इनके जीवन को कौन करेगा रोशन ! ऐसी है सिस्टम से हारे बेबस, लाचार व बुजुर्गों की कहानी Jamshedpur news
ये कुछ ऐसे बेबस हैं जिन पर अबतक नेक इंसान की कृपादृष्टि नहीं पड़ी है। वो किसी ऐसे के इंतजार में हैं जो उनकी भावनाओं को समझे और उनका भी भला हो।
जमशेदपुर, अमित तिवारी। दीपावली अंधेरे पर उजाले की जीत की पर्व है लेकिन इनके जीवन को रोशन कौन करेगा? यह सवाल, सिस्टम से हारे बेबस, लाचार व बुजुर्गों की है। जिनके घरों पर कब्जा या फिर उन्हें बेदखल कर दिया गया है। यह किसी एक व्यक्ति की कहानी नहीं है बल्कि ऐसे सैकड़ों लोग है, जिनकी टकटकी न्याय की आस पर टिकी हुई है।
परसुडीह स्थित हलुदबनी निवासी रमेश कालिंदी (68) तो आस ही छोड़ देने की बात कहते है। वह बीते आठ माह से महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में शरण लिए हुए है। पैर में चोट लगने के बाद उन्हें भर्ती कराया गया था लेकिन अब उनके पास जाने को कुछ बचा ही नहीं है। आशियाना छीन गया है। उसपर दलालों ने कब्जा कर रखा है, जिसके कारण उनकी जिंदगी अस्पताल में ही कट रही है। रमेश कालिंदी कहते हैं कि उनका कोई बेटा नहीं है। एक बेटी थी जिसकी शादी कर दिया। इसके बाद वर्ष 2011 में पत्नी का निधन हो गया। उसके एक साल के बाद ही दो दलालों ने मिलकर उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। उसके खिलाफ वह पुलिस व कोर्ट का भी चक्कर लगाए लेकिन किसी से न्याय नहीं मिला। रमेश अब सिस्टम से हारकर एमजीएम में जिंदगी काट रहे है। रमेश की जिंदगी की रोशनी मद्धिम पड़ती जा रही है।
रमेश कालिंदी।
45 से अधिक मामले एसडीओ कोर्ट में दर्ज
45 से अधिक मामले एसडीओ कोर्ट में दर्ज है। जिनके बेटे व बहू ने माता-पिता को घर से बेदखल कर दिया है और अब वह न्याय के लिए चक्कर लगा रहे है। कई लोग तो न्याय की आस में दम भी तोड़ चुके है। एसडीओ कोर्ट में काशीडीह निवासी राम अवतार ठाकुर ने वर्ष 2015 में बेदखल किए जाने का मामला दर्ज कराया था। फैसला अभी आया भी नहीं था कि उनका निधन हो गया। इसी तरह और भी कई लोग है। वहीं 23 लोग बाराद्वारी स्थित ओल्ड एज होम में रह रहे है।
घर में भरा-पूरा परिवार पर कोई पूछने वाला नहीं
सुदेश सिंह।
बड़ा गोविंदपुर निवासी सुदेश सिंह के पैर में जख्म है। वह बीते डेढ़ माह से एमजीएम अस्पताल में भर्ती है लेकिन उन्हें देखने कोई नहीं आता। लावारिश के रूप में वह भर्ती है। सुदेश कहते है कि उनका परिवार भरा-पूरा है। परिवार में पत्नी के अलावे एक बेटा व एक बेटी है लेकिन कोई अस्पताल उन्हें देखने नहीं आता। सुदेश अपनी पीड़ा बताते-बताते रो देते है। उनके जीवन में यह पहली ऐसी दीपावली होगी, जो नहीं मना सकेंगे।
दो लड़का है लेकिन नहीं आता कोई लेने
जोगिंदर कौर।
बिरसानगर स्थित जोन नंबर सात निवासी जोगिंदर कौर छह माह से एमजीएम अस्पताल में भर्ती है। डॉक्टर उन्हें छुïट्टी कर दिया है लेकिन इसके बावजूद वह शरण ली हुई है। जोगिंदर कहतीं है कि उनके दो लड़का व एक लड़की है लेकिन कोई देखने व लेने नहीं आता। ऐसे में वह कहां जाएगी? एमजीएम में कम से कम समय पर नाश्ता व खाना तो मिल जाता ही है। बाहर में न तो सोने की व्यवस्था होगी और न ही खाने की।
परिवार के लोग भर्ती कर भाग गए
सौरव कुमार ।
बारीडीह स्थित वर्कर्स फ्लैट निवासी सौरव कुमार को 10 माह पूर्व उनके परिवार वालों ने एमजीएम में भर्ती कराकर छोड़ गए। उसके बाद कोई देखने नहीं आया। सौरव कुमार अब ठीक हो चुका है। रोजाना इंतजार करते है कि परिवार का कोई सदस्य उन्हें देखने व लेने आएगा। शुक्रवार को दैनिक जागरण की टीम उनके पास पहुंची तो वह बार-बार गुहार लगा रहे थे कि उनको उनके घर पहुंचा दिया जाए।
सात साल से ओल्ड एज होम में रह रहे एके मित्रा
टेल्को निवासी एके मित्रा सात साल से बाराद्वारी स्थित ओल्ड एज होम में रह रहे है। वह टेल्को कंपनी में कार्यरत थे लेकिन बुढ़ापे में उनका सहारा कोई नहीं है। उनकी जिंदगी अकेला ही बीत रहा है। एके मित्रा कहते है कि उनकी एक बेटी है जिसकी शादी कर दिया। वहीं पत्नी की व एक पुत्र का निधन बीमारी से हो गया। इसके बाद वह अकेला ही जिंदगी गुजार रहे है।
बेटा ससुराल में रहता, मुझे देखने वाला कोई नहीं
बीके सूर पांच साल से ओल्ड एज होम में अपनी जिंदगी व्यतीत कर रहे है। वह कहते है कि दीपावली अंधेरे पर उजाले की जीत का पर्व है लेकिन उनकी जिंदगी हार गई है। इसलिए उन्हें अकेला छोड़ दिया गया है। उनका एक लड़का है जो ससुराल में ही रहता है। इसी तरह, कदमा निवासी रामास्वामी आनंद मोहन ओल्ड एज होम में जिंदगी काट रहे है। उनकी बेटी व दामाद उनके घरों पर ही कब्जा कर रखा है लेकिन पूछने कोई नहीं आता। बिरसानगर निवासी बीके गुहा, साकची निवासी सदाशिव राय भी ओल्ड एज में अपनी पीड़ा दैनिक जागरण से व्यक्त की।