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एक सोच जिसने बदल दी लोगों की आर्थिक स्थिति, पढ़‍िए सुखद बदलाव की कहानियां

आइए हम रूबरू होते हैं ऐसी कहानियों से जिसमें देश के कई राज्‍यों में जनजातीय बहुल समाज और गांव में सुखद बदलाव की तस्‍वीर है।

By Edited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 08:00 AM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2019 04:27 PM (IST)
एक सोच जिसने बदल दी लोगों की आर्थिक स्थिति, पढ़‍िए सुखद बदलाव की कहानियां
एक सोच जिसने बदल दी लोगों की आर्थिक स्थिति, पढ़‍िए सुखद बदलाव की कहानियां

जमशेदपुर, निर्मल प्रसाद। टाटा स्टील की ओर से आयोजित जनजातीय सम्मेलन संवाद में शामिल होने के लिए देश-विदेश के हजारों जनजातीय कलाकार शहर पहुंचे हैं। विभिन्न राज्यों से आए समुदाय के प्रतिनिधि अपनी कला, संस्कृति को कैसे बचाया जाए के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ हस्तियां, जिनकी सोच ने उनके गांव व समुदाय की दिशा-दशा बदल दी। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश..।

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एनआइ छोटी बचत से समाप्त कर दी साहूकारी प्रथा

मध्य प्रदेश के बेतुल के जनपद अध्यक्ष रामचरण ईडपाती का कहना है कि गांव के लोग आधुनिक खेती नहीं करते। इसलिए गरीब हैं और उन्हें अपनी हर छोटी जरूरत के लिए साहूकारों के सामने हाथ फैलाने पड़ते हैं। इसलिए 18 वर्ष पहले उन्होंने लोगों को हर सप्ताह 10-10 रुपये बचाने की सीख दी। इस पहल को 50 गांवों तक पहुंचाया। लेकिन इसमें मात्र 20 गांव ही सफल हो पाए। आज उनके संगठन के पास 50 लाख रुपये है। इस राशि से किसानों को की मदद बिना ब्याज के की जाती है।

अपने हस्तशिल्प को बनाया रोजगार का माध्यम

महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के राधेलाल धुर्वे बताते हैं कि उनके समुदाय को हस्तशिल्प की ताकत का ज्ञान नहीं था। हमने 20 वर्ष पूर्व शिल्प ग्राम के नाम से एक संगठन तैयार किया। जिन आदिवासियों के पास पहले साइकिल तक नहीं थी आज वे संगठन प्रतिवर्ष लाखों का टर्नओवर कर रहा है। धुर्वे बताते हैं कि हमारा संगठन अब महुआ के फूल, मशरूम से बिस्कुट बना रहे हैं। इसके अलावे आयुर्वेद की मदद से टीवी, अल्सर, कैंसर और आंखों की रोशनी बढ़ाने की दवा बना रहे हैं।

मेरी पहचान-मेरा परिधान की शुरू की पहल

हिमाचल के किन्नौर के रिजिन सम्फेल हयारेपा का कहना है कि आज के बच्चे पाश्चत्य संस्कृति के संपर्क में आने से अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने गांव-गांव में टोली बनाकर मेरी पहचान-मेरा परिधान के रूप में एक पहल शुरू की। गांव में लाहौल फेस्टिवल शुरू किया। इसमें हमारे पारंपरिक व्यंजन, ग्रामीण खेल, पुरातन संस्कृति के बारे में जानकारी दी जाती है। उनकी इस पहल का ही नतीजा है कि आज उनके समाज के युवा अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं। -

ये हैं अपनी पंचायत की सबसे युवा सरपंच

टाटा स्टील द्वारा आयोजित संवाद के छठवें संस्करण में शामिल होने के लिए दो अलग-अलग राज्यों से दो युवा सरपंच आई हैं। इन्होंने अपने नाम और युवा की सोच की मदद से गांव में ऐसे बदलाव लाए, जिसके कारण उन्हें ख्याति मिली, मान-सम्मान मिला और देश-दुनिया में उनकी अलग पहचान बनी।

 एनआइ गाव को बनाया खुले में शौच मुक्त

रितु पेंडराम छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के सारबहरा गांव से हैं। बायो टेक्नोलॉजी में मास्टर ऑफ साइंस (एमएसई) कर चुकी रितु मात्र 22 वर्ष में (वर्ष 2015 में) अपने गांव की पहली महिला युवा सरपंच बनी। 20 वार्ड और 8000 की आबादी वाला सारबहरा अपने ब्लॉक के सभी पंचायतों में आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा है। रितु बताती हैं कि जब लोग शिक्षित हो तो परिस्थितियां अपने आप बदलने लगती है। 350 मतों से जीतने वाली रितु ने जब लोगों को शिक्षित कर लड़कियों को कम उम्र में शादी पर रोक लगाने और इससे होने वाले दुष्प्रभाव की जानकारी गांववालों को दी तो वे भी समझे। छोटे बच्चों को नशामुक्त कर स्कूल से जोड़ा। स्वच्छ भारत अभियान के तहत अपने गांव को खुले में शौच मुक्त बनाया तो छत्तीसगढ़ सरकार ने उनका सम्मान किया। रितु का कहना है कि बदलाव सिर्फ सोचने से नहीं आता। उसके लिए सहीं दिशा में सहीं समय पर सहीं प्रयास करना होगा। रितु एमआइटी पुणे की ओर से वर्ष 2018 में उच्च शिक्षित युवा सरपंच के रूप में भी सम्मानित हो चुकी हैं।

मात्र 12वीं तक पढ़ी युवा सरपंच पर बन चुकी है फिल्म

राजस्थान के सिरोई गांव के गारसिया समुदाय की नवली कुमारी गारसिया की युवा सोच ऐसी कि विदेशी आकर उस पर डाक्यूमेंट्री फिल्म तक बना चुके हैं। साथ ही नवली ने पिछले दिनों सितंबर में नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भारत की ओर से राजस्थान का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। मात्र 21 वर्ष में सरपंच बनी नवली बताती हैं कि सरपंच बनने के बाद उन्होंने गांव में सबसे पहले सर्वे कराया। गांव की जरूरत और उसकी प्राथमिकताओं पर फोकस किया। बच्चों को स्कूल तक पहुंचाया। इसके अलावे विभिन्न पंचायतों के पंच-सरपंचों को मिलाकर एक संगठन बनाया। इसकी मदद से समाज की कुरीतियों जैसे बाल विवाह को रूकवाया, विधवाओं के वैवाहिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं होने की प्रथा को समाप्त कराया। डायन प्रथा का अंत किया। किसी समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय की हत्या के बाद उन्हें गांव खाली करने की परंपरा को बंद कराया और सबसे बड़ी चीज गांव के पानी को तालाब और कैनल बनाकर गांव में ही रोका। उनकी इस पहल से अब सिरोई गांव भी हरियाली की ओर बढ़ रहा है। नवली आस्ट्रेलिया और सिंगापुर में भी अपनी पहल का बखान कर चुकी हैं।  


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