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Weekly News Roundup Jamshedpur: 'तड़ीपार' सिपाही बने थानों के 'मैनेजर'

Weekly Police News Roundup Jamshedpur झारखंड में सत्ता का हाल बदलने का कुछ न कुछ असर जमशेदपुर के पुलिस महकमे में भी देखा जा रहा है। पढ़ें हफ्तेभर की हलचल।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Wed, 22 Jan 2020 10:36 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 09:12 AM (IST)
Weekly News Roundup Jamshedpur: 'तड़ीपार' सिपाही बने थानों के 'मैनेजर'
Weekly News Roundup Jamshedpur: 'तड़ीपार' सिपाही बने थानों के 'मैनेजर'

जमशेदपुर (अन्‍वेष अंबष्‍ठ)। सूबे का निजाम बदलने का असर जिले के पुलिस महकमे की कार्यशैली में देखा जा रहा है। हालांकि कुछ मामलों में यह पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है लेकिन पावर का केंद्रविंदु बदलने का असर साफ देखा जा रहा है। पहले जिन नेताओ की धौंस चलती थी अब उनकी पूछ कम हो गई है। नए के साथ समीकरण बिठाने की जुगत लगाई जा रही है ताकि अपना सबकुछ ठीकठाक चलता रहे। आइए जानते हैं सप्‍ताह भर की पुलिस महकमे की सुर्खियां...

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'तड़ीपार' सिपाही बने थानों के 'मैनेजर'

पुलिस थानों का मैनेजमेंट जटिल काम है। इस काम को कुछेक सिपाही आसान बनाते हैं। ये होते तो सिपाही ही हैं, लेकिन इनकी जिम्मेदारी मैनेजर की होती है। केस मैनेज करना, कैश मैनेज करना, इनके जिम्मे होता है। थानों में थानेदारों की ही तरह ही इनकी तूती बोलती है। अफसरों की कलम इनकी जुबान के मुताबिक जो चलती है। इनका पावर कभी कम नहीं होता। भले इन्हें 'तड़ीपार' कर दिया जाए।

तड़ीपार यानी ट्रांसफर। शहर के कई थानों को आज भी कई ऐसे सिपाही मैनेज कर रहे जिनका ट्रांसफर हो चुका है। बाहर के जिलों में बैठे-बैठे ये अपने पुराने थानों का केस और कैश दोनों मैनेज कर रहे हैं। किस ताले से इलाके की कौन-सी चाबी खुलती है, इसका पूरा नक्शा इनके दिमाग में छप चुका है सो, गुंडा-माफिया भी इन्हीं की कृपा के मोहताज होते हैं। अफसर भी बमबम। बिना हाथ गंदा किए माया जो मिल रही है।

वारंट ने छोड़ दिया पीछा

विधानसभा चुनाव के कुछ दिन पहले तक समीर महंती भाजपा में थे। टिकट नहीं मिला तो झामुमो से जुड़ गए। नामांकन बाद चुनाव प्रचार में उतरे तो वारंट ने पीछा करना शुरू कर दिया। जीतने तक भूमिगत रहने को बाध्य रहे। पत्नी को जाकर प्रमाण पत्र लाना पड़ा। जानते थे अगर गिरफ्तार हो गए तो सबकुछ बेकार हो जाएगा। पत्नी, स्वजन और दोस्तों ने चुनाव प्रचार की कमान थाम ली।

दिशा-निर्देश समीर महंती देते रहे। गिरफ्तारी के लिए विरोधियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। मतदाताओं ने माटी की पार्टी के निशान पर इतना जोरदार वोट मारा कि विरोधी हिल गए। वारंट से भागने वाले को अपार जनसमर्थन देकर विधायक बना दिया। पार्टी को बहुमत मिला। आलाकमान के निर्देश पर विधायक जिले के कप्तान से मिले। आश्वासन मिला जिस मामले मेंं वारंट था। जांच कर उसे फाइनल कर दिया जाएगा। जनता के मिले समर्थन से विधायक की परेशानी दूर हो गई।

वे मस्त, परिवार खुश

राज्य की सत्ता से भाजपा बाहर क्या हुई, जमशेदपुर के पुलिस प्रशासन के लोगों के चेहरे चमकने लगे हैं। न तो किसी बात की चिंता है, ना कहीं से पैरवी झेलने की अब मजबूरी। जब रघुवर दास मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उनका अपने शहर में अक्सर आना होता था। सो, प्रशासन को प्रोटोकॉल भी मेंटेन करना होता था। इसके लिए अलर्ट रहना होता था कि कहीं कुछ गड़बड़ नहीं हो जाए। सत्ताधारी नेताओं की पैरवी और अनावश्यक दबाव से पैदा होने वाले तनाव को भी झेलना पड़ता था, लेकिन सूरत बदल चुकी है। जमशेदपुर पुलिस प्रशासन के अधिकारियों के दिन अच्छे चल रहे हैं। खाना-पीना, सोना सबकुछ समय पर हो रहा। परिवार के साथ पर्व-त्योहार का भी आनंद भी उठा रहे हैं। पांच साल बाद ऐसा सुकून मिला है। अब सरेआम डांट-फटकार भी नहीं पड़ रही। सबकुछ मस्त-मस्त है। परिवार वाले यह कहते नहीं थकते कि अब आए अच्छे दिन।

राख में तब्दील हो जाते कसमे-वादे

साथ जिएंगे-साथ मरेंगे। फिर प्यार का सिलसिला। लोक-लाज को छोड़कर धमा-चौकड़ी। इसके बाद शारीरिक संबंध। कुछ दिन, महीना और साल। दो-चार साल तक भी। इसके बाद तकरार। नोकझोंक और मारपीट। शादी का झांसा देकर यौन शोषण का आरोप। फिर मामला थाने से होते हुए कोर्ट-कचहरी तक पहुंचता है। जिले के 38 थानों में औसतन एक मामला रोजना पहुंच रहा है। 

तकरीबन हर मामले में आरोपित जेल की रोटी खा रहे हैं। ऐसे मामलों से पुलिस तंग आ गई है। विशेषकर घाटशिला और साकची के महिला थाने। प्रेमिका से मुंह मोड़ लेने का मुख्य कारण जाति-धर्म की दुहाई देना होता है। कई तो शादी के वक्त अपनी स्टेटस के बराबर महिला मित्र को मानते ही नहीं। ज्यादातर मामले ऐसे भी होते हैं कि पुरुष विवाहित होता है और प्रेम करने के वक्त खुद को अविवाहित बताता है। बात जब विवाह तक पहुंचती है तो कसमे-वादे राख में तब्दील हो जाते हैं।


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