Tata-vs-Indigo : एयर इंडिया टाटा की हो गई तो इंडिगो के साथ मिल ऐसे बदल जाएगा विमानन उद्योग का नक्शा
Tata-vs-Indigo एयर इंडिया किसकी झोली में जाएगा यह तो वक्त के गर्भ में छिपा है। लेकिन एक बात तो तय हैं कि अगर टाटा के पाले में यह सरकारी उपक्रम जाता है तो फिर भारतीय विमानन उद्योग का परिदृश्य ही बदल जाएगा। जानिए कैसे..
जमशेदपुर, जासं। अब टाटा एयर इंडिया के अधिग्रहण करने की प्रतिस्पर्धा में काफी नजदीक पहुंच चुका है। हालांकि अभी उसे स्पाइसजेट और इंडिगो से भी जंग जीतनी है, लेकिन अभी से यह कहा जा रहा है कि टाटा को यदि एयर इंडिया मिल गई तो भारतीय विमानन उद्योग का नक्शा बदल सकता है। खासकर तब-जब टाटा अपनी विस्तारा और एयरएशिया को एयर इंडिया में विलय कर देगा।
वित्तीय मामले में टाटा से कमजोर है इंडिगो
फिलहाल, टाटा से मजबूत दावेदार कोई नहीं दिख रहा है। इंडिगो फिलहाल निजी विमानन में सबसे मजबूत खिलाड़ी है, लेकिन वित्तीय स्थिति के मामले में टाटा से कमजोर दिख रही है। उसे हवाईसेवा से काफी नुकसान भी हुआ है। इसके कई विमान बेकार पड़े हैं, तो मजबूत विकल्प सामने आते ही इसके कमांडर व जूनियर पायलट कभी भी छोड़कर जा सकते हैं।
पिछली छह तिमाही में दस हजार करोड़ का नुकसान
इंडिगो का घाटा बहुत अधिक है। पिछली छह तिमाही में उसे लगभग 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। इसके पास पहले से अतिरिक्त अधिकारी हैं, लेेकिन मौजूदा स्थिति में वे भी नाखुश बताए जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंडिगो प्रबंधन ने खुद यह स्वीकार किया है कि वह अब तक की सबसे कमजोर स्थिति में है। इससे उबरने के लिए कुछ प्रयास भी किए, लेकिन समस्या जस की तस हैं। विशेषज्ञों की राय है कि यदि इंडिगो को कोविड पूर्व की स्थिति में लौटना है तो एक साथ कई कदम उठाने होंगे।
अधिक वेतन-सुविधा की मांग कर रहे पायलट
इंडिगो के एक वरिष्ठ अधिकारी का बयान आया था कि उसके पायलट और चालक दल बहुत अधिक वेतन व सुविधा की मांग कर रहे हैं। अपने कर्मचारियों का वेतन जुटाने में एयरलाइन की प्रारंभिक स्थिति संकट के रूप में बनी हुई है। जो पायलट बहुत बेहतर हैं, बेहतर वेतन दिया जा रहा है। कंपनी खुद को पुनर्जीवित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। इसके बजाय, इंडिगो में रैंक को लेकर रोज शिकायत मिल रही है।
छोटे कर्मचारियों ने कम वेतन मिलने की शिकायत की थी
छोटे कर्मचारी 40 प्रतिशत तक वेतन ले जा रहे थे, अब वे खुद की तुलना वरिष्ठ प्रबंधन की कमाई से करते हैं। हाल ही में विवाद की एक वजह सवैतनिक छुट्टी को लेकर भी हुआ। प्रबंधन यह कहकर जवाबी कार्रवाई करता है कि वे भी इसी तरह की कटौती के अधीन हैं, लेकिन पायलटों के विपरीत, उन्हें पूरे दिन काम करना पड़ता है। आज के तनावपूर्ण परिदृश्य में इस तरह की छुट्टी का कोई मतलब नहीं है। ऐसे माहौल में टाटा अपनी विलय वाली रणनीति से इंडिगो को आसानी से पछाड़ सकता है।
टाटा की विस्तारा व एयर एशिया भी घाटे में
एक तरफ मौजूदा विमानन क्षेत्र में सबसे बड़ी निजी कंपनी इंडिगो घाटे में है, तो टाटा की विस्तारा और एयर एशिया भी घाटे में चल रही है। एक अनुमान के मुताबिक दोनों एयरलाइंस का घाटा करीब 8000 करोड़ रुपये है। अब तक टाटा ने विस्तारा और एयरएशिया इंडिया के लिए जो भी बड़े अधिकारी लाए, वे इसे घाटे से नहीं उबार सके। भले ही पिछले डेढ़ वर्ष में कोरोना को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन कहीं न कहीं इनकी रणनीतिक विफलता की बात भी सामने आ रही है। कहा जा रहा है कि सिंगापुर और मलेशिया के अधिकारियों को भारतीय विमानन क्षेत्र को समझने में कठिनाई हो रही है। बहरहाल, कारण जो भी रहे हों, लेकिन टाटा की मौजूदा विमानन कंपनी की हालत भी बहुत बढ़िया नहीं कही जा सकती है।
विदेशी अधिकारी जिम्मेदार, तो कहां से लाएं टीम लीडर
ऐसे में विमानन उद्योग के माहिर कहते हैं कि इंडिगो के अलावा विस्तार और एयर एशिया इसलिए घाटे में चल रही हैं, क्योंकि इनके ज्यादातर बड़े अधिकारी विदेशी हैं। यह अभी बहस का मुद्दा बना हुआ है, लेकिन इन कंपनियों के शीर्ष प्रबंधन कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का प्रबंधन करने के लिए सिर्फ भारतीय अधिकारियों के भरोसे नहीं हो सकता। विदेश से तारतम्य बैठाने के लिए वहां के अधिकारी भी चाहिए।
विश्व स्तर पर विमानन उद्योग में किसी को ढूंढना आसान नहीं होगा। उम्मीद है कि एयर इंडिया की खरीद के बाद उबरने के बाद जब भारतीय विमानन का दायरा बड़ा होगा और प्रतिस्पर्धी कम होंगे तो इस समस्या में सुधार होने की पूरी संभावना है। इस बात से इंडिगो भी चिंतित है कि टाटा को एयर इंडिया मिलने के बाद की चुनौती से कैसे निपटा जाए।