World Telecommunication Day 2020: टेलीफोन की ट्रिंग-ट्रिंग अब बन गई जीवन की धड़कन
World Telecommunication Day 2020.शायद लॉकडाउन और कोरोना का शोर थमने के बाद हर क्षेत्र में परिवर्तन तय है जिसमें दूरसंचार तकनीक से चलने वाला स्मार्ट फोन महत्वपूर्ण है।
जमशेदपुर, जासं। World Telecommunication Day 2020 सिर्फ 53 दिन पहले, 25 मार्च तक बड़े-बूढ़ों के लिए टाइम पास मानेजाने वाला स्मार्ट फोन आज उनके लिए जीवन का आधार बन गया है। उनकी दवाएं समेत अन्य जरूरतें इसी माध्यम से पूरी हो रही हैं।
अधेड़, नौकरीपेशा वालों के लिए कम्यूनिकेशन व बौद्धिक विलास के काम आनेवाले स्मार्ट फोन से नौकरी चल रही है। नौकरी चल रही है तो वेतन मिल रहा है। वहीं बच्चों के लिए यह छोटा सा उपकरण पूरा स्कूल ही बन गया है। स्मार्ट फोन की ट्रिंग-ट्रिंग ही जीवन की धड़कन लगने लगी है। शायद लॉकडाउन और कोरोना का शोर थमने के बाद हर क्षेत्र में परिवर्तन तय है, जिसमें दूरसंचार तकनीक से चलने वाला स्मार्ट फोन महत्वपूर्ण है।
सांसद-विधायक की पैरवी होती थी
दूरसंचार या टेलीफोन को आए अरसा गुजर गया। पहले इसका उपयोग सिर्फ बात करने के लिए ही होता था। एक समय जिस घर में टेलीफोन होता था, उसके बारे में इलाके के लोग चर्चा करते थे। नब्बे के दशक तक इसकी बुकिंग के लिए लंबी-लंबी लाइन लगती थी, सांसद-विधायक की पैरवी होती थी। 1995 के बाद यह आम होता चला गया, तो 2000 आते-आते हाथों में मोबाइल दिखने लगा। शुरू में मोबाइल फोन रखना भी शान की बात होती थी। बहरहाल, कभी विलासिता की वस्तु समझा जाने वाला मोबाइल फोन इस कदर रग-रग में समा गया है कि इसके बिना जीना दूभर सा लगता है। लॉकडाउन में इसकी जिस तरह से उपयोगिता बढ़ी है, उसके बारे में तो पहले अधिकतर लोग सोचते भी नहीं थे। बैठक, कांफ्रेंस, सेमिनार से लेकर पढ़ाई-लिखाई, नृत्य-संगीत के प्रशिक्षण तक हो रहे हैं। राशन, दूध, सब्जी से लेकर तमाम रोजमर्रा के सामान इससे खरीदे जा रहे हैं। पहले लोग कभी-कभार वीडियो कॉलिंग करते थे, अब यह दिनचर्या में शामिल हो गया है। वास्तव में लॉकडाउन नहीं होता तो शायद इसका ऐसा इस्तेमाल भी नहीं होता। आइए जानते हैं, अपने शहर व आसपास में मोबाइल फोन किस तरह जिंदगी को आसान बना रहा है।
घर तक पहुंच रही दूध, राशन-सब्जी
आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है, यह लॉकडाउन में साबित भी हो गया। जब सरकार-प्रशासन ने यह निर्देश जारी किया कि घर से बाहर नहीं निकलना है, तो सबके मन में यही सवाल उठा कि रोजमर्रा के सामान कैसे मिलेंगे। दो दिन तक तो अफरातफरी की स्थिति रही, लेकिन तीसरे दिन ही जिला प्रशासन ने शहर के तमाम राशन व दूध की आपूर्ति के लिए मोबाइल व वाट़्सएप नंबर जारी कर दिए। कुछ दिन बाद टाटा स्टील ने जोमैटो के माध्यम से सब्जी की आपूर्ति शुरू करा दी। इससे लोग अब भी घर बैठे सामान मंगा रहे हैं। इसकी वजह से अब बड़े-बड़े स्टोर में भीड़ नहीं दिखती है।
प्रेस कांफ्रेंस बना वेब कांफ्रेंस, सेमिनार हुआ वेबिनार
लॉकडाउन में तमाम संस्थाओं, कंपनियों ने भी प्रेस कांफ्रेंस व सेमिनार के लिए मोबाइल फोन को ही माध्यम बनाया। शहर में इसकी शुरुआत सीआइआइ झारखंड के चेयरमैन संजय सब्बरवाल ने वेब-कांफ्रेंस से की, तो इसके बाद टाटा स्टील समेत तमाम कंपनियों-संस्थाओं ने इसे अपनाया। वेबिनार का चलन तो केंद्रीय मंत्रियों से शुरू हुआ, लेकिन अब यह तमाम संगठनों-संस्थाओं की ओर से हो रहा है।
पढ़ाई-लिखाई से लेकर होमवर्क तक
लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में ही स्कूल-कालेज में निर्णय लिया गया कि मोबाइल फोन से ही पढ़ाई होगी। शुरू में वाट्सएप से पढ़ाई शुरू हुई, लेकिन इसमें परेशानी यह थी कि छात्र अपने शिक्षक से कुछ पूछ नहीं पाते थे। कुछ दिन बाद स्कूलों ने जूम एप से पढ़ाई शुरू की। कुछ कोचिंग संस्थान भी जूम एप से पढ़ा रहे हैं। हालांकि यह व्यवस्था अब भी उतनी आसान नहीं हुई है।
काव्यगोष्ठी का भी बना माध्यम
साहित्यकारों ने भी मोबाइल एप के माध्यम से गोष्ठी की शुरुआत कर दी है। सहयोग ने टैगोर जयंती पर काव्य गोष्ठी कराई, तो अंगना ने भी भोजपुरी साहित्यकारों को मंच दिया। हालांकि अब भी अधिकांश संस्थाएं वाट्सएप पर ही काव्य मंच चला रही हैं।
जुम्बा, एरोबिक व डांस क्लास
मोबाइल फोन से गीत-संगीत के साथ जुम्बा, एरोबिक व डांस के क्लास भी चल रहे हैं। टैगोर एकेडमी इसके माध्यम से नियमित छात्रों को संगीत का प्रशिक्षण दे रहा है। अलग-अलग शिक्षकों को अपने-अपने बैच को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है। वहीं कई जुम्बा, एरोबिक व डांस के पेशेवर स्कूल अपने छात्रों को वीडियो भेजकर स्टेप्स सिखा रहे हैं। छात्र भी अपनी वीडियो भेजकर खूबियां-कमियां जान रहे हैं।