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सात साल बाद रिहा हुआ केरल में बंधक बना यह शख्स, सुनाई रोंगने खड़े करनेवाली दास्तान Jamshedpur News

वह रोजी-रोटी की खातिर केरल गया। लेकिन उसे क्या पता था कि उसे वहां बंधुआ मजदूर बना लिया जाएगा। और उसकी जिंदगी नरक बन जाएगी।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 05 Sep 2019 01:02 PM (IST)Updated: Thu, 05 Sep 2019 01:02 PM (IST)
सात साल बाद रिहा हुआ केरल में बंधक बना यह शख्स, सुनाई रोंगने खड़े करनेवाली दास्तान Jamshedpur News
सात साल बाद रिहा हुआ केरल में बंधक बना यह शख्स, सुनाई रोंगने खड़े करनेवाली दास्तान Jamshedpur News

मुसाबनी (पूर्वी सिंहभूम), जेएनएन। वह केरल में सात साल बंधक बना रहा। इस दौरान उसके साथ जो हुआ वह अकल्पनीय है। सात साल बाद रिहा होकर जब वह घर लौटा तो रोंगटे खड़े करनेवाली दास्तान सुनाई। पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड के मेड़िया निवासी निमाई सबर घर लौटा तो उनकी पत्नी कुनी सबर खुशी से झूम उठी।

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निमाई सात वर्षों से केरल के पालाघाट में एक सड़क निर्माण कंपनी में बंधक थे। दैनिक जागरण में 26 अगस्त को ‘महिला ने पति को केरल से लाने के लिए लगाई गुहार’ शीर्षक से खबर प्रकाशित हुई तो दलालों के होश उड़ गए। दलाल ने कंपनी प्रबंधन को अखबार में समाचार प्रकाशित होने की सूचना दी और तत्काल निमाई को भेजने को कहा। तब जाकर निर्माण कंपनी ने उसे मुक्त किया।

सात साल की कमाई मात्र 400 रुपये

निमाई ने बताया कि जब मालिक ने कहा कि तुमको वापस घर जाना है तो मुझे उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। इसके बाद मालिक ने उनके साथ दामपाड़ा कुलिमहुली के एक दंपती व कंपनी के एक आदमी के साथ रेलवे स्टेशन भेजा। वहां टिकट देकर ट्रेन में बैठा दिया गया। मात्र 400 रुपये हाथ में थमा दिए गए। सात साल की हाड़तोड़ मेहनत के एवज में उसे मात्र चार सौ रुपये ही मिले। निमाई सबर ने बताया कि घर आने की खुशी में वह अपने खूनपसीने की कमाई भूल गया है।

मजदूरों पर ढाया जाता जुल्म

निमाई सबर ने आपबीती सुनाते हुए बताया कि केरल के पालाघाट में केएमसी सड़क निर्माण कंपनी में काम करता था। वहां मजदूरों पर बहुत जुल्म किया जाता है। दर्जनों मजदूर काम कर रहे हैं। उनके रहने को टीना छत का मकान दिया गया है। एक कमरे में दो लोग रहते थे। सुबह 11 से शाम पांच बजे तक काम करवाया जाता था। काम नहीं करने पर मालिक का साला रंजीत और मुंडा लाल मारपीट करते थे। प्रत्येक शनिवार को मजदूरी के नाम पर केवल भोजन के लिए 400 रुपये दिए जाते थे। खाना मेस में बनता था। वहां हर दिन सुबह नाश्ता में गुलगुला, दोपहर में चावल और रात में रोटी मिलती थी।

रखा जाता था कड़ा पहरा

400 रुपये से ज्यादा नहीं दिए जाने से मजदूरों में आक्रोश था। लेकिन कोई वहां से कोई भाग भी नहीं सकता था। पहरा कड़ा था। बताया कि गालूडीह के एक दलाल ने मेड़िया के ही मजदूर हावली तांती के साथ भेजा था। हावली तांती तो बहुत पहले ही घर आ गया था। लेकिन उसे आने नहीं आने दिया गया। तब से बंधक बन कर काम कर रहे थे।

पत्नी ने लगाई थी गुहार

अगस्त माह में निमाई सबर की पत्नी कुनी सबर ने मुसाबनी बीडीओ एवं डीएसपी से गुहार लगाई थी कि जिस तरह बागजाता गांव के मजदूरों को मुक्त कर वापस लाया गया है उसी तरह मेरे पति निमाई सबर को भी वापस लाया जाए। प्रशासन द्वारा अपने स्तर से भी कार्रवाई शुरू की गई थी।

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