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वर्कर्स कॉलेज के तरंगोष्ठी में बोले केयू के पीजी विभाग के अध्यक्ष - हिंदी से हिंदुस्तान की पहचान

जमशेदपुर वर्कर्स महाविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर सेविषय पर एकदिवसीय तरंगोष्ठी का आयोजन किया गया। तरंगोष्ठी के आरंभ में महाविद्यालय के प्राचार्य सह तरंगोष्ठी के संरक्षक डॉ. सत्यप्रिय महालिक ने अपने संबोधन में कहा कि जब भी हम सब वैश्वीकरणतो सभी भाषाओँ पर चिंतन की आवश्यकता आ जाती है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Tue, 08 Jun 2021 04:07 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jun 2021 04:07 PM (IST)
वर्कर्स कॉलेज के तरंगोष्ठी में बोले केयू के पीजी विभाग के अध्यक्ष - हिंदी से हिंदुस्तान की पहचान
जमशेदपुर वर्कर्स कॉलेज में आयोजित हिंदी की तरंगोष्ठी में जुड़े शिक्षक व अतिथि

जमशेदपुर, जासं। जमशेदपुर वर्कर्स महाविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से “वैश्विक परिदृश्य में हिंदी की बढती भूमिका और चुनौतियाँ” विषय पर एकदिवसीय तरंगोष्ठी का आयोजन किया गया। तरंगोष्ठी के आरंभ में महाविद्यालय के प्राचार्य सह तरंगोष्ठी के संरक्षक डॉ. सत्यप्रिय महालिक ने अपने संबोधन में कहा कि जब भी हम सब वैश्वीकरण और व्यवसाईकरण की बातें करते हैं तो सभी भाषाओँ पर चिंतन की आवश्यकता आ जाती है क्योंकि भाषा ही सभी परिस्थितियों से जूझने में हमारी मददगार होती है। आज की वैश्विक परिदृश्य में भाषा पर चिंतन की आवश्यकता इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि विश्व अभी गंभीर परिस्थितियों से गुजर रहा है।

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     मुख्यवक्ता के रूप में कोल्हान विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग के अध्यक्ष डा.श्रीनिवास कुमार ने भाषा को संस्कृति का संवाहक और विकास का माध्यम बताते हुए कहा कि देश और मनुष्य की अस्मिता को सुरक्षित रखने के लिए भाषा को सुरक्षित रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। संक्षिप्तता, सरलता, सर्वव्यापकता एवं सुग्रह्यता जैसे गुण ही भाषा को चिरंजीवी बनाते है। भाषा लोगों को आपस में जोडती है जिससे देश की एकता का विकास होता है। हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है, हिंदी के समर्थक जितने हिंदी भाषी रहे हैं, उतने ही अन्य भाषा भाषी भी रहे। सरदार पटेल, महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस जैसे लोगों ने हिंदी को भारत की राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार करते हुए हिंदी वकालत की है क्योंकि भारत की सभी भाषाएं आपस में जुडी हुई है। हिंदी भाषा में सभी भाषाओँ से शब्द ग्रहण करने की अद्भुत क्षमता है, यही कारण है कि हिंदी का शब्द भण्डार अत्यंत समृद्ध है। हिंदी से हिंदुस्तान की पहचान है। चीन जैसे देश ने दुनियां के सभी देशों से अपने व्यापार संबंध बनाये, इसके लिए चीन ने उन सभी देशों की भाषाओं को जाना, समझा और सीखा है।

     विशेषवक्ता के रूप में करीम सिटी कॉलेज जमशेदपुर के प्राध्यापक डॉ. सुभाषचंद्र गुप्त ने हिंदी के साथ सभी भाषाओँ की अस्मिता पर मंडराते संकट पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भाषा के मरने से समाज और संस्कृति भी मर जाती है। आज हिंदी बाज़ार, विज्ञापन, मिडिया, कंप्यूटर, संचार माध्यम की भाषा है, लेकिन बाजारवाद आकर्षित करने के साथ-साथ आतंकित भी करता है। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष सुनीता गुडिया नें हिंदी की उपयोगिता और महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हिंदी विदेशों मे भी एक लोकप्रिय भाषा है, यहां के प्रवासी जब विदेश जाते हैं, तो अपने साथ अपनी संस्कृति और भाषा को भी ले जाते हैं। इस प्रकार भाषा विचारों के साथ संस्कृति की भी वाहक है। तरंगोष्ठी का संचालन हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक हरेन्द्र पंडित ने किया।


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