टेक एक्स में डिजिटल इंडिया का अक्स, स्वच्छ भारत की झलक
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : शावक नानावती टेक्निकल इंस्टीट्यूट (एसएनटीआइ) बिष्टुपुर के इंजी
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : शावक नानावती टेक्निकल इंस्टीट्यूट (एसएनटीआइ) बिष्टुपुर के इंजीनियरों के अभिनव वैज्ञानिक दक्षता में गुरुवार को 'डिजिटल इंडिया' का अक्स दिखा। मौका था एसएनटीआइ के सालाना टेक्नोलॉजी फेस्ट 'टेक-एक्स-2017' का। इसमें युवा इंजीनियरों की वैज्ञानिक सोच को प्रोजेक्ट के रूप में मॉडल का आकार देकर स्टॉल में प्रदर्शित किया गया। टेक फेस्ट में ऐसे कुल 44 स्टॉल लगाए गए थे। इन 44 स्टॉल में 67 टेक्नोलॉजी मॉडल प्रदर्शित किए गए। हर एक स्टॉल पर अभिनव वैज्ञानिक सोच को प्रदर्शित करते ये मॉडल आने वाले कल की एडवांस टेक्नोलॉजी की गवाही दे रहे थे। 67 स्टॉल में 63 स्टॉल एसएनटीआइ के छात्रों द्वारा तैयार टेक्नोलॉजी मॉडल थे तो वहीं चार मॉडल बीआइटी सिंदरी व आटीआइ तमाड़ व टीआरएफ के। गुरुवार को इस तीन दिवसीय टेक-एक्स का उद्घाटन टाटा संस के निदेशक ईशात हुसैन ने किया। टेक एक्स की खास बात यह कि इसमें डिजिटल इंडिया की झलक के साथ-साथ क्लीन इंडिया के लिए सार्थक साबित होने वाली तकनीक भी प्रदर्शित की गई। डिजिटल इंडिया को इंटरनेट पर आधारित तकनीक 'एडु बर्ड' जैसे मॉडल ने सशक्त करने का संदेश दिया तो वहीं 'वाई-फाई पंचिंग' जैसे मॉडल को भी प्रदर्शित किया गया। कूड़ा निष्पादन से बिजली बनाने व वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से बिजली उत्पादन जैसी तकनीक की प्रदर्शनी से स्वच्छता अभियान को भी टेक-एक्स में शोकेश किया।
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जल संरक्षण की तकनीक पर फोकस करें छात्र : ईशात
एसएनटीआइ के टेक-एक्स में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे टाटा संस के निदेशक ईशात हुसैन ने युवा इंजीनियरों को जल संरक्षण के लिए ज्यादा से ज्यादा तकनीक विकसित करने को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक दक्षता को वाटर रिसाइकलिंग की तकनीक विकसित करने पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है, क्योंकि भविष्य में हमें इसकी बेहद जरूरत पड़ने वाली है। उन्होंने कहा कि वेस्ट वाटर को रिसाइकिल करने से काफी जल संरक्षण किया जा सकता है। इस दौरान उन्होंने कूड़ा रिसाइकल करने को बनाए मॉडल की सराहना की। हुसैन ने कहा कि एसएनटीआइ के छात्र सही ट्रैक पर आगे बढ़ रहे हैं। छात्रों की क्रिएटिविटी को व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल करने भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए वैसी टेक्नोलॉजी को ज्यादा प्रमोट किया जाए जिन्हें मॉडल से वास्तविकता में उतारने की संभावना ज्यादा है।
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मूर्त रूप लेने वाले टेक्नोलॉजी को करें प्रोत्साहित : आनंद
टाटा स्टील के प्रेसीडेंट (टीक्यूएम) आनंद सेन ने टेक-एक्स में बतौर विशिष्ट अतिथि कहा कि एसएनटीआइ के छात्रों की प्रतिभा उनके मॉडल में स्पष्ट दिख रही है। मॉडलों में विविधता है। उन्होंने एसएनटीआइ प्रबंधन से अपील की कि अगले वर्ष से टेक-एक्स में टेक्नोलॉजी मॉडल्स को ग्रेड के आधार पर वर्गीकृत किया जाए। जो टेक्नोलॉजी वास्तविकता के तौर पर जमीन पर उतारी जा सकती है, उसे ए प्लस ग्रेड में रखा जाए। उन मॉडल्स को पेटेंट कर एसएनटीआइ आय का स्त्रोत भी विकसित करे। छात्रों के वैसे मॉडलों को ज्यादा प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है, जिन्हें वास्तविक टेक्नोलॉजी में तब्दील कर तकनीक को और एडवांस किया जा सके।
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बाइक के धुएं से बढ़ेगा माइलेज
टेक-एक्स में एसएनटीआइ के छात्रों ने वैसे तो एक से बढ़कर एक टेक्नोलॉजी प्रदर्शित की है, लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी टेक्नोलॉजी का मॉडल भी प्रदर्शित किया गया है, जिसमें बाइक के साइलेंसर पाइप से निकलने वाले धुएं को ही उसी बाइक के लिए उपयोगी बताया गया है। टेक्नोलॉजी विकसित करने वाले एसएनटीआइ टीम के लीडर अभिषेक बताते हैं कि यह तकनीक एक गैस टर्बाइन अल्टरनेटर पर केंद्रित है। इसके तहत साइलेंसर पाइप से निकलने वाला धुएं को इस टर्बाइन से गुजारा जाता है। जिससे इसका हीट डीसी एनर्जी में तब्दील हो जाता है। इसी डीसी एनर्जी को बाइक की बैटरी में भेजा जाता है, जो बैटरी संचालित सभी कार्य करती है और 40 फीसद पेट्रोल बचाती है।
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हवा से चल रही दिव्यांगों की ट्राइसाइकिल
टेक-एक्स में एक ऐसी टेक्नोलॉजी भी छात्रों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है, जिसमें ट्राइसाइकिल को चलाने के लिए हवा का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस टेक्नोलॉजी को एसएनटीआइ की नेहा कुमारी, श्वेता दांगिल, विकास कुमार व दीपक कुमार रजक ने तैयार किया है। सात हजार के खर्च पर बनी इस टेक्नोलॉजी की मदद से दिव्यांगों को अपनी ट्राइसाइकिल चलाने के पैडल नहीं घुमाना पड़ेगा। एक बार पंप से सिलिंडर में हवा भरने पर यह पांच किलोमीटर का सफर तय कर सकती है। टीम लीडर नेहा कुमारी के मुताबिक यह पिस्टन सिस्टम से चलती है। हवा के दबाव से ट्राइसाकिल में बना सिस्टम पहिए को घुमाता है, जिससे ट्राइसाइकिल चलने लगती है।
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सिलाई मशीन से जला सकते घर के दो बल्व
टेक-एक्स में एसएनटीआइ के छात्रों ने सिलाई मशीन से घर के दो बल्व जलाने की टेक्नोलॉजी भी प्रदर्शित की है। इसके तहत एक दिन में कपड़े सीने वाली सिलाई मशीन से घर के दो बल्ब जलाने लायक बिजली उत्पादित की जा सकती है। सिलाई मशीन के पहिए के घूमने की ऊर्जा को डायनेमो के जरिए इलेक्ट्रिसिटी में तब्दील किया जाता है। यह बिजली किसी बैट्री में संरक्षित कर इसी से रात को दो बल्ब जलाए जा सकते हैं। टेक एक्स में कपड़ा सिलाई मशीन की यह तकनीक भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रही। इस तकनीक को सरल व सबसे सुगम तकनीक के रूप में देखा गया।
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रसोई में बेकार होने वाले तेल से चलेगी कार
एसएनटीआइ के छात्रों ने रसोई में इस्तेमाल होने वाले तेल, जो खाने में इस्तेमाल होते हैं, से कार चलाने की टेक्नोलॉजी प्रदर्शित की। यह टेक्नोलॉजी खाने में इस्तेमाल होने वाले तेल पर केंद्रित है। एसएनटीआइ छात्रों के मुताबिक वेस्ट एडिबल ऑयल को बायो डीजल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। बायो डीजल वाहनों को चलाने में आसानी से इस्तेमाल किया जाता है। छात्रों के मुताबिक टाटा इंडिका कार में बायो डीजल का परीक्षण किया जा चुका है। बायो डीजल से डीजल कार के इंजन की आवाज भी कम होती है और गाड़ी की पावर भी बढ़ जाती है। छात्रों के मुताबिक यह टेक्नोलॉजी घरों के मुकाबले उन तेल निर्माता कंपनियों के लिए बेहद उपयोगी है जो खाने वाले तेल सप्लाई करते हैं। वहां वेस्टेज की मात्रा अधिक होती है।
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मैग्नेटिक रेफ्रिजरेटर बनेगा आपके फ्रिज का विकल्प
एसएनटीआइ में वैज्ञानिक सोच से एक अनोखे रेफ्रिजरेटर का इजाद किया गया है जो मैग्नेटिक तकनीक से कूलिंग करता है। इसे एसएनटीआइ के बुधन सिंह जोंको, द्वैद कुमार, अभिशेक कुमार सिंह, वीणा कुमारी व पूजा कुमारी ने डिजाइन किया है। यह डिजाइन मैग्नेटो क्लोरिक इफैक्ट पर केंद्रित है। इसम गैडोलीनियम नाम के मेटल की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह मेटल बेहद कम पाया जाता है। छात्रों के मुताबिक पूरे विश्व में साल भर में मात्र 400 टन गैडोलीनियम का उत्पादन होता है। इसकी तकनीक मैग्नेटिक फील्ड से प्रभावित है। छात्रों के मुताबिक जब गैडोलीनियम को मैगनेटिक फील्ड में रखा जाता है तो यह बेहद गर्म हो जाता है, लेकिन जैसे ही मैगनेटिक फील्ड समाप्त होता है, इसका तापमान कमरे के तापमान से भी काफी नीचे चला जाता है। इसी अवस्था का उपयोग मैग्नेटिक रेफ्रिजरेटर के रूप में किया जा सकता है। इसमें बिजली काफी कम खर्च होती है।
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पैडल मार कर खेतों की सिंचाई को पंप कर सकते पानी
पैडल ऑपरेटेड पंप की तकनीक से भविष्य में आप खेतों में सिंचाई के लिए पानी पंप कर सकते हैं। न बिजली की जरूरत न जेनरेटर की। एसएनटीआइ के छात्र हेमंत, मुकेश, विश्वजीत, मनीषा, सुनिधि, कल्याणी व मधुरिमा ने इस मॉडल को डिजाइन किया है। यह तकनीक 'कंप्रेशन एंड सडेन रिलीज' की थ्यूरी पर काम करता है। टीम लीडर हेमंत के मुताबिक एक साधारण सा पहिया व पैडल लगाकर पानी को न सिर्फ पंप किया जा सकता है, बल्कि मोबाइल भी चार्ज किया जा सकता है। अव्वल यह कि इससे शारीरिक कसरत भी हो जाएगी। इस तकनीक के तहत पहिये पर पैडल मार कर ट्यूब में निगेटिव प्रेशर बनाया जाता है, जिससे ट्यूब में वैक्यूम क्रिएट होता है। इस वैक्यूम से पानी पंप होती है जिससे ऊंचाई पर भी पानी को चढ़ाया जा सकता है।
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