धन्यवाद मोदी जी, सब्जी बेचने वाले की बेटी गई इसरो तक
17 मई से लेकर 25 मई तक इसरो के वैज्ञानिकों से प्रशिक्षण लेने के बाद मांतू धालभूमगढ़ के लिए 26 मई को रवाना हो गई है। वह 28 मई की शाम को धालभूमगढ़ पहुंचेगी।
जमशेदपुर [वेंकटेश्वर राव]। केंद्र सरकार के यंग साइंटिस्ट प्रोग्राम के तहत पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूमगढ़ स्थित कस्तूरबा विद्यालय में 10वीं की छात्र छात्र मांतू पाणि को इसरो के श्रीहरिकोटा केंद्र व यहां के वैज्ञानिकों को काफी करीब से जानने का मौका मिला। 17 मई से लेकर 25 मई तक इसरो के वैज्ञानिकों से प्रशिक्षण लेने के बाद मांतू विद्यालय की वार्डेन मुकुल पाल के साथ यशवंतपुर-टाटानगर एक्सप्रेस से धालभूमगढ़ के लिए 26 मई को रवाना हो गई है। वह 28 मई की शाम को धालभूमगढ़ पहुंचेगी।
इस प्रशिक्षण के दौरान बिताए गए पलों को दैनिक जागरण के साथ साझा करते हुए मांतू ने बताया कि उसे उम्मीद नहीं थी एक सब्जी बेचने वाली की बेटी को इसरो तक जाने का मौका मिलेगा। यह सब कुछ संभव हुआ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैज्ञानिक सोच के कारण। मांतू ने पीएम मोदी को इसके लिए विशेष धन्यवाद दिया। मांतू ने बताया कि उसने राज्य की दो अन्य छात्रओं के साथ 17 मई से 20 मई तक इसरो के श्री हरिकोटा केंद्र से लाइव रॉकेट लांच देखा। वह क्षण बहुत रोमांचक था।
चंद्रयान -2 को काफी करीब से जानने का मौका मिला। वहां के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 के काम करने के तरीके और उसे बनाने की विधि के बारे में विस्तार से बताया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी गई।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पहली बार युवा विज्ञानी कार्यक्रम ‘युविका’ शुरुआत की है, जिसमें देश भर से करीब 108 छात्र शामिल हुए। 17 से लेकर 25 मई तक चले इस कार्यक्रम में झारखंड से भी तीन यंग साइंटिस्ट को शामिल होने का मौका मिला। डीपीएस रांची की 9वीं का छात्र धृति बर्णवाल, कस्तूरबा बालिका विद्यालय, जरीडीह, बोकारो की 12वीं की छात्र रिंकी और कस्तूरबा बालिका विद्यालय धालभूमगढ़, सिंहभूम की मांतू पाणि। ये तीनों छात्रएं 15 दिनों तक श्रीहरकिोटा में इसरो केंद्र में रहीं और स्पेस टेक्नोलॉजी, रॉकेट साइंस और एस्ट्रोनामी की बारीकियों को देखा और समझा। मांतू ने श्रीहरिकोटा में स्पेस टेक्नोलॉजी, रॉकेट साइंस और एस्ट्रोनामी की बारीकियों को जाना।
उसने बताया कि चंद्रयान-2 के साथ एक प्रज्ञान नाम का रोबोट भी भेजा जाएगा, जो हमें चंद्रमा के बारे में कई तथ्यों की जानकारी देगा। श्रीहरिकोटा के बाद मांतू बेंगलूरु गई। यहां उसे 21 मई से लेकर 25 मई तक वैज्ञनिकों ने अंतरिक्ष और विज्ञान की नई-नई तकनीकों के बारे में विस्तार से बताया।
पिता हाट-बाजार में बेचते हैं सब्जी
मांतू के पिता नागेंद्र पाणि धालभूमगढ़ और इसके आसपास के हाट-बाजारों में जा-जाकर सब्जी बेचते हैं। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। मां दीपाली पाणि घरेलू महिला है। वह आमदा गांव में झोपड़ीनुमा घर में रहती हैं और पति के कायरें में हाथ बंटाती हैं।
इसरो की सेवा करने को ठाना
मांतू ने दैनिक जागरण से कहा कि इसरो का यह टिप उनके जीवन में एक आमूलचूल परिवर्तन लेकर आया है। अब वह इसरो के लिए काम करना चाहती है। वह अपना लक्ष्य निर्धारित कर चुकी है। इसरो वैज्ञानिक बनना अब उसके जीवन का एकमात्र सपना है।
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