Weekly News Roundup Jamshedpur : भाजपा में हो रही नाबालिग की तलाश,पढ़िए सियासी जगत की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur. सबके जेहन में घूम रहा है कि भाजयुमो का जिलाध्यक्ष क्या कोई नाबालिग बनेगा। जब वरिष्ठों की जगह युवा गुंजन ने ले ली है तो...
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। भाजपा में जमशेदपुर महानगर के जिलाध्यक्ष गुंजन यादव बने हैं, तब से यही सवाल सबके जेहन में घूम रहा है कि भाजयुमो का जिलाध्यक्ष क्या कोई नाबालिग बनेगा। जब वरिष्ठों की जगह युवा गुंजन ने ले ली है, तो युवाओं का नेतृत्व अवश्य ही इनसे कम उम्र का कोई बनेगा। हालांकि राजनीतिक दल में बालिग को ही कोई पद दिया जाता है, इसलिए इसकी संभावना कम है।
ऐसे में कुछ नाम आए हैं जो किशोर जैसे दिखते हैं। मंथन चल रहा है कि किशोर और नाबालिग के बीच का दिखने वाला कोई चेहरा चल जाएगा। वैसे अभी इसकी घोषणा नहीं हुई है, लेकिन यह तय है कि जो भी भाजयुमो का जिलाध्यक्ष बनेगा, उसकी उम्र गुंजन से 8-10 साल कम होगी। दिनेश ने भी अपने से 8-10 वर्ष छोटे राजा को खोज लिया था। हालांकि दोनों साथ खड़े रहते तो पता नहीं चलता था कि कौन बड़ा है।
देवेंद्र ने भी बदल लिया गुरु
राजनीति अवसर के मुताबिक काम करने की चीज है। इसमें जो एक बार रम गया, उसे बड़ा आनंद आता है। यहां कब कौन किसके साथ रहेगा, कब साथ छोड़ देगा, कहना मुश्किल है। अपने देवेंद्र सिंह की भी विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद राजनीति में रुचि बढ़ गई है। इसलिए हारने के बाद भी वे यहां ना केवल नए-नए मंडल अध्यक्ष की तलाश में जुट गए हैं, बल्कि पूरे जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र में पकड़ बनाने में लगे हैं। चूंकि ये पहले जमशेदपुर ग्रामीण के प्रभारी रह चुके हैं, इसलिए वहां के कार्यकर्ताओं से भी नजदीकी बढ़ा रहे हैं। इन्होंने डॉ. दिनेशानंद गोस्वामी के रूप में नया गुरु भी खोज लिया है। आजकल पहले वाले गुरु की जगह इनके साथ ज्यादा देखे जा रहे हैं। रांची तक दौड़ लगा रहे हैं, ताकि नए गुरु के माध्यम से प्रदेश में भी अपनी जान-पहचान ज्यादा बढ़ा सकें। कल किसने देखा है।
मुंह पर छींटा मार देते राजकुमार
अपने शहर में पानी वितरण के लिए राजकुमार सिंह का कोई सानी नहीं है। इन्हें पानीदार राजकुमार भी कहा जाता है, लेकिन भाजपा से लगातार जुड़े रहने के बावजूद इन्हें ना तो कभी जिलाध्यक्ष बनाया गया, ना किसी चुनाव में उम्मीदवार। 2005 में बर्मामाइंस के मंडल अध्यक्ष बने और वहीं इतिश्री हो गई। यह तब है, जब ये सभी छोटे-बड़े नेता के प्रिय रहे। कभी विवाद में नहीं रहे, कोई गुटबाजी नहीं की, अपनों से कभी नहीं लड़े, इसके बावजूद पार्टी में तरजीह नहीं मिलना आश्चर्य की बात है। दरअसल दो बार से अपने दम पर जिला परिषद का उपाध्यक्ष बनकर इन्होंने अपना कद पार्टी के किसी पद से बड़ा कर लिया है। इसलिए जब कभी किसी पद के लिए इनका नाम आता है, सामने वाले को लगता है कि किसी ने अचानक मुंह पर पानी का छींटा मार दिया। वह सोचने लगता है, तब तक समय निकल जाता है।
बहरागोड़ा में सोशल इंजीनियरिंग करेंगे कुणाल
बहरागोड़ा जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र का ऐसा क्षेत्र बन गया है, जहां से एक बार विधानसभा चुनाव जीतने वाला भी सांसद का उम्मीदवार बनने में जुट जाता है। इस ट्रेंड को सांसद विद्युत वरण महतो ने चलाया, तो अब उसी राह पर कुणाल षाड़ंगी चल रहे हैं। विद्युत महतो की तरह वह भी झामुमो छोड़कर भाजपा से यहां किस्मत आजमाने की कोशिश में जुटे हैं। ऐसे में बहरागोड़ा की सीट खाली हो गई है, तो विद्युत महतो ने अपने बेटे कुणाल महतो को वहां लगा दिया है। कुणाल इंजीनियरिंग पढ़कर आए हैं, सो बहरागोड़ा में सोशल इंजीनियरिंग की प्रैक्टिस कर रहे हैं। हालांकि यह भी संयोग है कि बहरागोड़ा में अभी विधानसभा चुनाव जीतने का ट्रेंड झामुमो का चल रहा है। ऐसे में यह भी सवाल है कि कुणाल महतो क्या वहां झामुमो के टिकट पर लड़ेंगे। क्योंकि ट्रेंड तो यही कह रहा है। विद्युत और कुणाल रास्ता दिखा चुके हैं।