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आजसू से पंगा व परिवारवाद नाला में भाजपा को ले डूबा

जामताड़ा विधानसभा चुनाव परिणाम निकलने के बाद रात गुजरते ही बाजी हारी पार्टी के कार्यकर्ता जोड़-घटाव में लग चुके हैं। बूथ वार मिले मतों को ढूंढा जा रहा है। कहां किस वर्ग के वोटरों से धोखा मिला का आंकलन किया जा रहा है। ऐसे में नाला विधानसभा सीट से महज 3353 मतों से हारी भाजपा के खेमे में मंथन में साढ़े तीन हजार मत कहां से लाने में चूक हुई पर जोर दिया जा रहा है। निष्कर्ष के तौर पर भगवा बिग्रेड की दिमाग में यही कौंध रहा है कि गठबंधन के नाम पर आजसू से पंगा व चुनावी प्रबंधन में संगठन की जगह परिवार का सिक्का ज्यादा चलने की वजह से नुकसान हुआ। अन्यथा इस सीट पर भाजपा अपनी साख बचा सकती थी। जबकि चुनावी प्रचार के नाम पर हवा बनाने यहां यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा शिवराज सिंह चौहान समेत कई दिग्गज पहुंच चुके थे।

By JagranEdited By: Published: Tue, 24 Dec 2019 08:17 PM (IST)Updated: Tue, 24 Dec 2019 08:17 PM (IST)
आजसू से पंगा व परिवारवाद नाला में भाजपा को ले डूबा
आजसू से पंगा व परिवारवाद नाला में भाजपा को ले डूबा

जामताड़ा : विधानसभा चुनाव परिणाम निकलने के बाद रात गुजरते ही बाजी हारी पार्टी के कार्यकर्ता जोड़-घटाव में लग चुके हैं। बूथ वार मिले मतों को ढूंढा जा रहा है। कहां किस वर्ग के वोटरों से धोखा मिला का आंकलन किया जा रहा है। ऐसे में नाला विधानसभा सीट से महज 3353 मतों से हारी भाजपा के खेमे में मंथन में साढ़े तीन हजार मत कहां से लाने में चूक हुई पर जोर दिया जा रहा है। निष्कर्ष के तौर पर भगवा बिग्रेड की दिमाग में यही कौंध रहा है कि गठबंधन के नाम पर आजसू से पंगा व चुनावी प्रबंधन में संगठन की जगह परिवार का सिक्का ज्यादा चलने की वजह से नुकसान हुआ। अन्यथा इस सीट पर भाजपा अपनी साख बचा सकती थी। जबकि चुनावी प्रचार के नाम पर हवा बनाने यहां यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, शिवराज सिंह चौहान समेत कई दिग्गज पहुंच चुके थे। भाजपा के बागी सह आजसू प्रत्याशी माधव ने 16739 मत बटोरा है। माधव ने झामुमो के विजयी प्रत्याशी रवींद्र नाथ महतो से काफी ज्याद चोट भाजपा प्रत्याशी सत्यानंद झा को ही दी। अन्यथा सीपीआइ के इस पुराने गढ़ में भगवा ध्वज फिर से दुबारा लहरा सकता था पर पर विधायकी की बाजी तीसरी बार झामुमो के रवींद्र नाथ के पाले में चली गई।

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भाजपा की हार की अहम वजहों में गिनाई जा रही है कि इसी लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने परंपरागत मतों के अलावा यादव व आदिवासी मतों के बूते मिली पैंतीस हजार की बढ़त नाला से ली थी पर इस चुनाव में यादव, दलित, आदिवासी मतों के बिखराव को नहीं रोक पाई। यादवों में पल्लव वर्ग के मतों में सीपीआइ के प्रत्याशी कन्हाई माल पहाड़िया ने सेंधमारी की। डॉ. विशेश्वर खां के समय इन्हीं यादवों के बूते सीपीआइ ने अपना अभेद दुर्ग चार-पांच दशक तक नाला को बनाए रखा था। इनमें केवट व दलित भी शामिल थे। वर्ष 2009 में भाजपा से यही सत्यानंद जीते थे तो इन तीनों वर्गो के वोटरों से भी उन्हें मजबूती मिली थी पर उस समर्थन को झा रोककर नहीं रख पाए। सरकार के प्रति नाराजगी भी नाला में भाजपा के खिलाफ गड्ढा खोदती गई। सीएम रघुवर दास एक वर्ष पूर्व यहां दो-दो सभा किए थे। उस सभा में उनके संशोधन से भी एक वर्ग उखड़ा हुआ था। ऊपर से बागी प्रत्याशी के तौर पर आजसू से माधव चंद्र महतो लड़े और पौने अठारह हजार वोट लाए। जबकि भाजपा 3353 मतों से शिकस्त खाई। संगठन की कमियों में गिनाई जा रही है कि चुनाव प्रबंधन की पूरी बागडोर प्रत्याशी के परिवार संभाल रखे थे। संगठन व समर्पित कार्यकर्ताओं में इसका गलत संदेश गया। कार्यकर्ता खुद जिम्मेदारी लेकर पूरे मन से चुनाव नहीं लड़े। अन्यथा साढ़े तीन हजार वोट रातों-रात बनाना मुश्किल कार्य नहीं होता।

पुराने कार्यकताओं में इस बात को लेकर रोष था कि नए कार्यकर्ता बनाने के चक्कर में पुराने को दरकिनार किया जा रहा था। चुनाव से जुड़े पार्टी के हर संसाधन पर परिवार का कब्जा रहा। प्रत्याशी के परिवार ही मुख्य रूप से चुनावी प्रबंधन की कमान थामे हुए थे। मतदान के पांच दिन पूर्व ही बात यहां तक बिगड़ चुकी थी कि जिलाध्यक्ष सुकुमुनी हेंब्रम खुद को चुनावी गतिविधियों से अलग कर चुकी थी। मतदान के दिन भी वो केवल अपने मोरबासा इलाके में ही रही। मतगणना के दिन यहां जिला मुख्यालय स्थित केंद्र में भी वो कहीं नहीं दिखाई पड़ी। जबकि जीत की राह बनाने को नाला पर बराबर संताल के प्रभारी सह उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री दान सिंह रावत, वरीय नेता देवेंद्र, जामताड़ा से भेजे गए प्रभारी सह संगठन मंत्री सुभाष प्रसाद समेत कई रणनीतिकार थे पर वे अहम कार्यकर्ताओं में घर की गई नाराजगी दूर नहीं कर पाए। नतीजतन जीत की बनी राह के मुकाम तक भाजपा थोड़े से फासले की लिए नहीं पहुंच पाई।

अब झामुमो प्रत्याशी रवींद्र नाथ महतो की तीसरी जीत की वजहों पर गौर करेंगे तो उनका निर्विवाद चेहरा सबसे बड़ा फैक्टर बना। पांच साल वे विधायक रहे फिर भी उनके खिलाफ एंटी इंकंवेंशी उनकी जीत का अवरोधक नहीं बन पाई। उन्होंने वोटरों में सबसे बड़े वर्ग यादव व आदिवासी मतों में बिखराव नहीं होने दिया। इन दोनों वर्गो का साठ फीसद से अधिक मत वो झामुमो के पक्ष में बटोरने में कामयाब रहे और जीत की राह खुद बनाते चले गए। जबकि उनके लिए स्टार प्रचारक में केवल हेमंत सोरेन ने ही तीन सभाएं की थी।

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2019 विस चुनाव में मिले मत :

झामुमो के रवींद्र नाथ महतो : 61,147

भाजपा के सत्यानंद झा : 57,794

सीपीआइ के कन्हाई चंद्र मालपहाड़िया : 21, 369

आजसू के माधव चंद्र महतो : 16,739

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2014 विस चुनाव :

झामुमो के रवींद्र नाथ महतो : 56,131

भाजपा के सत्यानंद झा : 49,116

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2009 विस चुनाव :

भाजपा के सत्यानंद झा : 38,119

झामुमो के रवींद्र नाथ महतो : 34,171

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2005 विस चुनाव :

झामुमो के रवींद्र नाथ महतो : 30,847

भाजपा के सत्यानंद झा : 29,725


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