विद्यागर ने उठाई थी नारी शिक्षा व विधवा विवाह कानून की आवाज
संवाद सूत्र करमाटांड़(जामताड़ा) पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की जयंती शनिवार को उनकी क
संवाद सूत्र, करमाटांड़(जामताड़ा): पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की जयंती शनिवार को उनकी कर्मस्थली यहां करमाटांड़ के नंदनकानन में मनाई जाएगी। इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से बगैर भीड़भाड़ के स्थानीय लोगों की मौजूदगी में उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी। वे उन्नीसवीं शताब्दी के बंगाल के प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक, अनुवादक, मुद्रक, प्रकाशक, उद्यमी और परोपकारी व्यक्ति थे। वे बंगाल के पुनर्जागरण के स्तंभों में से एक थे।
--बंगाल के मेदनीपुर में हुआ था जन्म : विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1820 को मेदिनीपुर में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्हें ईश्वरचंद्र को गरीबों और दलितों का संरक्षक माना जाता था। उन्होंने नारी शिक्षा और विधवा विवाह कानून के लिए आवाज उठाई और अपने कार्यों के लिए समाज सुधारक के तौर पर पहचाने जाने लगे, पर उनका कद इससे कई गुना बड़ा था। उनके बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था। संस्कृत भाषा और दर्शन में अगाध ज्ञान होने के कारण विद्यार्थी जीवन में ही संस्कृत कॉलेज ने उन्हें ''विद्यासागर'' की उपाधि प्रदान की थी। इसके बाद से उनका नाम ईश्वर चंद्र विद्यासागर हो गया था। कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की थी : ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की थी। उन्होंने इन स्कूलों को चलाने में पूरे खर्च की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली थी। स्कूलों के खर्च के लिए वह विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए बांग्ला भाषा में लिखी गई किताबों की बिक्री कर फंड जुटाते थे।
---अपने सेवाकाल में उन्होंने दर्जनों महिला विद्यालय खुलवाए : वर्ष 1855 ई. में जब उन्हें स्कूल-निरीक्षक बनाया गया तो उन्होंने अपने अधिकार-क्षेत्र में आने वाले जिलों में बालिकाओं के लिए स्कूल सहित अनेक नए स्कूलों की स्थापना की थी। उच्च अधिकारियों को उनका ये कार्य पसंद नहीं आया और अंतत: उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
----विधवा विवाह कानून पास कराया : उन्होंने विधवाओं के विवाह के लिए आवाज उठाई और उसी का नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 में पारित हुआ। उन्होंने खुद एक विधवा से अपने बेटे की शादी करवाई थी। उन्होंने बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। उनके इन्हीं प्रयासों ने उन्हें समाज सुधारक के रूप में पहचान दी। विधवा-पुनर्विवाह कानून बनवाकर महिलाओं को दूसरा जीवन देने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने 29 जुलाई 1891 में दुनिया को अलविदा कह गए।