Move to Jagran APP

वाह उस्ताद नहीं वाह बोड़ाम बोलिये जनाब, जाकिर हुसैन को भी पसंद है यहां का तबला Jamshedpur News

जी हां यहां से तबला खरीदने झारखंड बिहार उत्तर प्रदेश बंगाल ओडिशा से लेकर दिल्ली और पंजाब तक के लोग आते हैं। उस्ताद जाकिर हुसैन को भी यहां का तबला पसंद है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 12:52 PM (IST)Updated: Mon, 10 Feb 2020 09:50 AM (IST)
वाह उस्ताद नहीं वाह बोड़ाम बोलिये जनाब, जाकिर हुसैन को भी पसंद है यहां का तबला Jamshedpur News
वाह उस्ताद नहीं वाह बोड़ाम बोलिये जनाब, जाकिर हुसैन को भी पसंद है यहां का तबला Jamshedpur News

हुनर

loksabha election banner
  •  पूर्वी सिंहभूम के बोड़ाम प्रखंड के आंधारझोर में 200 वर्षों से बन रहे पारंपरिक वाद्ययंत्र
  • दूर-दूर तक सुनाई देती है यहां के ढोल, नगाड़ा, मांदर, मृदंग, तबला, ताशा और  ड्रम की धमक

जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। पूर्वी सिंहभूम, झारखंड स्थित बोड़ाम प्रखंड का आंधारझोर गांव वाद्ययंत्रों के लिए पूरे देश में मशहूर है। जिला मुख्यालय जमशेदपुर से करीब 20 किमी दूर इस गांव में ढोल, नगाड़ा, मांदर, मृदंग, तबला, कीर्तन खोल, नाल, सिंगबाजा, डमरू, बच्चों के लिए ढोलकी, ताशा, साइड ड्रम, रेगड़े, भांगड़ा ढोल जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्र बनते हैं। देशभर के शहरों में यहां के वाद्ययंत्रों की गूंज सुनाई देती है।

वाद्ययंत्रों की खासियत ऐसी कि तबले पर सधे हाथों की मस्त थाप पर मोहित होकर जब संगीतप्रेमी वाह उस्ताद बोल उठते हैं, उस समय उस्ताद के मन में वाह बोड़ाम चल रहा होता है। जी हां, यहां से तबला खरीदने झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, ओडिशा से लेकर दिल्ली और पंजाब तक के लोग आते हैं। तबला बनाने के माहिर मेघनाथ रूहीदास बताते हैं कि उस्ताद जाकिर हुसैन से लेकर बड़े-बड़े तबलावादकों को यहां का तबला पसंद है। यहां से तबला मंगाने के लिए ये उस्ताद एक-डेढ़ माह पहले फोन पर ऑर्डर देते हैं, जिसे उनके शिष्य आकर ले जाते हैं। रूहीदास बताते हैं कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि इतने प्रसिद्ध लोग हमारे यहां के तबले के मुरीद हैं। पंडित किशन महाराज भी यहां से तबला मंगवाते थे।

पुरुष-महिला मिलकर बनाते हैं साज 

आंधारझोर में वाद्ययंत्र बनाने का सिलसिला करीब 200 वर्ष से चल रहा है। इस कुटीर उद्योग को शीर्ष पर पहुचाने में यहां पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी अहम भूमिका निभाती रही हैं। पुरुष वाद्य यंत्रों के लिए लकड़ी काटने-तराशने और चमड़ा साफ करने वचढ़ाने-कसने का काम करते हैं, जबकि महिलाएं छोल, नगाड़े, तबले, ताशा और अन्य गाजे-बाजे को सुंदर पेंटिंग के जरिए आकर्षक बनाती हैं। मधुर सुरों के साथ जुगलबंदी कर लोगों के दिलों के तार झंकृत करने वाले साज की आवाज में बोड़ाम के लोगों की कारीगरी भी घुली रहती है। सुर-संगीत को ऊंचाई देने के यंत्र बनाने का हुनर यहां सबके पास है। यही कारण है कि गांव का लगभग हर आदमी वाद्ययंत्र बनाने में माहिर है।

नीम-बबूल के तबले होते हैं उम्दा 

मेघनाथ बताते हैं कि कुछ वाद्ययंत्रों का निर्माण लकड़ी से होता है, जबकि कुछ मिट्टी और लोहे से भी बनाए जाते हैं। वाद्ययंत्रों के निर्माण में शीशम, आम, कटहल, नीम आदि की लकड़ी ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। वैसे नीम और बबूल से बने तबले उम्दा होते हैं। जाकिर हुसैन व किशन महाराज समेत कई तबला वादक इसी की मांग करते हैं।  

इलेक्ट्रॉनिक वाद्ययंत्रों ने तोड़ी कमर 

एक समय था जब तबला, ढोलक, नाल की इतनी मांग होती थी कि बोड़ाम के कारीगरों को सोने-खाने तक की फुर्सत नहीं मिलती थी, अब ऐसा नहीं है। 10-15 साल में इलेक्ट्रॉनिक वाद्ययंत्रों के बाजार ने इस उद्योग की कमर तोड़ दी है। उनके परिवार के बच्चे और युवा भी पढ़-लिखकर दूसरे रोजगार में जा रहे हैं। गांव में लगभग 100 परिवार हैं, जो पहले इसी से आजीविका चलाते थे। अब तो उन्हें तबला बेचने के लिए हर रविवार को जमशेदपुर में अस्थायी दुकान सजाना पड़ता है। बावजूद नाम कायम है और तबले के शौकीन कई लोग इनके उत्पाद खरीदने को पहुंचते हैैं। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.