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राजा को लज्जित कर रहा यह 'इज्जत घर', पढ़ि‍ए स्‍वच्‍छ भारत मिशन की कड़वी हकीकत Jamshedpur News

ये है कड़वी हकीकत। झारखंड के घाटशिला प्रखंड की बुरुडीह पंचायत के रामचंद्रपुर गांव खुले में शौचालय का पेन लगाकर छोड़ दिया गया। ऐसे में लोग जंगल में शौच को जाते हैैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 02 Feb 2020 09:25 AM (IST)Updated: Sun, 02 Feb 2020 04:34 PM (IST)
राजा को लज्जित कर रहा यह 'इज्जत घर', पढ़ि‍ए स्‍वच्‍छ भारत मिशन की कड़वी हकीकत Jamshedpur News
राजा को लज्जित कर रहा यह 'इज्जत घर', पढ़ि‍ए स्‍वच्‍छ भारत मिशन की कड़वी हकीकत Jamshedpur News

जमशेदपुर, अमित तिवारी।  Reality of Clean India Mission in eastsinghbhum jharkhand लुप्त हो रहे सबर जनजाति के लिए बने इज्जत घर (शौचालय) उन्हें बेइज्जत कर रहे हैं। इस समुदाय को 'जंगल के राजा' कहा जाता है जबकि हकीकत रंक से भी बदतर है ।

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झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के जिला मुख्‍यालय जमशेदपुर से करीब 54 किलोमीटर दूर पूरब घाटशिला के बुरुडीह स्थित रामचंद्रपुर गांव एक उदाहरण हो सकता है। यहां सबरों के लिए हर घर के पीछे बने शौचालय स्वच्छ भारत मिशन के खोखलापन को खोल रहा है। एक भी शौचालय काम का नहीं है। सिर्फ पेन बैठाकर छोड़ दिया गया है। न तो दीवार खड़ी की गई है और न ही पानी की सुविधा है। यहां तक की पर्दा भी लगाना जरूरी नहीं समझा गया है। मतलब साफ है खेत में शौच या शौचालय में शौच बराबर है। या फिर इसे यह भी कह सकते है कि खुले में शौच करना आसान है। 

30 से अधिक जगहों पर गड्डे खोदकर उसपर पेन बैठा दिया

करीब 30 से अधिक जगहों पर गड्डे खोदकर उसपर पेन बैठा दिया गया है। गांव की संभारी सबर तीन माह की गर्भवती है। वह कहती है कि सभी लोग शौच के लिए जंगल जाते हैं। इस दौरान कभी-कभार वे लोग जंगली पशुओं की भी चपेट में आ जाते हैं और उनकी जान तक चले जाती है। बुना सबर के साथ जंगल में एसी ही ही घटना घटी है। वे शौच करने के लिए ही गए थे कि उनपर एक सूअर ने हमला कर दिया। अब तक उनके पैर का जख्म ठीक नहीं हुआ और उसमें कीड़े भी लग गए हैं। 

अंधेरा होने का करते इंतजार, बीमारियां भी तेजी से बढ़ रही  

शौच करने के लिए महिलाएं अंधेरा होने का इंतजार करती हैं। इससे जंगली जानवरों के डर के साथ-साथ बीमारियों का भी खतरा बढ़ा रहता है। फिलहाल अधिकांश घरों में खून की कमी, कुपोषण, टीबी, घाव, बुखार, इंफेक्शन सहित अन्य रोगी भरे पड़े हैं। 18 जनवरी को इसी गांव में दो वर्षीय कृष्णा सबर की मौत कुपोषण से हो गई थी। गांव में गंदगी का भी अंबार है। सबरों में जागरूकता की कमी है। उनके विकास व जीवन में बदलाव लाने के लिए सरकार तमाम योजनाएं चला रही है लेकिन उसका लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है। 

गांव के लोगों को इलाज की विशेष जरूरत

इस गांव के करीब 80 फीसद बच्चें कुपोषण व विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हैं। इसलिए उन्हें बेहतर चिकित्सा के साथ-साथ पौष्टिक आहार की भी जरूरत है। गांव में इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है। अगर किसी की तबीयत खराब होती है तो वह घर में ही पड़ा रहता है। गंभीर स्थिति होने पर सहिया के माध्यम से उन्हें घाटशिला स्थित अनुमंडल अस्पताल ले जाया जाता है। चिंता का विषय यह है कि इस गांव की आबादी लगातार घट रही है। जबकि सरकार की प्राथमिकता उनकी आबादी बढ़ाने पर है।


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