Move to Jagran APP

Rishi Panchami : मनुष्य पर अनंत उपकार करनेवाले ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है ऋषि पंचमी

Rishi Panchami ऋषि पंचमी का दिन वेददिन माना जाता है। इस दिन का महत्व यह है कि जिन प्राचीन ऋषियों ने अपने संपूर्ण जीवन का त्याग कर वेदों जैसे अमर वाड्मय निर्माण किया उनके प्रति ऋणी रहकर कृतज्ञता के साथ स्मरण किया जाए।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 11 Sep 2021 12:05 PM (IST)Updated: Sat, 11 Sep 2021 05:51 PM (IST)
Rishi Panchami : मनुष्य पर अनंत उपकार करनेवाले ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है ऋषि पंचमी
ऋषि: कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ सप्तर्षि हैं।

जमशेदपुर, जासं। गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन ऋषि पंचमी मनाई जाती है। ऋषि या मुनि शब्द सुनते ही हमारे हाथ अपने आप जुड़ जाते हैं और हमारा सिर सम्मान व आदर से झुक जाता है। इस भारत खंड में अनेक ऋषियों ने विभिन्न योग विधियों के अनुसार साधना करके भारत को तपोभूमि बनाया है। उन्होंने धर्म और अध्यात्म पर विस्तार से लिखा है और समाज में धर्माचरण और साधना का प्रसार कर समाज को सभ्य बनाया है। आइए हम अपने ऋषियों को कृतज्ञता ज्ञापित करें।

loksabha election banner

सनातन संस्था के शंभू गवारे बताते हैं कि आज का मनुष्य प्राचीन काल के विभिन्न ऋषियों का वंशज है, लेकिन चूंकि मनुष्य यह भूल गया है, इसलिए वह ऋषियों के आध्यात्मिक महत्व को नहीं जानता है। साधना करने से ही ऋषियों के महत्व और शक्ति को समझा जा सकता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को 'ऋषि पंचमी' कहा जाता है, इस वर्ष यह 11 सितंबर को है। इस दिन ऋषियों की पूजा करने का व्रत धर्मशास्त्र में बताया गया है। सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख में आइए जानते हैं ऋषि पंचमी का महत्व, व्रत की विधि और उससे जुड़ी अन्य जानकारी। कोटिश: मनुष्य के समग्र कल्याण के लिए अपना जीवन व्यतीत करने वाले ऋषियों के चरणों में प्रणाम। ऋषि: कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ सप्तर्षि हैं।

मासिक धर्म, अशुद्धता और स्पर्श का प्रभाव कम होता

अपने तपोबल से विश्व में मानव पर अनंत उपकार करने वाले, मानव जीवन को सही दिशा दिखाने वाले ऋषियों को इस दिन याद किया जाता है। इस व्रत और गोकुलाष्टमी के व्रत से भी स्त्रियों पर मासिक धर्म, अशुद्धता और स्पर्श का प्रभाव कम होता है। (क्षौरादि तपस्या या प्रायश्चित कर्म से पुरुषों पर प्रभाव कम होता है और वास्तु पर का प्रभाव उदकशांती से कम होता है।)

इस दिन कंद-मूल का ही आहार लें

इस दिन महिलाओं को प्रातः अघाड़ा पौधे की लकड़ी के दातून से दांतों की सफाई करनी चाहिए। स्नान करने के बाद पूजा के पूर्व मासिक धर्म के समय अनजाने में स्पर्श के कारण जो दोष लगते हैं उसके निराकरण हेतु अरुंधति सहित सप्तऋषियों को प्रसन्न करने के लिए मै यह व्रत कर रही हूं, ऐसा संकल्प करें। लकड़ी के पाट पर चावल के छोटे-छोटे आठ भाग बनाकर रखें और उसपर आठ सुपारी रखें, कश्यपादि सात ऋषि व अरुंधति इनका आवाहन करके षोडशोपचार पूजन करें। इस दिन कंद-मूल का ही आहार लें। बैल द्वारा किए गए श्रम का कुछ भी न खाएं। ऐसा बताया गया है। दूसरे दिन चावल के आठ भाग के रूप में कश्यपादि सात ऋषि और अरुंधति का विसर्जन करना चाहिए। 12 वर्ष या 50 वर्ष की आयु के बाद इस व्रत का उद्यापन कर सकते हैं। इस व्रत को उद्यापन के बाद भी जारी रखा जा सकता है।

ऋषियों को स्मरण करें

ऋषि पंचमी का दिन 'वेददिन' माना जाता है। इस दिन का महत्व यह है कि जिन प्राचीन ऋषियों ने समाज का धारण और पोषण सुव्यवस्थित हो, इसलिए अपने संपूर्ण जीवन का त्याग कर वेदों जैसे अमर वाड्मय निर्माण किया, संशोधनात्मक कार्य किया। उनके प्रति ऋणी रहकर कृतज्ञता के साथ स्मरण करने का यह दिन है।

मासिक धर्म का ऋण चुकाने का दिन

नागों को ऋषि कहा जाता है। एक ओर स्त्री और दूसरी ओर पुरुष द्वारा हल को खींचकर उससे जो अनाज तैयार होता है, वो अनाज ऋषि पंचमी को खाया जाता है। ऋषि पंचमी के दिन जानवरों की मदद से बना अनाज नहीं खाना चाहिए। जब मासिक धर्म बंद हो जाता है तो महिलाएं अपना ऋषि ऋण चुकाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत रखती हैं। व्याह्रुति का अर्थ है जन्म देने की क्षमता। वे सात व्याह्रतियों को पार करने के लिए सात वर्ष तक उपवास करती हैं। फिर व्रत का उद्यापन करती हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.