Tata Motors : टाटा मोटर्स करेगी अपने प्लांट का डिबॉटलनेकिंग, कोई नई फैक्ट्री की नहीं है योजना
Tata Motors टाटा मोटर्स को वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में 4441 करोड़ का घाटा हुआ है। फिर भी नए प्लांट का विस्तार करने की योजना नहीं है। टाटा की कारों की डिमांड काफी है लेकिन कंपनी सीमित संसाधन में ही उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
जमशेदपुर : देश में कोविड 19 के बाद तेजी से निजी वाहनों की डिमांड बढ़ी है क्योंकि संक्रमण से बचने के लिए अधिकतर मध्यमवर्गीय आबादी अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बजाए अपने निजी वाहन खरीद रहे हैं। इसके अलावा पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के कारण अब देशवासियों का रूझान इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर ज्यादा है।
ऐसे में टाटा मोटर्स के वाहन इन दिनों मार्केट लीडर बनकर उभरे हैं। हालांकि कंपनी प्रबंधन का कहना है कि वाहनों की डिमांड बढ़ने पर भी कंपनी की कोई नई फैक्ट्री तैयार करने की कोई योजना नहीं है वह अपने प्लाटों का डिबॉटलनेकिंग कर क्षमता विस्तार करेगी।
जाने क्या होता है डिबॉटलनेकिंग
डिबॉटलनेकिंग का अर्थ होता है कंपनी की वर्तमान उत्पादन क्षमता को सीमित संसाधनों के आधार पर बढ़ाना है। इसके लिए कंपनी को निवेश में भी ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा। कंपनी प्रबंधन को सीमित संसाधनों की ही क्षमता बढ़ाएगी। अक्टूबर माह में टाटा मोटर्स ने 34,000 वाहनों की बिक्री की जबकि कंपनी की मासिक क्षमता 40,000 ईकाई है। यह कंपनी की कुल मासिक क्षमता का 85 प्रतिशत है।
इसके बावजूद कंपनी इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण निवेश किए बिना अपने कारखानों को और अधिक मंथन करने के लिए डिबॉटलनेकिंग कर रही है। मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में मामूली सुधार के बावजूद टाटा मोटर्स आधा मिलियन यूनिट का उत्पादन करने के लिए आगे बढ़ेगा। जो मारुति सुजुकी और हुंडई के बाद भारत में तीसरा सबसे बड़ा होगा।
मार्केट की डिमांड को देखते हुए की जाएगी डिबॉटलनेकिंग
टाटा मोटर्स के सीएफओ पीबी बालाजी हाल ही में कहा था कि हमारे प्लांट की मासिक उत्पादन क्षमता 40 हजार यूनिट है। हम अपनी वर्तमान क्षमता से आगे भी बढ़ सकते हैं। लेकिन हम बाजार की डिमांड पर अपने प्लांट का डिबॉटलनेकिंग करेंगे। क्योंकि हम निवेश के अभाव में कंपनी के डेवलपमेंट को नहीं रोकेंगे। हमारी वार्षिक क्षमता 480,000 यूनिट है और जरूरत पड़ने पर हम अपनी उत्पादन को बढ़ाएंगे। वर्तमान में कोई ग्रीन फील्ड परियोजना की योजना नहीं बनाई गई है। हमारे पास साणंद और रंजनगांव में विस्तार करने की पर्याप्त क्षमता है, इसलिए हम तय करेंगे कि लंबी अवधि में हमारे लिए क्या सही है
इन स्थानों पर टाटा मोटर्स करती है पैसेंजर कार का उत्पादन
टाटा मोटर्स तीन स्थानों, पुणे, रंजनगांव (दोनों महाराष्ट्र में) और साणंद (गुजरात) में अल्ट्रोज़, नेक्सॉन, पंच, सफारी, हैरियर, टियागो और टिगोर जैसे यात्री वाहन बनाती है। वहीं जमशेदपुर, लखनऊ व धारवाड़ में कॉमर्शियल व्हीकल का निर्माण होता है। कंपनी के अनुसार, वित्त वर्ष 2012 में मासिक उत्पादन की बढ़ोतरी के लिए डिबॉटलनेकिंग किया जिसका रिजल्ट काफी अच्छा रहा।
पैसेंजर व्हीकल की बिक्री हुई दोगुनी
बालाजी का कहना है कि टाटा मोटर्स ने एक साल से भी कम समय में अपनी पैसेंजर वाहनों बिक्री लगभग दोगुनी कर ली है। पिछले साल अगस्त में लगभग हमने लगभग 18,000 इकाइयों से कंपनी कई लॉच और घरेलू बाजार के नए क्षेत्रों में निरंतर दबाव के कारण बिक्री में सुधार करने में सफल रहे। हालांकि सेमीकंडक्टर्स की आपूर्ति की कमी से बिक्री थोड़ी प्रभावित रही। जबकि अधिकतर वाहन निर्माता कंपनियों को गंभीर रूप से प्रभावित किया गया है।
छह से आठ सप्ताह की है वेटिंग
टाटा मोटर्स प्रबंधन का दावा है कि उसके मॉडलों की औसत प्रतीक्षा अवधि छह से आठ सप्ताह है जबकि अधिक लोकप्रिय मॉडल के लिए प्रतीक्षा अवधि 9-10 सप्ताह है। इसके इलेक्ट्रिक वाहनों का वेटिंग पीरियड 6 महीने का होता है। नए लॉच किए गए मॉडल पंच, जिसने 8,000 इकाइयों की बिक्री की है, की प्रतीक्षा अवधि तीन से चार सप्ताह है। हम हर दिन बाजार की डिमांड पर नजर बनाए हुए हैं । क्योंकि पूर्व में हम 25 हजार तक मासिक उत्पादन करते थे जो बढ़कर 30 हजार से अधिक हो चुका है। इसमें भी पेट्रोल वर्जन् के वाहनों की डिमांड 75 से 80 प्रतिशत है।