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झारखंड के इस गांव की महिलाएं सिर्फ हल्दी की खेती कर कमाती हैं लाखों रूपये

अमूनन झारखंड में धान की खेती को प्राथमिकता दी जाती है लेकिन झारखंड का एक गांव ऐसा भी है जहां हल्दी की खेती को प्राथमिकता दी जाती है। यह गांव हल्दी की खेती में आत्मनिर्भर है। यह गांव सरायकेला-खरसावां जिले के कुचाई प्रखंड में है।

By Vikram GiriEdited By: Published: Sun, 22 Nov 2020 10:14 AM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 08:47 AM (IST)
झारखंड के इस गांव की महिलाएं सिर्फ हल्दी की खेती कर कमाती हैं लाखों रूपये
झारखंड के इस गांव की महिलाएं सिर्फ हल्दी की खेती कर कमाती हैं लाखों रूपये। जागरण

जमशेदपुर (वेंकटेश्वर राव) । अमूनन झारखंड में धान की खेती को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन झारखंड का एक गांव ऐसा भी है, जहां हल्दी की खेती को प्राथमिकता दी जाती है। यह गांव हल्दी की खेती में आत्मनिर्भर है। यह गांव सरायकेला-खरसावां जिले के कुचाई प्रखंड में है। इस गांव का नाम सीताडीह है। यह गांव सरायकेला-खरसवां जिले के कुचाई प्रखंड के गोमियाडीह पंचायत में स्थित है। गांव की महिलाएं पारंपरिक रुप से हल्दी की खेती करते हैं। उसके बाद इसे ढेंकी (पीसने का पारंपरिक यंत्र) में पीसा जाता है।

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महिलाएं हल्दी की एक फसल पूरी होने के बाद इसे 100-160 रुपया प्रति किलो आस-पास के बाजारों में बेचती है। एक महिला किसान को सालाना डेढ़ से दो लाख रुपए की आमदनी होती है। हल्दी को पीसने में मशीन का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह गांव हल्दी पर पूरी तरह से आत्मनिर्भर है। यहां के किसान जो एक एकड़ में यह खेती करते हैं, उसे शुद्ध मुनाफा एक लाख रुपया होता है। एक एकड़ दस क्विंटल हल्की  उत्पादन होता है। गांव के कई किसान तीन-चार एकड़ के खेत में यह खेती कर रहे हैं, उन्हें और ज्यादा मुनाफा हाेता है। फसल होने के बाद इसके जड़ को सुखाकर ग्रामीण अपने घर में रखते हैं। उसी से फिर दुबारा खेती कर लेते हैं। गत 15 वर्षो से यहां की महिलाएं इसी खेती पर फोकस कर अपना जीवन-यापन कर रही है।

बीहड़ में बसे होने के बावजूद महिलाएं नहीं हारती हिम्मत कुचाई के सीताडीह गांव बीहड़ में बसा हुआ है। यहां आने-जाने का भी सही से साधन नहीं है। साइकिल से लोग आना-जाना करते हैं। सड़क भी सही से नहीं है। गांव सहायिका मंजू देवी बताती है कि गांव में लगभग 50 घर हैं। यहां बिजली है, लेकिन किसी भी मोबाइल कंपनी का नेटवर्क नहीं रहता। हल्दी को बेचने के लिए ग्रामीण साइकिल में बोरा लादकर विभिन्न बाजारों में बेचते हैं। अगर उनके बाजार की उपलब्धता आसानी से हो जाए तो यहां के हल्दी किसानों को और फायदा होगा।

बनाया जा सकता है हल्दी हब

सीताडीह गांव पर सरकार अगर थोड़ा सा ध्यान दें तो इसे हल्दी का हब बनाया जा सकता है। हल्दी का हब बनने से कई तरह के फायदे यहां के किसानों को सरकारी मिशनरी द्वारा मिल सकती है। इस तरह से अन्य गांवों में हल्दी की खेती को लेकर जागरुकता पैदा हो सकती है। ऐसे ही नकदी फसलों से किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।


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