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नमो देव्यै महा देव्यै : संघर्ष से तोड़ी सीमा, दूसराें को भी बना रही सबला, आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा से समाज को स्वस्थ बनाने का ध्येय

Namo Devyai - Maha Devya सीमा पांडेय आज जैसी हैं पहले नहीं थीं। जमशेदपुर में ही जन्मीं और पली-बढ़ी होने के बावजूद घर से कभी अकेली बाहर नहीं निकलती थीं। सीमा पांडेय का संघर्षमय जीवन मां कुष्मांडा का प्रतीक तुल्य कहा जा सकता है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 09 Oct 2021 02:21 PM (IST)Updated: Sat, 09 Oct 2021 02:21 PM (IST)
नमो देव्यै महा देव्यै : संघर्ष से तोड़ी सीमा, दूसराें को भी बना रही सबला, आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा से समाज को स्वस्थ बनाने का ध्येय
जमशेदपुर की आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय।

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर : आम भारतीय नारी घर की देहरी में कैद रहकर घर-परिवार की देखभाल करते हुए जिंदगी गुजार देती है। जीवन में कुछ नया करने और आगे बढ़ने के बारे में बहुत कम नारी पहल कर पाती है। इनमें से कुछ नारी ऐसी भी होती हैं, जो संघर्ष करके देहरी लांघने का साहस जुटाती हैं और समाज में मिसाल बनाती हैं। ऐसी ही नारी हैं सीमा पांडेय, जो आज आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में जमशेदपुर ही नहीं, देश भर में पहचान बना चुकी हैं।

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सीमा पांडेय आज जैसी हैं, पहले नहीं थीं। जमशेदपुर में ही जन्मीं और पली-बढ़ी होने के बावजूद घर से कभी अकेली बाहर नहीं निकलती थीं। वह बताती हैं कि हमलोग साकची के गुरुद्वारा बस्ती में रहते थे। पास के ही गुरुनानक हाईस्कूल और ग्रेजुएट कालेज में पढ़ाई की, लेकिन स्कूल या कालेज कभी घर से अकेले नहीं जाती थी। आदित्यपुर में 2001 में शादी हुई, तो वहां भी पर्दे में रही। 2008 में जब पति की सड़क दुर्घटना में मौत हुई, तो एकबारगी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। पांच वर्ष की एक बेटी थी, जबकि गर्भ में संतान पल रहा था। समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा। ऐसे समय में माता-पिता और छोटी बहन (अब दिवंगत) ने सहारा दिया, हिम्मत दी। मायके में ही एक लेडीज कॉर्नर की दुकान खोली। इससे समय भी कटने लगा, कुछ आमदनी भी हो रही थी। इसी बीच 2016 में टाटा स्टील की चारदीवारी ढह गई, तो दुकान भी उसी की भेंट चढ़ गया। करीब 60 हजार रुपये का सामान बर्बाद हो गया। एक बार फिर जिंदगी शून्य पर आ गई।

राजीव दीक्षित के दर्शन से मिला जीवन का लक्ष्य

इस दौरान भारत बचाओ आंदोलन के संस्थापक राजीव दीक्षित के आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा के प्रवचन सुनती थी। उनकी बातें प्रभावित करती थीं, जिससे मैंने भी अपने जीवन का लक्ष्य इसी को बनाया। गाय के गोबर-गोमूत्र, पंचगव्य से समाज को स्वस्थ बनाने का ध्येय है। हालांकि इससे लेडीज कॉर्नर की तरह आमदनी नहीं होती है, लेकिन इसके बहाने यदि आज करीब 70 महिलाओं को मैं रोजगार दे पा रही हूं, इससे संतोष होता है। मेरा संकल्प इसके माध्यम से गोमाता को कसाईखाने जाने से बचाना भी है। जो भी महिलाएं देसी गाय पाल रही हैं, उनका गोबर व गोमूत्र खरीद लेती हूं। इससे अब उन्हें सूखी गाय भी बोझ नहीं लगती है। वही महिलाएं दीपावली पर गोबर से लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति व दीया बना रही हैं, जिससे अच्छी आमदनी होती है। रक्षाबंधन पर गोबर से ही राखी बनाती हैं। भविष्य में गोबर से घरेलू उपयोग व सजावटी सामान बनाने की योजना भी है।

गम्हरिया लैम्पस में दुकान मिली

अब तक मेरी देखरेख में गोबर व गोमूूत्र से बने उत्पाद मानगो, साकची, बिष्टुपुर व आदित्यपुर आदि के दुकानदार तो बेचते ही हैं, इंटरनेट मीडिया के माध्यम से बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि तक लोग खरीद रहे हैं। हाल ही में मुझे सरायकेला-खरसावां जिला स्थित गम्हरिया प्रखंड परिसर स्थित लैम्पस में एक दुकान मिली है। वहां स्वदेशी उत्पाद की बिक्री होगी, जिससे ना केवल बड़ी आबादी स्वदेशी चिकित्सा से स्वस्थ होगी, बल्कि स्थानीय महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा। इस तरह मेरे स्वदेशी अभियान को विस्तार मिल रहा है।

मां कुष्मांडा की प्रतीक हो सकतीं सीमा

मां कुष्मांडा : जगतजननी और नवजीवन का स्वरूप हैं। जीवनदायिनी नारी इस संसार के निरंतर गतिमान रहने के मूल में है। इस स्वरूप से आशय संसार में रचनात्मकता की प्रवृत्ति के प्रचार प्रसार से है। घर से लेकर संसार तक को सुंदर, जीवन से भरा और रहने योग्य बनाने वाली नारी ही मां कुष्मांडा के स्वरूप के दर्शन कराती है। मां दुर्गा के चौथे स्वरूप आराधना मां कुष्मांडा के स्वरूप में की जाती है। सीमा पांडेय का संघर्षमय जीवन मां कुष्मांडा का प्रतीक तुल्य कहा जा सकता है।


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