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Vishwakarma Puja 2021: शिल्प व सृजन के देवता विश्वकर्मा की पूजा कैसे करें, बता रही सनातन संस्था

Vishwakarma Puja 2021 प्रत्येक युग में विश्वकर्मा ने कई अद्भुत नगर भवन और वस्तुओं का निर्माण किया। सतयुग में स्वर्गलोक का त्रेतायुग में सोने की लंका का द्वापरयुग में द्वारका का और कलियुग के आरंभ के 50 वर्ष पूर्व हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 02:09 PM (IST)Updated: Thu, 16 Sep 2021 02:09 PM (IST)
Vishwakarma Puja 2021: शिल्प व सृजन के देवता विश्वकर्मा की पूजा कैसे करें, बता रही सनातन संस्था
ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ का विवाह ‘वस्तु’ से हुआ था।

जमशेदपुर, जासं। हिंदू धर्म के अनुसार शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा शिल्पकला व सृजन के देवता माने जाते हैं। भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का निर्माणकर्ता भी कहा जाता है। 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा की जाती है। इस दिन सभी निर्माण कार्य में उपयोग होने वाले औजारों, उपकरणों, मशीन, हथियारों, यंत्रों आदि की पूजा की जाती है।

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सनातन संस्था से जुड़े जमशेदपुर निवासी सुदामा शर्मा ने बताया कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा कैसे करें, इस पर शंभू गवारे ने विस्तार से जानकारी प्रसारित की है। विश्वकर्मा पूजा के दिन सुबह स्नान के उपरांत हाथ में फूल, अक्षत लेकर भगवान विश्वकर्मा का नाम लेते हुए घर में अक्षत छिड़कना चाहिए। पूजा स्थान पर कलश में जल तथा विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। विश्वकर्मा की प्रतिमा पर फूल चढ़ाने के बाद सभी औजारों को तिलक लगाकर दीप, धूप, पुष्प, गंध, सुपारी आदि से पत्नी सहित पूजा करनी चाहिए।

विश्वकर्मा पूजा मंत्र

विवाहदिषु यज्ञषु गृहारामविधायके ।

सर्वकर्मसु संपूज्यो विश्‍वकर्मा इति श्रुतम ॥

अर्थ : विश्वकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। प्रत्येक प्राणी सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी ओर विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा-अर्चना अपनी एवं राष्ट्रीय उन्नति के लिए अवश्य करनी चाहिए।

भगवान विश्वकर्मा का जन्म

ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ का विवाह ‘वस्तु’ से हुआ था। धर्म के सातवें पुत्र का नाम ‘वास्तु’ था, जो महान शिल्पकार थे। ‘वास्तु’ को एक पुत्र हुआ, जिनका नाम विश्वकर्मा था, जो अपने पिता समान ही महान शिल्पकार एवं वास्तुकला के अद्वितीय गुरु बने।

आश्चर्यजनक वास्तुकार

प्रत्येक युग में विश्वकर्मा ने कई अद्भुत नगर, भवन और वस्तुओं का निर्माण किया। सतयुग में स्वर्गलोक का, त्रेतायुग में सोने की लंका का, द्वापरयुग में द्वारका का और कलियुग के आरंभ के 50 वर्ष पूर्व हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया। विश्वकर्मा ने ही जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मंदिर की कृष्ण, सुभद्रा एवं बलराम की मूर्तियों का निर्माण किया। इसके साथ ही इन्होंने यमपुरी, कुबेरपुरी, सुदामापुरी, शिवमंडलपुरी आदि का भी निर्माण किया। कर्ण का कुंडल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदंड का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार शिल्पकला में निपुण नल नामक वानर ने रामसेतु का निर्माण किया था, वो विश्वकर्मा के ही पुत्र थे।


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