दामपाड़ा की वन संपदा दिखा रही स्वावलंबन की राह, काजू, आंवला व औषधीय वनोत्पाद की भरमार Jamshedpur News
एक समय ऐसा भी था जब दामपाड़ा क्षेत्र गरीबी-लाचारी और नक्सली वारदातों को लेकर जाना जाता था। मुफलिसी के बीच रोजगार की तलाश में पलायन का दंश झेलने को लोग मजबूर थे।
घाटशिला (जागरण संवाददाता)। पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत घाटशिला अनुमंडल में बसे साठ मौजे अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए तो जाने ही जाते हैं, यहां की वन संपदा रोजगार के नए अवसर भी दिखा रही है। साठ मौजे में दामपाड़ा की वन संपदा बदलते हालात में प्रवासी मजदूरों की तकदीर बदलने की राह तक रही है।
एक समय ऐसा भी था जब दामपाड़ा क्षेत्र गरीबी-लाचारी और नक्सली वारदातों को लेकर जाना जाता था। मुफलिसी के बीच रोजगार की तलाश में पलायन का दंश झेलने को यहां के लोग मजबूर थे।
काजू, आंवला व जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण है कई एकड़ जमीन
पेड़ों से तोड़े गए काजू
बदलते समय के साथ साथ कालचिति, बराजुड़ी, भादुआ,आसना समेत ग्रामीण क्षेत्रों की पहाड़ों पर एवं वन विभाग की कई एकड़ जमीन पर लगाए गए काजू ,आंवला सहित आयुर्वेदिक उपयोग के पेड़-पौधे लहलहा रहे हैं। कहने का मतलब यह कि यह इलाका कई प्रजाति के वन संपदाओं से परिपूर्ण है। यहां की वन संपदा फलों के मीठे स्वाद का आनंद लेने के साथ साथ स्थानीय ग्रामीणों, प्रवासी महिला-पुरुषों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं। यह समूचा इलाका सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र में अवस्थित होने के कारण ज्यादातर ग्रामीणों को जीविका उपार्जन के लिए पहाड़ो पर आश्रित रहना पड़ता है।
दामपाड़ा वन क्षेत्र में मिलनेवाला आंवला
पश्चिम बंगाल के बाजार में वनोत्पाद बेच आर्थिक उपार्जन कर रही महिलाएं
प्रत्येक दिन सुबह की पहली किरणों के साथ महिलाएं जंगलों की ओर रुख करते हुए इन वन संपदाओं को चुन कर अपने घर लाती हैं। उसके पश्चात अथक परिश्रम एवं हाथों के हुनर से तैयार वन संपदाओं को झारखंड एवं पश्चिम बंगाल सीमा पर अवस्थित ग्रामीण क्षेत्रों में लगने वाली साप्ताहिक हाट बाजारों में बेचकर अच्छी खासी रकम कमा लेती हैं।
जंगलों से वनोत्पाद लेकर निकलती महिला
हालांकि इतना कुछ करने के लिए उन्हें काफी अधिक परिश्रम करना पड़ता है। जो आमदनी होती हैं वह उनके अथक परिश्रम को देखते हुए काफी कम कही जाएगी। उसी आमदनी से किसी तरह गरीबी से जूझते जीविका चला रही हैं।
जरूरत रोजगार से जोड़ने की
यहां की वन संपदा एक तरह से इलाके के ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यहां के पहाड़ और जंगल औषधीय पौधे, फूल, एवं फलों समेत जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण हैं। वन सरकार की ओर से ध्यान दिया जाए तो यहां की संपदाओं के मदद से राज्य की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान की जा सकती है। साथ ही रोजगार के नए अवसर भी सृजित किए जा सकते हैं। आवश्यकता है तो सिर्फ झारखंड सरकार की सकारात्मक पहल की। नजरें इनायत हों तो इन वन उत्पाद से गांव को विकास के पथ को प्रशस्त करते हुए कैसे राज्य एवं समाज की वित्तीय स्थिति को मजबूत करते हुए नया आयाम रचा जा सकता है।