैं और उसे धनबाद भेजा जाता है। उसने बताया कि धनबाद में थोक विक्रेताओं को 8 से 10 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से टमाटर देकर लौट आते हैं। आतस ने बताया कि इस वर्ष अभी तक वे 4 लाख रुपये के टमाटर धनबाद भेज चुके हैं। कहा कि टमाटर के बाद जेठुआ सब्जी की खेती करेंगे। इसमें कद्दू, करेला, खीरा, ¨भडी आदि शामिल होगी। सब्जियों को भी वह धनबाद में बेचेंगे।
-जसीडीह में लिया कृषि प्रशिक्षण : वर्ष 2014 उन्होंने देवघर के जसीडीह में कृषि से संबंधित प्रशिक्षण लिया था। प्रशिक्षण लेने के बाद घर वापस लौटे और खेती में लग गए। शुरू-शुरू में तो वे कम मात्रा में सब्जी लगाते थे और नारायणपुर के बाजार में बेचा करते थे। धीरे-धीरे ज्यादा पैमाने पर सब्जी की खेती करने लगे और इसे धनबाद ले जाकर बेचने लगे।
-उपायुक्त की पहल पर आसान हुआ कृषि कार्य: आतस दास ने बताया कि भेलाटांड़ में फरवरी-मार्च महीने में पानी की समस्या रहती थी। चैनपुर स्कूल में तीन वर्ष पूर्व जनता दरबार का आयोजन किया गया था। उक्त कार्यक्रम में गांव के लोग शरीक हुए थे तथा जनता दरबार में आए जिले के तत्कालीन उपायुक्त चंद्रशेखर से लोगों ने बताया था कि गांव का कमलिया तालाब बहुत महत्वपूर्ण है। अगर इस तालाब का जीर्णोंद्धार हो जाए, तो किसानों को लाभ होगा। डीसी ने आदेश पर पिछले वर्ष तालाब का जीर्णोंद्धार कार्य हुआ है। जीर्णोंद्धार होने के कारण तालाब में पानी अधिक रहने लगा और कृषि कार्य आसान हो गया। आतस की खेती देखकर गांव के अन्य किसान भी खेती से जुड़ने लगे हैं। गांव में खेती को बढ़ावा मिल रहा है। जेठ और बैशाख माह में भी भेलाटांड़ की खेतों में हरियाली रहती है। यहां टमाटर के अलावा विभिन्न प्रकार की सब्जी, ईख आदि की खेती बड़े पैमाने पर होती है। खास बात है कि यहां के किसान वर्मी कंपोस्ट का ही प्रयोग करते हैं। रासायनिक खाद का प्रयोग करने से बचते हैं। स्वयं खाद बनाकर उसका प्रयोग करते हैं।