यहां बिकते कायदे- कानून: रात होते कहीं भी जाओ, भोर होते लौट आना
अपराधी गुंजन जायसवाल हर दिन रात होते वार्ड से घर निकल जाता था फिर भोर होते वार्ड में लौट आता था। यह सिलसिला कई दिनों से चल रहा था।
जमशेदपुर,जांस। महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) कॉलेज अस्पताल के बंदी वार्ड से बुधवार को फरारी के बाद संयोग से पकड़ लिया गया अपराधी गुंजन जायसवाल हर दिन रात होते वार्ड से घर निकल जाता था फिर भोर होते वार्ड में लौट आता था। यह सिलसिला कई दिनों से चल रहा था। इसकी एवज में हर दिन वार्ड के सुरक्षा प्रहारी को एक हजार रुपया भुगतान करता था। गुंजन इसका खुलासा पुलिस अधिकारियों के सामने पूछताछ के दौरान किया। उसके इस खुलासे से अधिकारी भी आश्चर्यचकित हैं।
बंदी वार्ड और इमरजेंसी वार्ड से बंदियों की फरारी की ये पहली घटना नहीं है। इससे पहले एक दर्जन से अधिक बंदी भागने में सफल रहे हैं। जो सुविधा बंदी वार्ड में मिलती है वह जेल के मेडिकल वार्ड में संभव नहीं है। वहां प्राथमिक उपचार सिवाय और कोई व्यवस्था नहीं है। घर के लोग भी मिल नहीं सकते किंतु एमजीएम के बंदी वार्ड में 'पैसा फेंको-तमाशा देखो' वाली कहावत चरितार्थ है।
मोबाइल फोन रखने की आजादी
एमजीएम में मोबाइल फोन रख सकते हैं। पूर्व में जब अमलेश सिंह वार्ड में था तो उसके द्वारा तैनात पुलिसकर्मियों को महीने में वेतन दिया जाता था। 2016 के सात दिसंबर को बंदी अनिल टुडू फरार हो गया था, वह पेट दर्द की शिकायत पर बंदी वार्ड में दाखिल हुआ था। पुलिसकर्मी नोट के लालच बंदी के इशारे पर नाचते हैं और सुरक्षा ताक पर रख दी जाती हैं।
होमगार्ड और निजी सुरक्षाकर्मियों के जिम्मे अस्पताल की सुरक्षा
एमजीएम अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था होमगार्ड और निजी सुरक्षाकर्मी के जिम्मे है। वे 24 घंटे तैनात रहते हैं। जवान इमरजेंसी वार्ड और अन्य वार्ड के अलावा मुख्य गेट पर रहते हैं, उनकी चूक का फायदा भी अपराधी उठाते हैं। पुलिसकर्मी निलंबित होते और फिर हो जाते तैनात नीरज सिंह की फरारी के बाद हवलदार महेंद्र शर्मा और सिपाही राजेंद्र राम को निलंबित कर दिया गया था। ऐसा ही अमलेश सिंह और अन्य बंदियों की फरारी के बाद 11 पुलिसकर्मियों भी निलंबित किया गया था। बर्खास्तगी की कार्रवाई की गई थी, लेकिन इसका कोई असर पुलिसकर्मियों पर नहीं हुआ।
निलंबन की अनुशंसा
गुंजन जायसवाल की फरारी की घटना में पुलिसकर्मी निलंबित होंगे। इसकी अनुशंसा की जा चुकी है। पुलिसकर्मी निलंबित होते है और फिर कुछ दिनों बाद ड्यूटी पर तैनात हो जाते हैं। इस कारण बंदियों की फरारी में अहम भूमिका निभाने वाले पुलिसकर्मियों पर विभागीय कार्रवाई का भय नहीं रहता है।
बंदी वार्ड के आस-पास सीसीटीवी कैमरे भी नहीं
बंदी वार्ड के आस-पास सीसीटीवी कैमरे लगाने की पहल गैंगस्टर अखिलेश सिंह के बड़े भाई अमलेश सिंह की फरारी के बाद 2011 में हुई थी, लेकिन यह धरातल पर नहीं उतरा। वरीय पुलिस अधिकारी भी बंदी वार्ड का कभी औचक निरीक्षण नहीं करते, जिसका परिणाम सामने हैं। नियम कानून को ताक पर बंदी वार्ड में वही बंदी वार्ड में रह सकता है जिसकी सहमति मेडिकल बोर्ड की टीम प्रदान करती है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। बिना बोर्ड के ही साधारण बीमारी से ग्रसित बंदी भी वार्ड में सेटिंग से रहते हैं।
बीमारी का बहाना बनाकर वार्ड में रहते बंदी
बीमारी का बहाना बनाकर कैदी बंदी वार्ड में बंदी दाखिल होते हैं और वहां ऐश-मौज करते है। होटल का खाना खाते हैं। मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध हो जाते हैं। बिल्डर रोहित सिंह, अमलेश सिंह, विक्रम शर्मा, हरप्रीत सिंह नीरज सिंह समेत कई बंदी ऐसा करते थे। तत्कालीन एसएसपी अनूप टी मैथ्यू ने सभी बंदियों को घाघीडीह सेंट्रल जेल भिजवा दिया था।