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स्टील वेस्ट से पेंट उद्योग का बदलेगा स्वरूप, दुनिया में कहीं नहीं है यह तकनीक

स्टील इंडस्ट्री के लिए बड़ी समस्या बन चुके स्टील वेस्ट की रिसाइक्लिंग की नई तकनीक एनएमएल ने ईजाद की है जो पेंट उद्योग की सूरत बदल सकती है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 05 Jul 2019 11:29 AM (IST)Updated: Fri, 05 Jul 2019 11:29 AM (IST)
स्टील वेस्ट से पेंट उद्योग का बदलेगा स्वरूप, दुनिया में कहीं नहीं है यह तकनीक
स्टील वेस्ट से पेंट उद्योग का बदलेगा स्वरूप, दुनिया में कहीं नहीं है यह तकनीक

जमशेदपुर, विकास श्रीवास्तव। स्टील इंडस्ट्री के लिए बड़ी समस्या बन चुके स्टील वेस्ट की रिसाइक्लिंग की नई तकनीक एनएमएल ने ईजाद की है जो पेंट उद्योग की सूरत बदल सकती है। यह है जिंक ड्रास से जिंक पाउडर का उत्पादन।

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प्रिंसिपल साइंटिस्ट संजय प्रसाद का दावा है कि स्टील वेस्ट से जिंक पाउडर के उत्पादन की यह तकनीक किसी भी देश के पास नहीं है। एनएमएल ने इस तकनीक को भारत में पेटेंट कराया है और जल्द ही बड़े पैमाने पर इसका व्यावसायिक उत्पादन भी शुरू हो जाएगा। जिंक ड्रास की परत चढ़ाने पर जंग नहीं लगता। इसका उपयोग पेंट तैयार करने में भी किया जाता है। यह समुद्र के आसपास की इमारतों, पुलों के लिए और भी अधिक उपयोगी है जहां नमी के चलते लोहे में तेजी से जंग पकड़ता है। एक टन जिंक ड्रास में 250 किलोग्राम कचरा होता है जबकि इससे 25 प्रतिशत तक जिंक पाउडर का उत्पादन संभव है। 

समस्या बन चुका है लाखों टन स्टील वेस्ट

उत्पादन प्रक्रिया में उद्योगों से निकलने वाला लाखों टन कचरा औद्योगिक विकास के साइड इफेक्ट के रूप में सामने है। देशभर की स्टील कंपनियों के लिए स्टील वेस्ट का निष्पादन बड़ी समस्या है। स्टील कचरे का ही एक हिस्सा जिंक ड्रास है। स्टील उत्पादन में लाखों टन स्टील वेस्ट निकलता है जिसे कंपनियां आमतौर पर डेढ़ सौ रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से बेच देती हैं। जिंक पाउडर का उत्पादन शुरू होने पर इसकी कीमत पांच सौ रुपये प्रतिकिलो होने का अनुमान है। इससे एक ओर जहां कंपनियों को फायदा होगा तो दूसरी ओर इसका व्यावसायिक उपयोग भी होगा। मूल स्वरूप में जिंक पाउडर चांदी के रंग जैसा चमकने वाला पदार्थ होता है। हावड़ा ब्रिज सहित तमाम पुलों आदि में इसका इस्तेमाल किया गया है। इसकी खासियत यह भी है कि इसमें जंग नहीं लगता। इस वजह से समुद्री क्षेत्र के आसपास के निर्माण में इसका अधिक उपयोग किया जाता है।

 भारत में नहीं होता जिंक पाउडर का उत्पादन

अबतक भारत में जिंक पाउडर का उत्पादन नहीं होता। यह चीन, अमेरिका, मध्य-पूर्व के देशों से आयात किया जाता है। उन देशों में यह प्राकृतिक स्वरूप से उपलब्ध है। अब इसका उत्पादन भारत में होगा और आयात पर निर्भरता नहीं रहेगी। शुद्धता के पैमाने पर इसकी गुणवत्ता उत्तम आंकी गई है और हाई वैल्यू प्रोडक्ट संभव साबित हुआ है। भारत में यह सस्ते में सुलभ होगा और पेंट उद्योगों को कम कीमत पर उपलब्ध होगा।

कानपुर से होगी उत्पादन की शुरुआत

जिंक पाउडर के व्यावसायिक उत्पादन की शुरुआत उत्तर प्रदेश के कानपुर से होगी।  कानपुर मेटल प्रोसेस प्राइवेट लिमिटेड ने एनएमएल के साथ करार किया है। एनएमएल की ओर से तकनीक भी ट्रांसफर की जा चुकी है और उत्पादन इकाई का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। अगले वर्ष तक उत्पादन शुरू होने की संभावना है। एक तथ्य यह भी है कि जमशेदपुर सहित झारखंड में स्टील कंपनियों की भरमार है। इस वजह से स्टील वेस्ट के रूप में कच्चा माल यहां बहुतायत में है। इसके बावजूद यहां के किसी उद्यमी ने अबतक इसमें रुचि नहीं दिखाई बल्कि उत्तर प्रदेश की कंपनी ने पहल की है।

पेंट व ड्राइसेल में होता है उपयोग, मेडिसिन के लिए चल रहा काम

 जिंक पाउडर का उपयोग पेंट के उत्पादन में किया जाता है। साथ ही ड्राई सेल में भी इसका उपयोग किया जाता है। अब कोशिश इस बात की की जा रही है कि मेडिसिन में उपयोग लायक जिंक पाउडर के उत्पादन की तकनीक विकसित की जाए। इसके लिए काम भी चल रहा है।  

ये कहते वैज्ञानिक

जिंक ड्रास से जिंक पाउडर के उत्पादन की तकनीक पर्यावरण अनुकूल भी है। स्टील कंपनियों को कचरे की समस्या से निजात भी मिलेगी। ऐसी तकनीक दुनिया में और कहीं नहीं है। अब हमारा ध्यान उस क्वालिटी का जिंक पाउडर उत्पादन की तकनीक पर है जिसका उपयोग दवाओं में किया जा सके।

- डॉ. संजय प्रसाद, प्रिंसिपल साइंटिस्ट एनएमएल।


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