कंडहित में 403 वर्षों की रथयात्रा की परंपरा टूटी
संस कुंडहित(जामताड़ा) कोरोना संक्रमण के खतरे की वजह से कुंडहित में इस वर्ष पिछले 40
संस, कुंडहित(जामताड़ा):
कोरोना संक्रमण के खतरे की वजह से कुंडहित में इस वर्ष पिछले 403 वर्षों से चली आ रही रथयात्रा की परंपरा टूट गई। इससे श्रद्धालुओं में मायूसी दिखी। रथ यात्रा निकली पर कुछ दूरी में ही उसे विराम दे दिया गया। मंगलवार की शाम को लोगों ने शारीरिक दूरी बनाकर भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाया। फिर रथ पर अपनी मौसी घर जाने को निकले। भगवान जगन्नाथ देव की रथ यात्रा के साक्षी बनने के लिए लोग एत्रित हुए।
परंपरा के अनुसार गाजे-बाजे और हरिनाम संकीर्तन के बीच कुंडहित मुख्यालय के माझपाड़ा तथा लोहारपाड़ा के दो-दो रथ एकसाथ दुर्गामंदिर से निकालकर मंदिर से कुछ दूर तक गए फिर वहीं यात्रा खत्म कर दी गई। एक रथ पीतल का, दूसरा कागज का था। रथयात्रा को देखने के लिए कुंडहित बाजार में बड़ी संख्या में लोग उमड़े थे। भगवान रथ की रस्सी खींच कर लोगों में पुण्य बटोरने की होड़ सी लग गयी। वहीं पूरी विधि- विधान से साथ भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा की पूजा अर्चना की गई। फिर प्रसाद बंटा। इसके पूर्व 402 सालों तक कुंडहित में रथयात्रा बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जाती रही है। न इस साल कोरोना वायरस के कारण प्रशासन की ओर से रथयात्रा व पर मेला आयोजन पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी। इस वजह से रथयात्रा कमेटी ने रथयात्रा का केवल नियम पूरा किया। कुंडहित के अलावे बनकाटी, नगरी एवं तुलसीचक, जनार्दनपुर गांव में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकली और पूजा-अर्चना की गई।