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कच्ची सड़क बता रही रांगाटांड़ की कहानी Jamshedpur News

सात साल पहले गांव में किया गया था जल मीनार का निर्माण लेकिन अब तक इससे नहीं की जा सकी पेयजलापूर्ति पंप भी धंस गया।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Mon, 25 Nov 2019 02:58 PM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2019 02:58 PM (IST)
कच्ची सड़क बता रही रांगाटांड़ की कहानी Jamshedpur News
कच्ची सड़क बता रही रांगाटांड़ की कहानी Jamshedpur News

पटमदा (अवनीश कुमार)। जुगसलाई विधानसभा क्षेत्र के पटमदा प्रखंड मुख्यालय से करीब दो-ढाई किलोमीटर की दूरी पर है रांगाटांड गांव। यहां जाने के लिए पक्की सड़क है जो चार-पांच किलोमीटर जाने के बाद वह खत्म हो जाती है। यहां से हमारा सफर कच्ची सड़क पर शुरू होता है।

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गांव में मिट्टी के मकानों की संख्या काफी है वहीं पांच-सात पक्के के मकान हैं। वहीं 18-20 निर्माणाधीन हैं जो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे हैं। गांव में सन्नाटा पसरा था एक दो बुजुर्ग महिलाएं व छोटे बच्चे ही आते-जाते दिख रहे हैं। कुछ दूर चलने पर अखबार पढ़ते गणोश महतो मिलते हैं। वहीं दो-चार महिलाएं खाट पर बच्चा खेला रही हैं। गणोश महतो से यह पूछने पर कि गांव में इतना सन्नाटा क्यों हैं? उनका जवाब था सभी धान की कटाई में लगे हैं। 

सवाल था- धान की फसल हुई है इस बार? जवाब मिला- हां उतनी बढ़िया नहीं, लेकिन ठीक ही हुई है। गांव की कच्ची सड़क पर बहते पानी की बाबत पूछने पर उसने बताया सड़क कभी बनी ही नहीं। हां अभी पिछले चुनाव (लोकसभा चुनाव) में नेताजी ने मापी कराकर बनवाने का वादा जरूर किया था, लेकिन दूसरा चुनाव आ गया। गांव में बिजली के पोल हैं। जिनमें तार बेतरतीब और काफी नीचे तक झूल रहे हैं। अनियमित बिजली आपूर्ति से ग्रामीणों में नाराजगी है। बताते हैं, जब कभी तेज हवा चलती तो तार आपस में टकराने लगते हैं। कभी उनमें से चिंगारी निकलती है तो तो कभी टूटकर गिर जाते हैं। फिर गांव में आठ-दस दिन बिजली नहीं आती। रांगाटांड़ ऊपरबेड़ा में एक दुकान पर कांति (मुर्गा लड़ाई में इस्तेमाल किया जाने वाला धारदार ब्लेड) तैयार किया जा रहा था। वहां हमें रसराज कर्मकार, भोलानाथ कर्मकार मिले। कांति बनाने में लगे भोलानाथ ने बताया कि मुर्गा पाड़ा का सीजन आने वाला है, इसलिए कांति तैयार की जा रही है।

वैसे इसी से परिवार का आजीविका चलते हैं। कांति खरीदने और कुछ लोग कांति पर धार लगवाने आते हैं। एक कांति की कीमत सौ से सवा सौ रुपये तो धार लगाने के एवज में पांच-सात रुपये मिलते हैं। कल्याणकारी योजनाओं के बारे में रसराज कर्मकार का जवाब था ‘सरकारी जोजना पाएछी तो बोलो, आमराके न तो शौचालय पावान छे न आवास’ (सरकारी योजना जिनको मिली है वो जाने हमें तो न शौचालय मिला है ना ही इंदिरा आवास)। बताया गांव में राशन तो करीब-करीब सबको मिलता है, लेकिन कुछ ही लोगों को आवास और शौचालय का लाभ मिला है। गांव की सुमित्र देवी व खांदू महतो ने बताया रांगाटांड़ में मतदाताओं की संख्या करीब आठ सौ होगी। ग्रामीणों से जब विधानसभा चुनाव के बारे में जानकारी लेने पर जवाब मिला, गांव में पिछले दस वर्षो में कभी विधायक नहीं आये, हां वोट मांगने के लिए नेताओं के कार्यकर्ता जरूर आते हैं। अब चुनाव के दिन नजदीक आ रहा है तो नेताओं के आने का दौर भी शुरू होगा। अभी किसके पक्ष में मतदान करना है यह तय नहीं है।

जल मीनार से आज तक नहीं शुरू हो सकी जलापूर्ति

वहीं कुछ दूर पर बुजुर्ग ग्रामीण पूर्णचंद्र महतो मिलते हैं। पेयजल को लेकर पूछने पर बताते हैं। सात साल पूर्व जलमीनार बनी थी, लेकिन उससे कभी जलापूर्ति नहीं हुई। अब तो उसका पंप भी मशीन सहित जमीन के अंदर धंस गया है। जलमीनार का पंप हाउस गांव के युवकों का ‘क्लब’ बन गया है, दिनभर उसमें ताश खेलते हैं। दो सौ घर वाले रांगाटांड के निचली टोला में मात्र एक चापाकल है। गर्मी में लोगों को पानी के लिए दो-तीन किलोमीटर की दूरी तय कर माचा जाना पड़ता है।

आज तक गांव में किसी को नहीं मिली सरकारी नौकरी

गांव के मध्य विद्यालय के बारे में ग्रामीण द्वारिका प्रसाद बताते हैं। स्कूल में चार शिक्षक हैं। जिसमें दो पारा व दो स्थायी हैं। इनमें एक खिचड़ी बनवाने तो दूसरा रिपोर्ट बनाने में ही अपनी ड्यूटी खत्म कर लेता है, बच्चे क्या पढ़ेंगे। आज तक गांव में सरकारी किसी को नौकरी नहीं मिली है। गांव में स्कूल है इसे सुनकर अच्छा लगता है। वहीं स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कहते हैं माचा में स्वास्थ्य केंद्र बनकर तैयार है, लेकिन जमीनदाताओं को नौकरी नहीं दिए जाने के कारण आज तक शुरू नहीं हो सका। जिसके कारण पटमदा नहीं तो टाटा जाना पड़ता है।


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