Weekly News Roundup Jamshedpur : भूल गया, साहब दिखते कैसे हैं..., पढ़िए आफ द फील्ड खबरें
Weekly News Roundup Jamshedpur. वैश्विक महामारी कोरोना ने क्या-क्या दिन दिखाए। अखबारों में हर दिन छपने वालों को मुंह छिपाना पड़ रहा है। इस मजबूरी के भी चर्चे हो रहे हैं।
जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह। Weekly News Roundup Jamshedpur कोविड-19 ने तरह- तरह के बदलाव दिखाए हैं। अफसरों का चेहर देखे अरसा हो जा रहा है तो विपत्ति में भी खुशी का आनंद उठाया जा रहा है। वक्त ने अपनी अहमियत जबरदस्त तरीके से बताई है।
भूल गया, साहब दिखते कैसे हैं
वैश्विक महामारी कोरोना ने क्या-क्या दिन दिखाए। अखबारों में हर दिन छपने वालों को मुंह छिपाना पड़ रहा है। अब देखिए ना, जब से हमारे शहर में एसएसपी एम तमिल वाणन आए हैं। किसी ने उनका चेहरा नहीं देखा। बस उनके शरीर के आकार से ही पता लगाया जा सकता है कि साहब बगल से गुजर रहे हैं। यही हाल उपायुक्त रविशंकर शुक्ला का है। उनका चांद सा चेहरे का दीदार हुए मानो अरसा बीत गया। बस इतना पता चलता है, साहब दाढ़ी बढ़ाए हुए हैं। नेताजी तो हर दिन माथा पीट रहे हैं और सुबह अखबार देख मायूस हो जा रहे हैं। कभी अखबार में अपना चेहरा देख आह्लïलादित हो जाते थे, लेकिन आज मास्क लगाए फोटो छप रही है। यही हाल टाटा स्टील खेल विभाग के प्रशिक्षकों का भी है। सभी जगह पहचान का संकट हो गया है। अब तो पड़ोसी भी मुंह घुमाकर चल दे रहे हैं।
लीजिए नजारा दूर-दूर से ...
अब भारतीय विपत्ति की घड़ी में भी खुशी ढ़ूढने में पीछे नहीं रहते। सोशल मीडिया पर कई तरह के मीम्स बन रहे हैं। अब लता मंगेशकर का गाया करीब 68 साल पुराना एक गीत इंटरनेट पर अचानक से वायरल होने लगा है। वैसे तो यह छेड़छाड़ वाला रोमांटिक गीत है, मगर इसके मुखड़े के शब्द सुनकर आपको भी लगेगा, जैसे कोरोना वायरस के खिलाफ एडवाइजरी जारी की जा रही है। इसमें एक दूसरे से हाथ हाथ मिलाने से बचने के लिए कहा जा रहा है। गाने के बोल कुछ यूं है - दूर-दूर से, अजी दूर-दूर से, पास नहीं आइए, हाथ ना लगाइए। लीजिए नजारा दूर-दूर से, कीजिए इशारा दूर-दूर से। यह गाना 1952 में आई फिल्म साकी का है, जिसमें प्रेमनाथ व मधुबाला ने अभिनय किया है। गाना इंटरनेट पर ख़ूब शेयर किया जा रहा है। एक बार यूट्यूब पर इस गाने को सुनिए। सचमुच मजा आ जाएगा।
कितकित की थाप और गोली जीत
सोनारी का सोंथालिया परिवार व्यवसायी हैं। पिछले एक महीने से काराबोर बंद है। सभी एक कमरे में कैद हैं और जब तब एक ही गीत गा रहे हैं- काटे नहीं कटते ये दिन ये रात। घर से बाहर जाना नहीं है। बच्चे परेशान कर रहे सो अलग। मम्मी नीलाद्री ने बच्चों को व्यस्त करने के लिए जुगत भिड़ाई। 10 साल की अनामिका के साथ लगी कितकित खेलने। कित कित के हरेक कदम पर बच्चों जैसी खिलखिलाहट थी। अनामिका भी मम्मी के कदमों को नकल कर आगे बढ़ रही थी। तभी मम्मी का पैर साड़ी में फंसा और धड़ाम से गिर पड़ी। अनामिका खिलखिला उठी और चिल्लाने लगी, मम्मी ये कितकित अब तुम्हारे वश की बात नहीं। बेचारी नीलाद्री झेंप गई। उधर पापा राकेश बेटे गर्व के साथ गोली जीत (कंचा) खेल रहे हैं और डींगे भी हांक रहे हैं। तभी अंटुल पर निशाना साध गर्व ने खेल खत्म कर दिया।
कभी मानव शृंखला, आज शारीरिक दूरी
फिल्म वक्त का गाना सामयिक हो चला है- वक्त की हर शै ग़ुलाम, वक्त का हर शै पे राज...। आज से एक साल पहले लोकसभा चुनाव का दौर था। तब मतदाताओं को जागरूक करने के लिए दैनिक जागरण से लेकर जिला प्रशासन ने कमर कस रखी थी। पूरे राज्य में मानव शृंखला बनाने का बीड़ा उठाया गया था। अधिकारियों से लेकर शिक्षकों तक की पैंट ढीली हो चली थी। डिमना रोड से लेकर बिष्टुपुर के पीएम मॉल तक लगभग दस किलोमीटर का मानव शृंखला बनायी गयी थी। लेकिन एक साल बाद ही समय का पहिया ऐसा घूमा कि कल तक हाथ मिलाकर एकजुटता प्रदर्शित करने वाले शारीरिक दूरी का पालन कर रहे हैं। कहते हैं ना, प्रकृति और वक्त के आगे सब बौना है। तभी तो कहा गया है- आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे। कौन जाने किस घड़ी, वक्त का बदले मिजाज। वक्त से दिन और रात...।