संध्या ने खुद बनाई स्वावलंबन की राह, अब दूसरों की राह बना रही आसान Jamshedpur News
आर्थिक तंगी से जूझते हुए कभी संध्या के मन में निराशा के भाव भर जाते थे। आज संध्या खुद स्वावलंबी तो है ही दूसरी महिलाओं को भी स्वावलंबन की राह आगे बढ़ा रही है।
मुसाबनी (पूर्वी सिंहभूम), मुरारी प्रसाद सिंह। छोटी-छोटी समस्याओं में भी महिलाएं टूट जाती हैं। जिंदगी फिर बोझिल और पहाड़ सी लगती है। अचानक पूरे परिवार का बोझ भी आ जाता है, लेकिन कई साहसी महिलाएं ऐसी होती हैं जो घर की चौखट लांघ कुछ कर गुजर जाती हैं। कभी निजी स्कूलों में पढ़ाने वाली संध्या गोप आज का मशरूम उत्पादक बन गयी है। मुसाबनी प्रखंड स्थित सुंदरनगर गांव की रहने वाली संध्या ने इसे धंधे के रूप में अपना कर जीविकोपार्जन का आधार बना लिया है।
संध्या कहती हैं कि एक दौर था जब वह प्राइवेट स्कूलों में प्रबंधन के दबाव में कड़ी मेहनत कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने में विफल थी। कभी-कभी तो आर्थिक तंगी से विचलित हो जाती थी। पर अब बात दूसरी है। आज वह न सिर्फ मशरूम उत्पादन कर आत्मनिर्भर बन गयी है बल्कि दूसरे भी उससे प्रेरित होकर मशरूम की खेती करने लगे हैं। संध्या गोप कई स्कूलों एवं स्वयंसेवी संस्थानों में काम करके उब चुकी थी। फिलहाल वह प्रशिक्षण हासिल कर मशरूम की खेती कर रही है। संध्या को ने बताया कि 200 ग्राम मशरूम का बीज लगाकर वह दो-ढाई सौ रुपया कमा लेती है।
आसपास के लोग खरीदते मशरूम
मशरूम उत्पादन में संध्या के पति प्रदीप गोप एवं परिवार के सदस्यों का भी सहयोग कर रहा है। अब चाहत है कि बड़े पैमाने पर 1000 सिलिंडर वाला मशरूम की खेती करे। वर्तमान में संध्या गोप पुआल के डेढ़ सौ सिलेंडर में मशरूम का स्पर्म डाल कर खेती कर रही है । इससे उन्हें महीने में 60 से 70 किलो मशरूम प्राप्त हो रहा है। जिसे वे स्थानीय बाजार में 160 रुपए से 200 रुपए प्रति किलो की कीमत पर बेचकर पूंजी जमा कर रही हैं। आसपास के लोग उनके फार्म हाउस से मशरूम खरीदकर ले जाते हैं ।
दार्जिलिंग से मंगाते स्पर्म
मशरूम का स्पर्म दार्जिलिंग से खरीद कर मंगाया जाता है। जिस कमरे में मशरूम का सिलेंडर लगाया गया है उस कमरे का तापमान एवं साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। अधिक तापमान एवं गंदगी रहने से मशरूम के सड़ने का खतरा बढ़ जाता है। उसने कहा कि इसके लिए पूंजी की कमी है। ऐसे में अगर सरकारी स्तर पर मदद मिल जाए तो बात बन सकती है। संध्या कहती है कि यह सही है कि लोकल मार्केट में मशरूम की डिमांड कम है।
मशरूम उत्पादन कर बन गई स्वावलंबी
संध्या बताती हैं कि वह दो साल से मशरूम उत्पादन कर रही है। सबसे पहले ट्रायल के रूप में उन्होंने धोबनी गांव में छोटे पैमाने पर मशरूम की खेती शुरू की थी। जिसमें उन्हें मुनाफा हुआ तो उनका हौसला और बढ़ा वह आज बड़े पैमाने पर मशरूम उत्पादन करने के अभियान में जुटी है। उत्पादन बढ़िया होने और इसकी बिक्री अच्छी होने पर महीने में लगभग 20 हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है। किसी भी रोजगार में सफल होने के लिए पहले उसकी जानकारी जरूरी है।
पति से मिली प्रेरणा
संध्या गोप के पति प्रदीप गोप विभिन्न संस्थाओं से जुड़कर सैकड़ों लोगों को अब तक हुनरमंद बना चुके हैं। इसी क्रम में वे कुछ वर्ष पूर्व दुमका क्षेत्र में लोगों को मशरूम उत्पादन करने का प्रशिक्षण दे रहे थे। संयोगवस इस प्रशिक्षण में उनकी पत्नी संध्या गोप भी उनके साथ गई थी। वहीं से संध्या गोप के मन में स्वरोजगार कर स्वावलंबी बनाने की इच्छा जगी। तब उन्होंने अपनी इच्छा से अपने पति को अवगत कराया। उनके पति ने संध्या को मशरुम का खेती करने के लिए प्रशिक्षण दिया।
आज परिवार संग खुश हैं संध्या
सरकारी स्तर पर बड़ा पुरस्कार और आर्थिक मदद से वंचित होने के बाद भी संध्या आज अपने परिवार के साथ बेहद खुश हैं। वह अपने बेटे एवं बेटी को अच्छी शिक्षा दे रही है। संध्या के इस काम में उनके पति प्रदीप गोप भी मदद करते हैं। जिससे संध्या का मशरूम उत्पादन का कार्य धीरे-धीरे जोर पकड़ने लगा है।
सालभर कर सकते हैं मशरूम का उत्पादन
मशरूम उत्पादन में पहचान बना चुकी संध्या बताती हैं कि ओस्टर व बटन मशरूम के लिए जाड़े के मौसम में सितंबर से मार्च तक का महीना उपयुक्त है। इसी प्रकार दूधिया मशरूम उत्पादन के लिए गर्मी में अप्रैल से लेकर सितंबर माह का समय अच्छा होता है। इस हिसाब से मशरूम का उत्पादन सालभर किया जा सकता है। बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है। अब तो पार्टी में मशरूम की काफी डिमांड होने लगी है। लोग बड़े चाव से मशरूम खाते हैं।