Weekly News Roundup Jamshedpur: आयुष्मान को दबाए बैठे हैं साहब
Weekly News Roundup Jamshedpur Health line जिले के स्वास्थ्य महकमे में अभी ढर्रा तो पुराना ही नजर आ रहा है लेकिन लोगों की उम्मीदें नई सरकार से काफी हैं।
जमशेदपुर (अमित तिवारी)। पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में जिले का स्वास्थ्य महकमा काफी चर्चा में रहा था। सरकार बदली तो नई सरकार से यह अपेक्षा की जा रही है कि आम नागरिकों की सेहत के मामले में गंभीरता से काम होगा। हालांकि अभी ढर्रा तो पुराना ही नजर आ रहा है। एक बच्चे की मौत पर खुद सूबे के मुखिया ने संज्ञान लिया। कहा जाए कि उम्मीदें काफी हैं। अब देखना यह है कि कब उम्मीदें परवान चढ़नी शुरू होती हैं। आइए नजर डालते हैं जिले के स्वास्थ्य महकमे से जुड़ी सप्ताहभर की गतिविधियों पर...।
आयुष्मान को दबाए बैठे हैं साहब
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आयुष्मान भारत योजना का लाभ एमजीएम अस्पताल के मरीजों को नहीं मिल रहा है। मरीजों को बेहतर चिकित्सा कैसे मिले इसपर साहब का ध्यान नहीं जाता। जब भी कोई मरीज गोल्डन कार्ड लेकर आता, उसके सामने ही साहब व्यवस्था का रोना रोने लगते हैं। इससे मरीज की बीमारी ठीक होने की बजाय और गंभीर हो जाती है। इसकी चिंता साहब को जरूर करनी चाहिए। क्योंकि, इलाज के अभाव में किसी की मौत होना किसी अपराध से कम नहीं है।
योजना के तहत लाभुक को कैशलेस इलाज मिलने का प्रावधान है लेकिन, यहां तो एक आना भी नहीं मिलता। कर्ज-उधारी लेकर मरीज दवा से लेकर उपकरण तक खरीदने को मजबूर हैं। आजतक शायद ही किसी लाभुक का कैशलेस इलाज हुआ होगा। जबकि, उसने नाम पर इंश्योरेंस कंपनी से पैसा उठा लिया जाता है। फिलहाल करीब 40 लाख रुपये एमजीएम अस्पताल प्रबंधन के बैंक खाते में जमा हैं।
घट गईं एमबीबीएस की सौ सीटें
हर छह माह पर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) की टीम निरीक्षण करने महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) अस्पताल आती है। पहली बार वर्ष 1962 में 150 एमबीबीएस सीट की मान्यता मिली और पढ़ाई शुरू हुई, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि बीते 58 साल में सीट संख्या को भी बरकरार नहीं रखा जा सका। अब घटकर 50 तक सिमट गई है। इससे न सिर्फ एमसीआइ की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं, बल्कि पूर्व के सरकारों की मंशा भी उजागर होती है।
नतीजा है कि आज न तो डॉक्टर ढूंढे मिल रहे हैं, और न ही बेहतर इलाज। खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। यदि विकास हुआ होता तो सीटें घटने के बजाय बढ़ी होतीं। इससे साबित होता कि इतने लंबे वर्षों से सिर्फ कमीशन व लूट का खेल चल रहा है। मंगलवार को फिर पीजी की पढ़ाई के लिए एमसीआइ की टीम यहां निरीक्षण करने पहुंची थी।
आयुष्मान में दवा बदलने का खेल
आयुष्मान योजना में घोटाले की बू आने लगी है। आदित्यपुर के एक अस्पताल के खिलाफ जांच शुरू हो गई है। जल्द ही कोई बड़ी कार्रवाई संभव है। इधर, न्यू पुरुलिया रोड स्थित एक निजी हॉस्पिटल में दवा बदलने का भी खेल चल रहा है। डॉक्टर लिखते ब्रांडेड कंपनी की दवा और मरीज को दी जा रही सस्ते दर की दवा। बीते माह एक डॉक्टर ने इस खेल को पकड़ लिया।
इसके बाद उन्होंने वार्ड की सिस्टर इंचार्ज से दवा बदलने का कारण पूछा तो हैरान करने वाले जवाब मिले। नर्स ने बताया कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा उन्हें सस्ती दर वाली दवाएं ही उपलब्ध करायी जा रही हैं। जबकि, भुगतान राशि में ब्रांडेड दवाओं का जिक्र होता है। इस गंभीर विषय को गंभीरता से लेने की जरूरत है। नोडल पदाधिकारी वैसे अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई करें। ताकि मरीजों की जान बचने के साथ उनका भरोसा भी इस योजना पर कायम रहे।
आवाज खामोश, सवाल अभी जिंदा
25 अगस्त 2017। एमजीएम अस्पताल में बच्चों की मौत की गूंज देश में सुनाई दे रही थी। केंद्र से लेकर राज्य सरकार हरकत में आ गई थी। हाई कोर्ट ने संज्ञान में लेते हुए सरकार से जवाब-तलब किया। जिला जज भी अस्पताल का निरीक्षण करने आए थे। कांग्रेस नेताओं ने साकची गोलचक्कर पर धरना-प्रदर्शन किया था। अब कांग्रेसी सरकार में हैं।
उस दौरान व्यवस्था बदलने की मांग कर रहे थे। सरकार को कोस रहे थे। देखते-देखते 29 माह बीत गए। एक बार फिर पांच माह में 332 बच्चों की मौत का मामला सामने आया है। स्थिति अब भी नहीं बदली है। मौत की संख्या कम हुई न सुविधाएं बढ़ीं, लेकिन अब कोई आवाज उठाना जरूरी नहीं समझता। बीते दिनों स्वास्थ्य विभाग के सचिव डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी यहां एमजीएम अस्पताल का जब निरीक्षण करने आए तो उनका जवाब था- कहां हो रही बच्चों की मौत, वह तो पुराना मामला है।