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भारत में बोनस, मातृत्व अवकाश और ग्रेच्युटी नेताजी की देन, टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्‍यक्ष भी थे सुभाष चंद्र बोस

Subhash Chandra Bose. नेताजी सुभाष चंद्र बोस टाटा वर्कर्स यूनियन के आठ साल तक अध्यक्ष रहे थे। इस दौरान उन्होंने टाटा स्टील में मातृत्व अवकाश बोनस ग्रेच्यूटी समेत कई प्रावधान करवाया था। इसके दशकों बाद बाद भारत सरकार ने अधिनियम बनाकर इसे लागू किया।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 04:37 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 08:35 AM (IST)
भारत में बोनस, मातृत्व अवकाश और ग्रेच्युटी नेताजी की देन, टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्‍यक्ष भी थे सुभाष चंद्र बोस
नेताजी ने टाटा स्टील में प्रोफिट शेयरिंग बोनस 1934 में लागू कराया था।

जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा।  Subhash Chandra Bose Birth Anniversary Special  देश की सबसे बड़ी और पुरानी मजदूर यूनियन में शुमार टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष नेताजी सुभाषचंद्र बोस भी थे। उन्होंने आठ वर्ष तक इस यूनियन का नेतृत्व किया। टाटा के मजदूरों के आग्रह और गांधीजी की सलाह के बाद 1928 में जब नेताजी ने इस यूनियन का नेतृत्व स्वीकार किया, तब उनके सामने बड़ी चुनौती थी। उनसे पहले इस यूनियन का नेतृत्व कोलकाता के बैरिस्टर एसएन हलदर व दीनबंधु सीएफ एंड्रयूज कर चुके थे।

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इस अवधि में उन्होंने मजदूरों के हित में बोनस, मातृत्व अवकाश, ग्रेच्युटी समेत कई समझौते कराए, जिसे 30-40 वर्ष बाद भारत सरकार ने श्रम अधिनियम में शामिल करके कानून बनाया। नेताजी ने टाटा स्टील में प्रोफिट शेयरिंग बोनस 1934 में लागू कराया था, जिसे भारत सरकार ने 1965 में एक्ट बनाया। ग्रेच्युटी 1937 में लागू कराया, जिसे भारत सरकार ने 1972 में एक्ट बनाया। इसी तरह टाटा स्टील में मातृत्व अवकाश 1929 में शुरू हुआ, जबकि भारत सरकार ने इसे 1961 में लागू किया। ये सभी समझौते 12 सितंबर 1928 को हुए थे, जिस पर टाटा प्रबंधन के साथ नेताजी ने हस्ताक्षर किया था। 

 विकट परिस्थिति में किया था टाटा के मजदूरों का नेतृत्व

उस वक्त कंपनी में हड़ताल चल रही थी। हड़ताल थमने का नाम नहीं ले रहा था। इसी बीच 11 अगस्त 1928 को टाटा प्रबंधन ने नोटिस जारी कर दिया, जिसमें एक तरह से मजदूरों को हड़ताल खत्म करने की धमकी दी गई थी। नोटिस में कहा गया था कि 20 अगस्त तक हड़ताली मजदूर काम पर वापस नहीं लौटे, तो नई भर्ती ली जाएगी और हड़ताली मजदूरों की सेवा समाप्त कर दी जाएगी। उनका क्वार्टर खाली करा लिया जाएगा। ऐसी विकट परिस्थिति सामने देखकर टाटा वर्कर्स यूनियन के स्थानीय नेता केजी शेट्टी, मणि घोष, शर्मा, सुंदरम आदि ने कोलकाता जाकर नेताजी से संपर्क किया। उन्हें सारी परिस्थिति से अवगत कराया।

18 अगस्‍त 1928 को आए थे जमशेदपुर

नेताजी 18 अगस्त को जमशेदपुर आए और 20 अगस्त काे उन्हें टाटा वर्कर्स यूनियन (तब लेबर एसोसिएशन) के सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुन लिया गया। नेताजी ने प्रबंधन से वार्ता शुरू की, तो साथ-साथ मजदूरों की सभा करके वार्ता से अवगत कराते थे। उनकी सभाओं में 40 से 50 हजार मजदूर जुटते थे। नेताजी की नेतृत्व क्षमता से प्रभावित होकर प्रबंधन ने भी नरम रवैया अपनाना शुरू किया। चार सितंबर को मुंबई से टाटा कंपनी के निदेशक आए और उन्होंने नेताजी की मांगों के अनुकूल कंपनी के प्रबंधक को एक सप्ताह के अंदर समझौता पत्र तैयार करने को कहा। 

 नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में 1928 को हुए समझौते के प्रमुख बिंदु

  •  विभागीय बोनस : विभागीय बोनस के विवरण के संबंध में लेबर एसोसिएशन के किसी भी निवेदन पर महाप्रबंधक गंभीरता से विचार करेंगे।
  •  सेवा की सुरक्षा : कर्मचारियों की शिकायतों पर विचार-विमर्श करने के उद्​देश्य से कर्मचारियों एवं प्रबंधन को एक-दूसरे के नजदीक लाने के लिए शीघ्र ही कुछ अंदरूनी कार्यप्रणाली गठित की जाएगी। महाप्रबंधक इस संबंध में लेबर एसोसिएशन के सुझावों का स्वागत करेंगे।
  • स्थानापन्न भत्ता (एक्टिंग एलाउएंस) : प्रबंधन घोषणा करती है कि स्थानापन्न भत्ता देने का सिद्धांत स्थापित है। इस सिद्धांत को लागू करने पर अब पुनर्विचार किया जाएगा। 
  • मासिक वेतन से दैनिक मजदूरी की सूची में स्थानांतरण : किसी कर्मचारी को मासिक वेतन की सूची से दैनिक मजदूरी की सूची में स्थानांतरित किया जाता है, तब वह जो विशेषाधिकार खो देता है, उसका ख्याल उसकी मजदूरी की दर तय करते समय रखा जाएगा।
  •  शिशु कक्ष व विश्राम गृह : नवजात शिशुओं के लिए कक्ष तथा श्रमिकों के लिए विश्राम गृह बनाने पर शीघ्र कदम उठाया जाएगा।
  •  रिक्त स्थानों के लिए विज्ञापन : जब ऊंचे पदों पर बाहर के लोगों की नियुक्ति करनी होगी, तो भारतीय अखबारों में इसके विज्ञापन प्रकाशित किए जाएंगे।

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