114 साल पहले आज के ही दिन इंग्लैंड में रजिस्टर्ड हुई थी टाटा स्टील, तब 2.31 करोड़ था शुरुआती पूंजी
114 साल पहले 26 अगस्त 1907 में लंदन में टाटा स्टील कंपनी इंडियन कंपनी एक्ट के तहत इंग्लैंड में रजिस्टर्ड हुई थी। उस समय कंपनी की शुरुआती पूंजी 2.31 करोड़ थी। आज इस कंपनी की पूंजी 156622.93 करोड़ रुपये है। जानिए इस कंपनी का रोचक इतिहास...
जमशेदपुर : भारत की सबसे पहली इस्पात कंपनी, टाटा स्टील आज से 114 साल पहले, 26 अगस्त 1907 को इंग्लैंड में पंजीकृत हुई थी। इंडियन कंपनी एक्ट 1882 के तहत पंजीकृत टाटा स्टील तब दो करोड़ 31 लाख 75 हजार रुपये में संयुक्त बिहार के छोटानागपुर के साकची में स्थापित की गई थी। वर्तमान में टाटा स्टील का मार्केट कैपिटल 156,622.93 करोड़ रुपये है।
टाटा स्टील की स्थापना के पीछे एक लंबी कहानी है। वर्ष 1899 में मेजर महोन ने भारत में इस्पात उद्योग को बढ़ावा देने की सिफारिश करते हुए एक रिपोर्ट भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन को दी। इस सिफारिश की बदौलत ही लार्ड कर्जन ने भारत में खनिज रियायत नीति को उदार बनाया गया। जिसके बाद भारत में पहली एकीकृत इस्पात कंपनी स्थापित करने के लिए जमशेदजी नसरवान जी टाटा को सुनहरा अवसर प्रदान किया।
हालांकि जमशेदजी के लिए यह इतना आसान नहीं था क्योंकि कंपनी को इंग्लैंड में पंजीकृत करने के बाद ब्रिटिश निवेशकों की प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक नहीं थी। दो करोड़ 31 लाख 75 हजार की पंजीकृत मूल पूंजी को जुटाने का नोटिस ब्रिटिश सरकार ने जारी किया। निवेशक नहीं मिलने के बावजूद जमशेदजी टाटा ने मात्र तीन सप्ताह के भीतर पूरी राशि जुटाई और वर्ष 1908 में साकची में वर्क्स निर्माण की शुरूआत की और 16 फरवरी 1912 में यहां से पहला इंगोट का उत्पादन हुआ।
75 रुपये की दर से जारी किए गए थे ऑडिनरी शेयर
कंपनी एक्ट की शर्तो के अनुसार टाटा स्टील ने निवेशकों के लिए 75 रुपये की दर से दो लाख ऑडिनरी शेयर जारी किए। जिसकी उस समय कीमत 1.5 करोड़ रुपये थी। इसके अलावा 150 रुपये की दर से 50 हजार परफॉर्मेंस शेयर (कीमत 75 लाख रुपये) और 30 रुपये की दर से 22,500 डेफड शेयर (कीमत 6.75 लाख रुपये) कंपनी ने जारी किए थे।
सरकार ने इस्पात खरीदने का किया था वादा
टाटा स्टील ने जब उत्पादन शुरू किया तब देश में इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में इतने काम नहीं होते थे। देश में जो भी निर्माण कार्य किए जाते थे या रेल लाइन बिछाए जाते थे, वह सब ब्रिटिश सरकार के माध्यम से होते थे। ऐसे में जमशेदजी टाटा इस्पात संयंत्र स्थापित करे, उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार की ओर से उन्हें एक आधिकारिक पत्र जारी किया गया। इसमें उनसे वादा किया गया कि ब्रिटिश सरकार उनसे इस्पात खरीदेगी। साथ ही सरकार ने अन्य सहायता देने की भी भरोसा दिलाया।
जमशेदजी टाटा ने 1902 में शुरू की थी पहल
भारत में इस्पात संयंत्र खुले, इसके लिए जमशेद जी टाटा ने वर्ष 1902 से ही पहल शुरू कर दी थी। इसी वर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका के पिट्सबर्ग में जमशेदजी की मुलाकात जूलियन कैनेडी सहलिन एंड कंपनी के प्रमुख जूलियन कैनेडी से हुई। जमशेदजी ने कैनेडी से भारत में इस्पात संयंत्र स्थापित करने की इच्छा जाहिर की। इस पर उन्होंने जमशेदजी हो स्थानीय परिस्थिति, कच्चे माल की उपलब्धता और भारत में बाजार की स्थिति के लिए गहन जांच का सुझज्ञव दिया।
साथ ही उन्होंने इसके लिए न्यूयॉर्क के प्रख्यात कंसल्टिंग इंजीनियर चार्ल्स पेज पेरिन के नाम की सिफारिश की। 24 फरवरी 1904 में टाटा को भूगर्भ वैज्ञानिक प्रमथनाथ बोस का एक पत्र मिला। जिसमें उन्होंने मयूरभंज राज्य में उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क व झरिया में कोयले की उपलब्धता की जानकारी दी थी। वहीं, वर्ष 1905 में चार्ल्स पेज पेरिन ने अपने सहयोगी सीएम वेल्ड की मदद से इस्पात संयंत्र निर्माण का खाका तैयार कर रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस पर वर्ष 1905 में मयूरभंज के महाराजा ने टाटा को सर्वेक्षण (प्रॉस्पेक्टिंग) लाइसेंस प्रदान किया।