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सोहराय पर मछली भात के साथ चला हड़िया चावल

पारंपरिक नृत्य का दौर रात भर चला फिर सुबह से लोग अनुष्ठान में जुट गए। सोहराय के तीसरे दिन मछली का शिकार हुआ।

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Jan 2021 07:42 PM (IST)Updated: Wed, 13 Jan 2021 07:42 PM (IST)
सोहराय पर मछली भात के साथ चला हड़िया चावल
सोहराय पर मछली भात के साथ चला हड़िया चावल

जामताड़ा : आदिवासी समाज का प्रमुख पर्व सोहराय को लेकर बुधवार को कहीं मछली शिकार तो कहीं हाकूकाटम रस्म तो कहीं बरद खूंटा का आयोजन किया गया। पारंपरिक नृत्य का दौर रात भर चला फिर सुबह से लोग अनुष्ठान में जुट गए। सोहराय के तीसरे दिन मछली का शिकार हुआ।

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सोहराय में आदिवासियों की परंपरा है कि पर्व के तीसरे दिन मछली का शिकार कर घर लाया जाता है तथा उसे स्वजनों व रिश्तेदारों के बीच सामूहिक भोज में उपयोग किया जाता है। मछली के अलावा हड़िया के साथ परिवार के सदस्य और रिश्तेदारों ने आनंद लिया। गुरुवार को त्योहार के अंतिम दिन आदिवासी समूह विभिन्न जंगली क्षेत्र में भ्रमण कर शिकार करेंगे। जिला मुख्यालय के आसपास गोपालपुर, दक्षिण बहाल, मेजिया, लाधना आदि गांव में उत्सवी माहौल देखा गया। उदयपुर के नायकी मेघनाथ ने बताया बुधवार को बच्चे, युवा तथा बुजुर्ग विभिन्न समूह में आसपास के जल स्त्रोतों में मछली का शिकार किए। पूर्वजों से ऐसी परंपरा चल रही है। बुधवार को रिश्तेदार तथा परिवार सदस्यों ने मछली के साथ पारंपरिक हड़िया का स्वाद लिया। बिदापाथर में रात तक रही बंदना की धूम

आदिवासी समुदाय का पांच दिवसीय त्योहार सोहराई बंदना को लेकर पुतुलजोड़, लखियाबाद, महुलबोना, लालुडीह, माधवा, बोनामहुल, सालपतड़ा, सुगनीवासा, लालूडीह, बोनामहुल सहित विभिन्न गांवों में उत्सवी माहौल रहा। बुधवार को चौथे दिन हाकूकाटम रस्म किया गया। हाकूकाटम में गांव के तालाब, जोरिया आदि में मछली मारी जाती है व रात को मंदिरा व मछली सेवन की प्रथा रही है। मंगलवार की रात को आदिवासी गांवों में महिला, पुरुष, बच्चे-सभी मादर की थाप जमकर नृत्य किया। यह सिलसिला देर रात तक चलता रहा। छोटी-छोटी बच्चियों ने भी सोहराई नृत्य में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। अंतिम दिन को सामूहिक रूप से लोग गांव से बाहर जाकर जंगल में शिकार करने की परंपरा निभाई जाएगी। नाला में मांदर की थाप पर थिरकीं महिलाएं

क्षेत्र में सोहराय पर्व को लेकर आदिवासी समुदाय के लोगों के बीच खुशी का माहौल है। क्षेत्र चालेपाड़ा, कालीपाथर, गाड़ाजोरिया आसन जुड़ी, सुंदर बाड़ी, घोलजोड़, घुसरूकाटा, मोरवासा, बालीचुड़, महेशमुंडा आदि वासी टोला, चकनयापाड़ा, नलहाटी आदि गांव व टोला में लोगों ने मांदर की थाप के साथ साथ नृत्य गीत के साथ पर्व की खुशियां बांटी। रात तक महिलाएं पारंपरिक नृत्य में रमी रही।

कुंडहित में बरद खूंटा का आयोजन

कुंडहित सहित आसपास आदिवासी बहुत गांवों में सोहराय की धूम मची हुई है। सोहराय के तीसरे दिन बुधवार को बरद खूंटा का आयोजन किया गया। चंद्रडीह गांव के नायकी बाबा गेड़ा सोरेन तथा अन्य ग्रामीणों के अनुसार सोहराय के तीसरे दिन खूंटों पूजा के मद्देनजर ग्रामीण युवक समूह बनाकर ढोल मांदर बजाते हुए गंव के प्रत्येक घर में जाकर गोहाल के पास नृत्य और गीत कर बैलों को जगाते हैं। इसके बाद गांव के बीच में खूंटा गाड़ा जाता है जिसके चारों ओर गोबर से लिपाई कर चावल गुड़ी से अल्पना बनाई जाती है। जब सभी घरों में बैलों का जगाने का कार्य हो जाता है तब गंव के नायकी बूढ़ी की अगुवाई में महिलाएं सज धज कर खूंटा की पूजा करतीं हैं। इसके बाद सभी घरों के बैल को खूंटा से बांधा जाता है। बांधने से पहले बैलों के सींग में तेल लगाकर उसे चिकना करते हैं। फिर दोनों सींगों के सहारे माथे पर धान की बालियां बाधी जाती है। फिर बैलों के गर्दन पर पीठा (चावल गुंडी का बना पकवान) बांध दिया जाता है। इसके बाद ग्रामीण खूंटा के चारों ओर जोरदार आवाज में ढोल मांदर आदि बजाते हैं। इनकी आवाज सुन कर बैल उत्तेजित होने लगते हैं। जब बैल जोश में उछलना कूदना शुरू करते हैं तब गांव के युवक बैलों के गले में बंधे पीठा को निकालने का प्रयास करते है। इस बीच पारंपरिक गीत-नृत्य चलता रहता है। ये रोमांचित आयोजन गांव-गांव हुआ। पर्व के चौथे दिन हाकूकाटम का आयोजन किया जाता है। इस दिन ग्रामीण सामूहिक रूप से मछली का शिकार करते हैं। पर्व के अंतिम दिन मकर संक्रांति के दिन सकरात का आयोजन होग। मौके पर नायकी गेड़ा सोरेन, मांझी हाराधन हांसदा, गुड़ित रामधन, प्रमाणिक सनातन मुर्मू, गुड़ित नरेन हांसदा, जोकमांझी रामधन हेंब्रम, ग्राम प्रधान पाड़ु हांसदा, आनंद सोरेन आदि थे।


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