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Weekly News Roundup Jamshedpur : सीएस ऑफिस में कौन मांग रहा पैसा, पढ़‍िए च‍िक‍ित्‍सा जगत की अंदरूनी खबर

Weekly News Roundup Jamshedpur.पूर्वी सिंहभूम जिले के पूर्व सिविल सर्जन को विभाग की तरफ से एक लैपटॉप मिला था लेकिन उनके रिटायर होते ही वह लैपटॉप गायब हो गया। वह कहां गया किसके पास है यह किसी को नहीं मालूम।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 01:05 PM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 05:39 PM (IST)
Weekly News Roundup Jamshedpur : सीएस ऑफिस में कौन मांग रहा पैसा, पढ़‍िए च‍िक‍ित्‍सा जगत की अंदरूनी खबर
सीएस ऑफिस में कौन मांग रहा पैसा : पढ़‍िए च‍िक‍ित्‍सा जगत की अंदरूनी खबर।

जमशेदपुर, अमित तिवारी। कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होती। अगर होती तो यह कहावत ही ना बनती। यह चर्चा परसुडीह स्थित सिविल सर्जन (सीएस) ऑफिस से निकलते समय दो लोग आपस में कर रहे थे। दरअसल, वे अल्ट्रासाउंड सेंटर का रिन्युअल कराने गए थे, लेकिन बदले में उनसे दस हजार रुपए कमीशन मांग लिया गया। इससे आक्रोशित होकर उस व्यक्ति के जुबान से कुत्ते की पूंछ वाली बात निकल गई।

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उस व्यक्ति से पूछने की कोशिश की गई तो उन्होंने कहा कि भैया छोड़ दीजिए, दस हजार रुपये मायने नहीं रखता, बस मेरा काम हो जाना चाहिए। अगर अखबार में खबर छप जाएगी तो दस कमी बताकर वे लोग मेरा लाइसेंस रद कर देंगे। यह हाल स्वास्थ्य विभाग का है, जहां खुद सीएस भी बैठते हैं। उनके नाक के नीचे अगर यह खेल चल रहा है, तो चिंता का विषय है। आखिर कौन कर्मचारी है जो पैसा मांग रहा है।

सीएस के साथ लैपटॉप भी रिटायर

पूर्वी सिंहभूम जिले के पूर्व सिविल सर्जन को विभाग की तरफ से एक लैपटॉप मिला था, लेकिन उनके रिटायर होते ही वह लैपटॉप गायब हो गया। वह कहां गया, किसके पास है, यह किसी को नहीं मालूम। अब उसे ढूंढा जा रहा है। इसके लिए तब के संबंधित पदाधिकारियों को पत्र लिखा गया है। उनसे पूछा जा रहा है कि आखिर लैपटॉप कहां है। हालांकि अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। कर्मचारियों का कहना है कि लैपटॉप ही नहीं और भी कई कीमती सामान नहीं मिल रहे हैं। सामानों की पूरी सूची तैयार कर उसकी जांच करनी चाहिए। पता तो चले कि सीएस के साथ कौन-कौन से सामान रिटायर हो गए। शहरी स्वास्थ्य मिशन में लाखों रुपये का सामान खरीदा गया था। उसकी सूची न तो सिविल सर्जन डॉ. आरएन झा के पास है, ना बड़ा बाबू के पास। भला किसी के साथ सामान भी रिटायर होता है।

शाम होते ही डॉक्टर साहब हो जाते बिजी

डॉक्टर साहब शाम को बहुत बिजी रहते हैं, दिखाना है तो सुबह में आओ, समझे कि नहीं। यह जुमला अमूमन हर पीएचसी-सीएचसी समेत सरकारी अस्पताल के ओपीडी में सुनने को मिल जाएगा। यह बात दैनिक जागरण के पड़ताल में भी देखने-सुनने को मिली। अधिकांश पीएचसी-सीएचसी में दोपहर बाद डॉक्टर नहीं आते हैं। किसी मरीज ने कह दिया कि डाक्टर साहब कहीं शाम को कहीं और प्रैक्टिस करते हैं क्या। कर्मचारी ने कहा कि मुझे नहीं पता। आप खुद ही पता लगा लीजिए। यहां से निकलने के बाद हर काम प्राइवेट ही होता है, समझे कि नहीं। ज्यादा बहस मत करिए। आपलोग ड्यूटी से फकैती करते हैं कि नहीं। ले-देकर डॉक्टर साहब ने ही सबकी जान बचाने का ठेका लिया है, क्या। उनका परिवार है कि नहीं। यार-दोस्त हैं कि नहीं। उनका भी क्लब-होटल में जाने का मन करता है कि नहीं। आपलोग उन्हें इंसान काहे नहीं समझते।

कोरोना की चांदी काट रही फार्मा कंपनियां

कोरोना आपके लिए भले ही कहर बनकर आया हो, कइयों की तो लॉटरी लग गई है। दवा तो आलू-प्याज जैसी बिक रही है। कोई कोरोना से ठीक होने के लिए दवा खरीद रहा है, तो कोई उससे बचने के लिए। डॉक्टर मरीज से अछूत जैसा व्यवहार कर रहे हैं, तो मरीज भागकर अस्पताल जा रहा है। वहां भगाने के लिए पहले कोरोना जांच कराने को कहा जा रहा है। इसी चक्कर में कई मरीज अब दवा दुकान से ही दवा खरीदकर खा ले रहे हैं। एक से ठीक नहीं हो रहा है तो दूसरी दवा ले आते हैं। लेकिन अस्पताल नहीं जाना है, यह ठान लिया है। कोरोना जांच के लफड़ा में भी नहीं पड़ रहे हैं। इससे फार्मा कंपनियों की चांदी कट रही है। उनके लिए तो कोरोना कुंभ के समान हो गया है। एक माह कमाओ-साल भर बैठकर खाओ। बहती गंगा में तैर नहीं, बह रहे हैं।


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