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खून का थक्का जमा तो सांप विषैला, नहीं जमा तो सामान्य Jamshedpur News

झारखंड में कहीं सांप के विष की जांच की सुविधा नहीं है। अनुमान से डॉक्टर इलाज करते है। सर्पदंश पीडि़त की जान बचाने को डॉक्टर सांप का फोटो मांगते है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 04:01 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 04:01 PM (IST)
खून का थक्का जमा तो सांप विषैला, नहीं जमा तो सामान्य Jamshedpur News
खून का थक्का जमा तो सांप विषैला, नहीं जमा तो सामान्य Jamshedpur News

जमशेदपुर, अमित तिवारी।  झारखंड में सर्पदंश की वजह से हर साल एक हजार से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। हैरत की बात यह है कि किसी भी अस्पताल में सांप के विष का जांच की सुविधा नहीं है। पता करना मुश्किल होता है कि किस प्रजाति के सांप ने काटा है और क्या इलाज देना है। सर्पदंश का कोई मामला आता है तो डॉक्टर अनुमान पर ही इलाज शुरू कर देते हैं।  

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सांप के रंग, आकार आदि की जानकारी ही इलाज का आधार

विष की सटीक जानकारी नहीं होने से सर्पदंश पीडि़त का इलाज करने में परेशानी होती है। ऐसे में मरीज से सांप के रंग, आकार समेत अन्य जानकारी ली जाती है। कई बार सांप की फोटो तक मांगी जाती है। 

सांप को ही पकड़ लाते ताकि हो सके इलाज

डॉक्टरों द्वारा इलाज के तौर-तरीकों को लेकर लोग आदी हो चुके हैं। शायद यही कारण है कि कई बार ऐसा देखा जाता है कि लोग कोशिश कर उस सांप को ही चिकित्सक के पास पकड़ का लाते हैं जिसने डसा होता है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार राज्य में सांप काटने से हर साल एक हजार से अधिक लोगों की मौत होती है। महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हर साल 200 से 250 सर्पदंश से पीडि़त हो पहुंचते है। इसमें 50 से 60 लोगों की मौत हो जाती है।  

तीन तरह का होता सांप का विष

सांप का विष हीमोटॉक्सिक, न्यूरोटॉक्सिक व साइटोटॉक्सिक होता है। तीनों तरह के विष की दवाएं अलग होती हैैं। कई बार गलत दवा दिए जाने की वजह से रिएक्शन हो जाता है। मरीज की जान तक चली जाती है। हीमोटॉक्सिक में शरीर के विभिन्न अंगों से खून निकलते लगता है। न्यूरोटॉक्सिक में मरीज को लकवा मार देता है और उसके शरीर के अंग काम करना बंद करने लगते हैं। सांस भी रूक जाती है और मरीज की मौत हो जाती है। वहीं साइटोटॉक्सिक विष शरीर की कोशिकाओं (सेल) को प्रभावित करता है। इससे हार्ट तक विष फैल जाता है। 

अस्पतालों में इस विधि से किया जा रहा उपचार 

विष जांच की समुचित सुविधा नहीं होने की वजह से एमजीएम अस्पताल सहित अन्य जगहों पर पीडि़तों का इलाज बिना जांच कराए ही तत्काल शुरु कर दिया जाता है। इसकी वजह मरीजों की जान बचाने को प्राथमिकता देना होता है। इसके बाद एमजीएम में पीडि़त का खून लेकर करीब एक घंटे तक रखा जाता है। खून में अगर थक्का जमने लगे तो मान लिया जाता है कि किसी जहरीले सांप ने डसा है। ऐसा नहीं होने पर सांप का विषैला नहीं होना मान लिया जाता है।  

शहर में टेल्को क्षेत्र स्नैक जोन 

शहर में टेल्को का पूरा इलाका स्नैक जोन है। एमजीएम के आंकड़े बताता है कि टेल्को प्लाजा, रिवर व्यू इलाके में जहरीले सांप अधिक है। इसी क्षेत्र से सबसे अधिक मरीज आते है। अन्य इलाकों में निकलने वाले सांप कम जहरीले हैं।

सांप काटने से भारत में सबसे अधिक मौत 

सांप काटने से दुनियाभर में होने वाली मौतों की संख्या में भारत सबसे आगे है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल 83,000 लोग सर्पदंश के शिकार होते हैैं। इनमें 11,000 की मौत हो जाती है। मौत का सबसे बड़ा कारण है तुरंत प्राथमिक उपचार उपलब्ध नहीं होना है। भारत में सांपों की लगभग 236 प्रजातियां हैैं। सबसे ज्यादा मौतें नाग, गेहुंवन व करैत के काटने से होती हैैं।

ये कहते डाॅक्‍टर

मेडिकल कॉलेज में विष को जांचने की सुविधा होनी चाहिए ताकि उसपर रिसर्च भी हो सके। पूरे झारखंड में टॉक्सिकोलॉजी लैब नहीं है।

- डॉ. आरएल अग्रवाल, पूर्व प्रोफेसर, एमजीएम।

शरीर में विष कितना फैला है इसकी  जांच नहीं हो पाती लेकिन पीडि़त का खून लेकर रखा जाता है। सर्पदंश पीडि़त के आते ही उसका इलाज तत्काल शुरू कर दिया जाता है। 

- डॉ. नकुल प्रसाद चौधरी, उपाधीक्षक, एमजीएम।

 मुख्‍य बातें

  • झारखंड में कहीं नहीं विष के जांच की सुविधा, अनुमान से डॉक्टर करते इलाज
  • सर्पदंश पीडि़त की जान बचाने को  डॉक्टर मांगते सांप का फोटो
  • मजबूरी हो तो हैदराबाद या फिर बंंगलुरु भेजना पड़ता विष का नमूना

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