Maha shivratri 2021 : एक साथ करें द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन, 15 मार्च तक कर सकते दर्शन
Dwadash Jyotirlinga. प्रजापिता बह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय ने महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य पर अपने कदमा स्थित सेंटर में ज्योतिर्लिंग दर्शन सह आध्यात्मिक मेले का आयोजन किया है। यहां एक स्थान पर देश भर के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन हो रहे हैं। 15 मार्च तक दर्शन कर सकते हैं।
जमशेदपुर, जासं। Maha Shivratri 2021 प्रजापिता बह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय ने महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य पर अपने कदमा स्थित सेंटर में ज्योतिर्लिंग दर्शन सह आध्यात्मिक मेले का आयोजन किया है। यहां एक स्थान पर देश भर के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन हो रहे हैं। इसके अलावे 12 शॉप एरिया, कदमा बाजार स्थित सेंटर में इसके लिए भव्य पडाल बनाया गया है जहां कोई भी शहरवासी मंगलवार से 15 मार्च तक सुबह साढ़े सात से रात नौ बजे तक भगवान भोलेनाथ के विभिन्न रूपों का दर्शन कर सकते हैं।
ये हैं भगवान शिव के विभिन्न ज्योतिर्लिंग
सोमनाथ
यह मंदिर देश के पश्चिमी छोर गुजरात के सौराष्ठ प्रांत के कठियावाड क्षेत्र में अवस्थित है। यह देश का सबसे पुराना और पहला ज्योतिर्लिंग माना गया है। ऋगवेद के अनुसार इस मंदिर की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। इसे सूर्यमंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को कई बार तोड़ा गया फिर पुर्नस्थापित किया है। लोककथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने यदूवंश का संहार करने के बाद यहीं अपनी नर लीला समाप्त की थी। एक जरा नामक शिकारी ने अपने वाण से उनके चरण को भेद ड़ाला था।
श्री मल्लिकार्जुन
देश के पश्चिम भाग यानि आंध्र प्रदेश के शैलम पर्वत पर कृष्णा नदी के किनारे यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यहां भगवान शिव को मल्लिकार्जुन नाम से पूजा जाता है। इसे दक्षिण कैलाश भी कहते हैं। इस मंदिर का गर्भस्थान बहुत ही छोटा है इसलिए यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है। स्कंद पुराण में भी इस मंदिर का उल्लेख है। महाभारत के अनुसार श्री शैलम पर्वत पर भगवान शिव के इस ज्योर्तिलिंग के पूजन से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन मात्र से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं और अनंत सुख की प्राप्ति होती है।
महाकालेश्वर
देश के 12 ज्योतिर्लिंग में यह भी एक ज्योतिर्लिंग है जो मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। प्राचीन साहित में इस क्षेत्र को अंवतिकापुर के नाम से जाना जाता था। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर के दर्शन को अत्यतं पुण्यदायी माना गया है। इलतुत्मिश शासक द्वारा इस मंदिर के विध्वंस के बाद जब 17वी शताब्दी में मराठा शासकों ने जब मालवा में अपना आधिपत्य स्थापित किया तब इस मंदिर को पुन: स्थापित कर यहां भगवान शिव के ज्योर्तिलिंग को प्राण प्रतिष्ठा कराया गया था। बाद में राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार किया।
ओंकारेश्वर
यह मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यहां भगवान शिव के ओंकारेश्वर के साथ ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। दोनों शिवलिंग की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग के रूप में की गई है। यह नर्मदा नदी के बीच में मंधाता या शिवपुरी द्वीप पर स्थित है। यह द्वीप हिंदुओं के पवित्र चिंह ऊ आकार में बना हुआ है। इसलिए इस ज्योर्तिलिंग को ओंकारेश्वर भी कहा जाता है।
केदारनाथ
केदारनाथ ज्योर्तिलिंग भारत के उत्तराखंड के रुद्र प्रयाग में स्थित है। देश के चार धामों में केदारनाथ भी एक धाम है जो हिमालय की गोद पर अवस्थित है। प्रतिकूल जलवायु के कारण इस मंदिर के कपाट अप्रैल से नवंबर माह के बीच ही खुलते हैं। इसे केदारेश्वर भी कहा जाता है। जो केदार नामक शिखर पर विराजमान है। इस शिखर के पूर्व दिशा में अलकनंदा नदी निकलती है। पत्थरों से कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे पांडव वंश के जनमेजय ने इसका निर्माण कराया था। इस स्वयंभू ज्योर्तिलिंग का जीर्णोद्वार शंक्राचार्य ने कराया था।
भीमाशंकर
यह ज्योतिर्लिंग पश्चिम घाट के सह्माद्रि पर्वत पर स्थित है जो पुणे से 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से भीमा नदी भी निकलती है जो पश्चिम दिशा में बहती हुई रायपुर में कृष्णा नदी में जाकर मिलती है। यहां का ज्योर्तिलिंग काफी मोटा है इसलिए इसे मोटेश्वर ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। यहां का मंदिर 3250 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पुराणों में ऐसी मान्यता है कि जो भक्त प्रतिदिन इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन के बाद 12 ज्योर्तिलिंगों का उच्चारण करता है उसके सात जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं।
विश्वनाथ
काशी में विराजमान विश्वनाथ को सप्तम ज्योर्तिलिंग कहा गया है। काशी नगरी भगवान के त्रिशुल पर विराजती है जो उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद पर स्थित है। इसे आनंदवन, आंनदकानन और अविमुक्त क्षेत्र सहित काशी नाथ से भी जाना जाता है। पुराणों में ऐसी मान्यता है कि जो भक्त यहां से बहने वाली गंगा नदी में स्नान कर भगवान के इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन करता है उसे समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह देश के प्राचीन मंदिरों में से एक है इसे भगवान शिव व माता पार्वती का आदि स्थान भी माना जाता है।
त्रयंबकेश्वर
यह ज्योर्तिलिंग महाराष्ट्र के नासिक में स्थित है। यहां पर बह्मगिरी पर्वत से गोदावरी नदी का उदगम होता है। गौतम ऋषि व गोदावरी की प्रार्थना पर भगवान शिव यहां वास करने के कारण इसे त्रयंबकेश्वर नाम से जाना जाता है। देश के अन्य ज्योर्तिलिंग में केवल शिव विराजते हैं लेकिन त्रयंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग में बह्मा, विष्णु व भगवान शिव तीनों विराजते हैं। पुराणों के अनुसार इसे तपोभूमि भी कहा जाता है। गौतम ऋषि ने अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां भगवान शिव की कठिन तपस्या कर गंगा को अवतरित करने की कामना भगवान शिव से की। जिसके बाद यहां से गोदावरी नदी का उदगम हुआ।
वैद्यनाथ
यह ज्योर्तिलिंग झारखंड के संथाल परगना के देवघर में स्थित है। इस स्थान को देवताओं का वास माना जाता है इसलिए इसे देवघर कहा जाता है। यहां सिद्धिपीठ भी है जहां ज्योर्तिलिंग के दर्शन से भक्तों की सभी मनाेकामना की पूर्ति होती है इसलिए इसे कामना लिंग भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार राक्षस राज रावण ने घोर तपस्या कर जब भगवान शिव के रूप में उनके ज्योर्तिलिंग को अपने साथ लंका ले जा रहे थे तब भगवान गणेश ने लीला रूपी वैद्यनाथ को दे दिया और देर होने पर उन्होंने उस शिवलिंग को जमीन पर रख दिया था।
नागेश्वर
यह ज्योर्तिलिंग गुजरात के बड़ौदा में स्थित है। इसे नागों का ईश्वर अर्थात नागेश्वर कहा जाता है। यह भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। यह मंदिर द्वारका से 17 किलोमीटर दूर स्थित है। शास्त्रों में इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन की बड़ी महिमा बताई गई है। जो इसका दर्शन करते हैं उनके पापों का नाश होता है।
रामेश्वरम
हिंदुओं के चार तीर्थ स्थलों में यह भी एक स्थल है। पुराणों अनुसार भगवान राम ने इस रामनाथपुरम में लंका विजय से पहले यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। इसे सेतुबांध तीर्थ कहा जाता है। जो मन्नार की खाड़ी में स्थित है। यह स्थान सुंदर द्वीप के समान दिखाई पड़ता है।
घृश्णेश्वर : महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट दौलताबाद से 11 किलोमीटर की दूरी वेरुलठ गांव में यह मंदिर स्थित है। इसे देश का 11वां ज्योर्तिलिंग कहा जाता है। इस स्थान को शिवालय भी कहा जाता है। घृश्णेश्वर को घुमश्रेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार घृश्मा के तप के कारण भगवान शिव इस स्थान पर निवास करते हैं और उनका यह ज्याेर्तिलिंग घृश्मेश्वर के नाम से जाना जाता है।