फ्लोरोसिस व आर्सेनिकोसिस बीमारी पर लगएंगे रोक
जामताड़ा : पेयजल व भोजन से होने वाले फ्लोरोसिस व आर्सेनिकोसिस बीमारियों पर नियंत्रण के लिए सी
जामताड़ा : पेयजल व भोजन से होने वाले फ्लोरोसिस व आर्सेनिकोसिस बीमारियों पर नियंत्रण के लिए सीएस सभागार में गुरुवार को एक दिवसीय जिलास्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता सिविल सर्जन डॉ. बीके साहा ने की। उन्होंने कहा प्रशिक्षण से जानकारी लेकर गांव में जागरूकता कार्यक्रम कर लोगों को बीमारी से बचाव की जानकारी दें।
नोडल पदाधिकारी डॉ. डीके अखौरी ने स्वास्थ्य कर्मियों को फ्लोरोसिस व आर्सेनिकोसिस बीमारी फैलने के कारण, पहचान, लक्षण, उपचार व सावधानी की जानकारी दी। बताया कि पेयजल से दो प्रकार के फ्लोरोसिस बीमरी क्रमश: दंत फ्लोरोसिस व कंकालीय फ्लोरोसिस प्रभावी होती है। यदि नलकूप व कुएं के जल में 1.5 मिग्रा फ्लोराइड प्रति लीटर है और यदि ऐसे जल का उपयोग लंबे समय तक पीने व भोजन बनाने के लिए किया जाता है तो दंत व कंकालीय फ्लोरोसिस रोग हो सकता है। फ्लोरोसिस रोग में पहले दांतों पर पीले या या काले दाग दिखाई पड़ते हैं। दांत खुश्क व चॉक जैसे हो जाता है। इसके उपरांत दांत कमजोर हो जाता है ओर टूटने लगता है। इतना ही नहीं धीरे-धीरे हड्डियां भी कमजोर होना शुरू हो जाती है। हाथ, पैर, कंधा व रीढ़ की हड्डियां टेढ़ी हो जाती है। इन बीमारियों से बचाव के लिए पेय व खाद्य के रूप में उपयोग होने वाले पानी की जांच स्थानीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला में कराएं।
जलस्त्रोत की जांच साल में दो बार कराएं : कहा कि जलस्रोत की जांच नियमित यानि एक वर्ष में कम से कम दो बार जरूर कराएं। पीने व भोजन बनाने के काम में सार्वजनिक स्वास्थ्य तकनीकी प्रयोगशाला द्वारा आपूर्ति किये जल का उपयोग करें। जिला मलेरिया पदाधिकारी डॉ. एसके मिश्रा ने कहा कि ताजी सब्जियां, फल व दूध के उत्पादों को उचित मात्रा में खाएं। अगर कोई संदेह हो तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व जिला अस्पताल में चिकित्सक से परामर्श लें। संबंधित रोग का शीघ्र उपचार आरंभ करने पर रोग की पूर्ण समाप्ति संभव होता है।
पर्यवेक्षक मनोज कुमार ने बताया कि यदि नलकूप व कुएं के जल में 0.05 मिग्रा आर्सेनिक प्रति लीटर है और ऐसे पानी का नियमित उपयोग पेय व भोजन बनाने में करते हैं तो जीर्ण (पुरानी बीमारी) आर्सेनिकोसिस रोग उत्पन्न हो सकता है। आर्सेनिकोसिस रोग का मुख्य लक्षण हाथ, पैर समेत अन्य अंग में त्वचा पर सफेद या काले दाग का निशान होना। कमजोरी, थकान, मांसपेशियों में ऐंठन आदि है। इस रोग का समय पर इलाज नहीं कराने की स्थिति में त्वचा कैंसर हो सकता है। पानी जांच कर उपयोग से इन बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। प्रशिक्षण में जिला लेखा सहायक मनोज कुमार प्रजापति, राष्ट्रीय विद्यालय स्कूली कार्यक्रम के चिकित्सक डॉ. सत्यनारायण, डॉ. नमीता झा, डॉ. राम बाबू, डॉ. अर्चना साहा, मलेरिया तकनीकी पर्यवेक्षक रतनेश कुमार, एमपीडब्ल्यू मनोज तिवारी, बीटीटी रमेश कुमार, साथी सहिया राधिका देवी समेत स्वास्थ्य कर्मी शामिल थे।