Toilet In Train : इस भारतीय की अतरंगी लेटर ने किया था ट्रेनों में टॉयलेट की शुरुआत, पढ़िए रोचक स्टोरी
Toilet In Train 1853 में जब भारत में ट्रेन की शुरुआत हुई थी उस समय रेलगाड़ी में टॉयलेट के बारे में किसी ने नहीं सोचा था। लगभग 66 साल तक यूं ही बिना टॉयलेट के ट्रेन पटरियों पर दौड़ती रही। पर एक लेटर ने सफर आसान कर दिया...
जमशदेपुर : भारतीय रेलवे की शुरूआत को करीब 170 साल हो गए हैं। 16 अप्रैल 1853 को देश की पहली यात्री ट्रेन की शुरूआत हुई थी। मगर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि करीब 56 साल तक ट्रेनों में टायलेट की सुविधा नहीं थी। साल 1919 तक ट्रेनें बिना टायलेट के ही धड़ाधड़ पटरियों पर दौड़ती रही। यह शायद आगे और इसी तरह चलता रहता, अगर एक भारतीय का गजब का अंग्रेजी में लिखा लेटर अंग्रेजों को न मिलता।
लेटर पढ़ अंग्रेज भी अचरज में पड़ गए
यह एक ऐसा लेटर था, जिसे पढ़कर अंग्रेजों को भी अपनी अंग्रेजी पर शक होने लगा। मतलब आप कल्पना कीजिए कि कोई आपको अंग्रेजी में यह समझाए कि कटहल से उसका पेट बहुत ज्यादा सूज रहा था..... वह एक हाथ में लोटा और दूसरे हाथ में धोती पकड़ कर भाग रहा था। अचानक वह गिरता है और उसकी सारी शाकिंग आदमी-औरत के आगे एक्सपोज हो जाती है। यह पढ़कर आपको कैसा फील होगा।
जी हां, ओखिल चंद्र सेन नामक एक यात्री ने अंग्रेजों को अपने दर्द से ऐसे ही वाकिफ कराया था। उन्होंने 2 जुलाई 1909 को साहिबगंज रेल डिवीजन पश्चिम बंगाल को एक पत्र लिखकर भारतीय रेल में शौचालय स्थापति करने का अनुरोध किया।
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अगर हम इस पत्र के शब्द के बाजाय भाव समझें, तो इसमें ओखिलचंद्र सेन कहते हैं...
डियर सर, मैं यत्री ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन आया और मेरा पेट दर्द की वजह से सूज रहा था। मैं शौच करने के लिए किनारे बैठ गया। उतनी देर में गार्ड ने सीटी बजा दी और ट्रेन चल पड़ी। मैं एक हाथ में लोटा और दूसरी में धोती पकड़कर दौड़ा और प्लेटफार्म पर गिर गया। मेरी धोती खुल गई और मुझे वहां मौजूद सभी महिला-पुरूषों के सामने शर्मिंदा का सामना करना पड़ा। मेरी ट्रेन छूट गई और मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गया।
आगे ओखिल बाबू गार्ड पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहते हैं कि यह कितनी खराब बात है कि शौच करने गए एक यात्री के लिए ट्रेन के गार्ड कुछ मिनट रूक भी नहीं सकता। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि उस गार्ड पर भारी जुर्माना लगाया जाए। वरना मैं इस बारे में अखबारों में बता दूंगा। आपका विश्वसनीय सेवक, ओखिल चंद्र सेन।
ओखिल चंद्र सेन के इस दर्द भरे लेटर को पढ़ने के बाद ही रेलवे अधिकारियों ने ट्रेनों में टायलेट बनवाए। तय हुआ कि उस वक्त 50 मील से अधिक चलने वाली ट्रेनों में सभी लोअर क्लास डिब्बों में शौचालय की व्यवस्था होगी।