Environmental protectionः नव-मानवतावादी विचारधारा से ही पृथ्वी का कल्याण संभवः सुनील आनंद
तितली की पर्यावरण में बहुत बड़ी भूमिका है। आज तितली धीरे-धीरे कम नजर आ रही है। आने वाले समय में बड़ी समस्या उत्पन्न ना हो इसलिए घर के बागान व स्कूलों में फूल वाले पौधों पर ज्यादा जोर देना होगा जिस पर आकर तितली बैठे।
जमशेदपुर, जासं। प्रिवेंशन आफ क्रुएलिटी टू एनिमल्स एंड प्लांट्स (पीसीएपी) जमशेदपुर की ओर से हुए वेबिनार के माध्यम से "पर्यावरण संरक्षण" पर विस्तृत चर्चा हुई, जिसमें वक्ताओं ने कहा कि नव-मानवतावादी विचारधारा से ही पृथ्वी का कल्याण संभव है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले सुनील आनंद ने कहा कि नव-मानवतावादी विचार से पृथ्वी का कल्याण संभव है। पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव-जंतु पेड़-पौधे गुल्म लता को भाई-बहन के रूप में अपने परिवार का सदस्य के रूप में स्वीकार करते हुए इसे प्यार करना होगा, तभी प्रकृति का कल्याण संभव है। नष्ट होने वाले गुल्म लता को बचाकर रखना बहुत जरूरी है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए टीबल मिंज एक्का ने तृप्ति कुमारी को पर्यावरण संरक्षण पर विचार रखने के लिए आमंत्रित किया। बीआइटी मेसरा की रिसर्चर तृप्ति कुमारी ने थ्री-आर (रिड्यूस, रीयूज रीसाइकिल) पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक का कचरा नष्ट नहीं होता है, इसलिए वह पर्यावरण को काफी हानि पहुंचाता है। ऐसे में थ्री-आर ही कारगर है, जिसमें किसी भी सामान का उपयोग हो सके तो सीमित करना, दूसरा फिर से उसका उपयोग और तीसरा रूप बदलकर उसका उपयोग करना बेहतर है।
फूल वाले पौधों पर ज्यादा जोर देना होगा
नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी की विज्ञान शिक्षिका व शोधार्थी प्रियंका झा ने कहा कि तितली की पर्यावरण में बहुत बड़ी भूमिका है। आज तितली धीरे-धीरे कम नजर आ रही है। आने वाले समय में बड़ी समस्या उत्पन्न ना हो, इसलिए घर के बागान व स्कूलों में फूल वाले पौधों पर ज्यादा जोर देना होगा, जिस पर आकर तितली बैठे और पर्यावरण को संतुलित करने में मददगार साबित हो। सीएसआइआर-एनएमएल की शोधार्थी अंजू कुमारी ने कहा कि जलकुंभी हैवी मेटल का बायो-इंडिकेटर होता है। जलकुंभी को बचा कर रखना भी बहुत जरूरी है। इसके औषधीय गुण भी काफी हैं। पर्यावरण के लिए जलकुंभी का भी बहुत बड़ा स्थान है।
ऑक्सीजन की कमी दूर करने के लिए पौधे लगाना बहुत जरूरी
प्रिवेंशन आफ क्रुएलिटी टू एनिमल्स एंड प्लांट्स (पीसीएपी) जमशेदपुर की ओर से "एक पेड़ कई जिंदगी" अभियान के तहत निश्शुल्क पौधा वितरण किया जाता है। सुनील आनंद ने पर्यावरण का महत्व बताते हुए कहा कि सन 1980 के बाद से धरती की सतह का औसत तापमान तकरीबन एक डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है। नासा का कहना है कि यह गर्मी कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन ग्रीनहाउस गैसों और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ के कारण उत्पन्न हुई है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने इस समस्या को गंभीर कर दिया है। जो कार्बन डाइऑक्साइड पेड़-पौधे सोख लेते थे, वह अब वातावरण में घुल रही है। दूसरी ओर ब्रिटिश मौसम वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगले पांच साल 10 वर्षों के मुकाबले अधिक सर्वाधिक गर्म रहने वाले हैं। तापमान बढ़ने का सीधा असर खेती-किसानी पर पड़ेगा और पैदावार कम हो जाएगी कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि एक डिग्री तापमान बढ़ने से पैदावार में 3 से 7 फीसद की कमी आ जाती है। भारत में पर्यावरण को लेकर एक बड़ा खतरा पॉलिथीन और प्लास्टिक से भी है।