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एमडीआर टीबी की चपेट में एमजीएम की डॉक्टर, टीएमएच की नर्स व एनआइटी का छात्र

शहर में एमडीआर (मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट) टीबी गंभीर रूप ले लिया है। इसकी चपेट में महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल की एक महिला डॉक्टर, टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) की तीन सीनियर नर्स व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआइटी) का एक छात्र आ गया हैं। इसका खुलासा जिला यक्ष्मा विभाग की गोपनीय रिपोर्ट में हुआ है। सभी पीड़ितों का नाम गुप्त रखा गया है। जिससे उनके इलाज व समाज में उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं हो।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Oct 2018 07:23 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 07:23 PM (IST)
एमडीआर टीबी की चपेट में एमजीएम की डॉक्टर, टीएमएच की नर्स व एनआइटी का छात्र
एमडीआर टीबी की चपेट में एमजीएम की डॉक्टर, टीएमएच की नर्स व एनआइटी का छात्र

अमित तिवारी, जमशेदपुर : शहर में एमडीआर (मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट) टीबी गंभीर रूप ले लिया है। इसकी चपेट में महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल की एक महिला डॉक्टर, टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) की तीन सीनियर नर्स व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआइटी) का एक छात्र आ गया हैं। इसका खुलासा जिला यक्ष्मा विभाग की गोपनीय रिपोर्ट में हुआ है। सभी पीड़ितों का नाम गुप्त रखा गया है। जिससे उनके इलाज व समाज में उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं हो।

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रिपोर्ट के अनुसार, शहर में पहली बार कोई डॉक्टर, नर्स व इंजीनियर छात्र एमडीआर टीबी की चपेट में आए हैं। सबका इलाज जिला यक्ष्मा विभाग के अंतर्गत किया जा रहा है। विभाग का आंकड़ा देखा जाए तो चार साल में चार गुना एमडीआर टीबी मरीजों की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2015 से लेकर अबतक कुल 145 मरीजों की पुष्टि हो चुकी है। वहीं तीन साल में करीब 15 मरीजों की मौत हो चुकी है। इससे टीबी अस्पताल में कार्यरत सभी चिकित्सकीय कर्मचारी सहमे हुए हैं। उनका कहना है कि संक्रमित मरीजों के बीच वे लोग काम करते हैं लेकिन सुरक्षा के कोई खास उपाय नहीं है। मास्क मिलता भी है तो उसकी गुणवक्ता सही नहीं है। एमडीआर टीबी मरीजों के संपर्क में आने से दूसरे लोगों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है। टीबी बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है, जो हवा के जरिए एक से दूसरे इंसान में फैलती है। टीबी के बैक्टिरिया शरीर के जिस भी हिस्से में होते हैं, उसके टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देते हैं और इससे उस अंग का काम प्रभावित होता है।

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बंद पड़ा है एमडीआर टीबी वार्ड

सदर अस्पताल में तीन साल पहले 10 लाख रुपये की लागत से बनाए गए एमडीआर टीबी वार्ड बंद पड़ा है। विभाग में न तो डॉक्टर हैं और न ही कर्मचारी। वार्ड को संचालित करने के लिए कम से कम एक मेडिकल ऑफिसर, एक काउंसलर, एक डाटा इंट्री कर्मचारी व एक असिस्टेंट की आवश्कता है, जो नहीं हैं। वार्ड में महिला व पुरुष के लिए पांच-पांच बेड आरक्षित हैं।

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क्या है एमडीआर टीबी

टीबी का अगला स्टेज मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) होता है। इसे गंभीर टीबी भी कहते हैं। टीबी की दवाओं का असर जब मरीज पर नहीं होता है। इस स्थिति में डॉट प्लस थैरेपी से मरीज को दवाएं दी जाती हैं। यह काफी मुश्किल वक्त होता है।

सबकुछ है मुफ्त

टीबी के रोगियों का इलाज व दवा सबकुछ सरकार की ओर से मुफ्त में होता है। यहां तक की रोगी को पुष्टाहार भी मुफ्त में मिलता है। दवा निगरानी खुद डॉक्टर करते हैं।

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एमडीआर टीबी की संख्या

वर्ष मरीज मौत

2015 16 04

2016 25 05

2017 51 02

2018 53 04 (अबतक)

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टीबी का इलाज संभव है। दो हफ्ते से ज्यादा खांसी, कभी-कभार खून, भूख कम लगने सहित अन्य समस्या होने पर जांच करानी चाहिए। एमडीआर टीबी होने पर मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है। इसलिए लक्षण सामने आते ही जांच करानी चाहिए।

- डॉ. प्रभाकर भगत, जिला यक्ष्मा पदाधिकारी।


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