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नाला के काजू बगानों से लिखी जा सकती रोजगार की नई इबारत

नाला (जामताड़ा) कोरोना संक्रमण व लॉकडाउन की वजह से विभिन्न राज्यों से प्रवासी मजदूरों क

By JagranEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 06:46 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 06:46 PM (IST)
नाला के काजू बगानों से लिखी जा सकती रोजगार की नई इबारत
नाला के काजू बगानों से लिखी जा सकती रोजगार की नई इबारत

नाला (जामताड़ा) : कोरोना संक्रमण व लॉकडाउन की वजह से विभिन्न राज्यों से प्रवासी मजदूरों के जामताड़ा पहुंचने का सिलसिला लगातार जारी है। इससे जिलेभर के गांव-गांव से शहर तक प्रवासियों का दबाव रोज बढ़ रहा है। प्रवासी मजदूरों की भारी संख्या में वापसी ने पूरे समाज को सोचने को विवश किया है कि रोजगार की स्थानीय संभावनाएं तलाशे जाएं ताकि घर-घर आत्मनिर्भरता बढ़ सके। अन्यथा हर हाथ को काम नहीं मिलेगा तो समाज में कई तरह की विसंगतिया उत्पन्न हो सकती हैं। इस जिले में कल-कारखाने का शुरू से अभाव रहा है। सरकार की मनरेगा योजना है तो उससे आपकी दाल-रोटी चल सकती है, अन्य आवश्यकताएं पूरी नहीं हो सकती। ऐसे में हर हाथ को काम देने के लिए क्षेत्र कुटीर उद्योग, कृषि कार्य आदि को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। नाला में काजू के पेड़ बहुतायत है। इसके लिए प्रोसेसिग प्लांट नाला में लग जाएं तो बेरोजगारी की समस्या काफी हद तक मिट सकती है।

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---पचास एकड़ में लगा है काजू का बगान : काजू के व्यापार की अपार संभावनाएं नाला प्रखंड क्षेत्र में है। अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करने से सरकार को भारी-भरकम राजस्व मिल सकता है। सैकड़ों बेरोजगार युवाओं व मजदूरों को रोजगार का अवसर मिलेगा। क्षेत्र के डाड़र मौजा में करीब पचास एकड़ जमीन पर हजारों काजू का पौधा है। नब्बे के दशक में सामाजिक वानिकी की ओर से वन विभाग ने इस वन क्षेत्र में पौधे लगाए थे। अब ये बड़े-बड़े पेड़ का रूप ले चुके हैं। इसके अलावा क्षेत्र के विभिन्न जगहों पर काजू के हजारों पेड़ हैं।

---राज्य बनने के बाद पहली बार हुई पहल : राज्य गठन के बाद 2010 में सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन ने इन बगानों की सैराती की। तत्कालीन उपायुक्त कृपानंद झा की पहल पर सैराती कराने तथा काजू बगान के विस्तार के लिए लोगों को जागरूक किया गया है। उनका सपना था कि नाला प्रखंड क्षेत्र को काजू नगरी के रूप में विकसित किया जाए। लेकिन उनके तबादले के साथ सारी पहल धरी की धरी रह गई। भले ही बाद में सैराती हुई पर प्रोसेसिग प्लांट की पहल नहीं हो पाई।

---प्लांट के लिए जमीन चिह्नित : पांच सालों में काजू-बागान की सैराती कराने के अलावा प्रोसेसिग मशीन लगाने के लिए प्रशासन ने फिर पहल शुरू की। वर्ष 2014 में उपायुक्त रह चुके रमेश कुमार दुबे ने काजू बगान के विकास व प्रोसेसिग यूनिट को लगाने के लिए जमीन चिह्नित कराई। फिर इसका प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया। पर उन्हें भी प्लांट लगाने में सफलता नहीं मिली।

---औने-पौने दाम में बिकता काजू : स्थानीय लोग कहते हैं कि काजू की प्रोसेसिग यूनिट लगने से काजू को आने पौने दाम पर बेचने से राहत मिलती। अच्छे किस्म के इस काजू को प्रोसेसिग कर स्थानीय बाजार समेत पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के विभिन्न शहरों में आसानी से खपत किया जा सकता है। प्रोसेसिग यूनिट में मजदूरों को पैकेटिग करने, एक-जगह से दूसरी जगहों में ले जाने पर सैकड़ों मजदूर व बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलता। इसके अलावा बागान से काजू को चुनने, मशीन तक पहुंचाने आदि में भी हाथ को काम मिलता।

---क्या कहते हैं प्रवासी मजदूर : लॉकडाउन में फैक्ट्री में काम बंद होने के बाद चेन्नई से लौटे हैं। रोजना चार सौ रुपये का रोजगार हो जाता था। क्षेत्र में भी रोजगार उपलब्ध हो जाए तो दूसरे प्रदेश क्यों काम करने जाएंगे। यहां सरकार काजू बगान पर ध्यान देती तो रोजगार भी मिल जाता और लोगों को कच्चे काजू के बदले गुणवत्ता युक्त काजू खाने को भी मिलता। काजू बगान के लिए प्रोसेसिग यूनिट लगाया जाए। ताकि रोजगार को बढ़ावा मिल सके।

सोमनाथ घोष, प्रवासी कुशल मजदूर, नाला।

---क्षेत्र में रोजगार के अभाव में पलायन करने को लेकर विवश थे। इसलिए चेन्नई गए थे। वहां पा‌र्ट्स बनाने की फैक्ट्री में काम करते थे। नाला में ही काम मिल जाए तो बाहर नहीं जाना पड़ेगा। काजू बगान का समुचित विकास किए जाने से रोजगार की कमी नहीं होगी। नाला को काजू नगरी के रूप में विकास करना एक सपना ही रह गया। अब भी सरकार सकारात्मक पहल करें तो रोजगार की कमी यहां नहीं होगी।

नित्यजीत घोष, कुशल प्रवासी मजदूर।

--- दूसरे प्रदेश में काम करना कौन चाहता है। नाला में ही रोजगार मिल जाए तो यहां एक भी युवक पलायन करने को विवश नहीं होंगे। एक फैक्ट्री यहां लगनी थी अब तक नहीं लगी। काजू बगान है, लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही है। यहां प्रोसेसिग प्लांट लगा दिया जाए तो इलाके की बदहाली दूर जाएगी पर सरकार का ध्यान ही नहीं है। चेन्नई में पांच सौ रुपये प्रतिदिन कमा लेते थे। यहां तो तीन सौ रुपया कमाने पर आफत है।

दीपक घोष, कुशल प्रवासी मजदूर।


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