गोल-गोल बात की, बन गया गोला; सपना ही रह गया दीदार Jamshedpur News
कौन था जो विभीषण बना और सपना को कुंभकर्ण के पास भेज दिया। खैर शहरवासियों का सपना पिछले साल भी आंखों ही आंखों में कट गया था।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। शहर में पहले एक से बढ़कर हस्तियां आती थीं। धीरे-धीरे इसमें कमी आती गई। अब वर्षों बाद कोई आता है, जिसे देखने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़े। हाल में ऐसा सुयोग बनता दिख रहा था। आयोजक भी दावा कर रहे थे कि अब ना केवल शहरवासियों का सपना पूरा होगा, बल्कि उसके साथ ठुमके भी लगेंगे।
इसमें मजे की बात यह रही कि जहां यह सपना साकार होना था, उसे ही अंधेरे में रखा गया था। जैसे ही उसके कान में बात गई, उखड़ गया। कहने लगा, अरे ऐसा कैसे हो सकता है कि मुझे मालूम ही नहीं हो और मेरे घर में कोई आ जाए। जब उनसे कहा कि आपका सपना भी पूरा हो जाएगा उसके दीदार का, तो कहने लगे, मैं सपने में नहीं हकीकत में जीता हूं। मेरी जानकारी में किसी को बुलाने की तैयारी कैसे हो गई। नहीं आएगी तो नहीं आएगी। ऐसे में बात खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन इसके बाद यह मामला तूल पकड़ रहा है कि सपने की बात किसने लीक की। कौन था जो विभीषण बना और सपना को कुंभकर्ण के पास भेज दिया। खैर शहरवासियों का सपना पिछले साल भी आंखों ही आंखों में कट गया था। तब भी मेजबानों ने दिखावे के लिए ही सही खूब बवाल काटा था।
होते-होते रह गया शेरनी का आगमन
तरह का वाकया हफ्ते भर बाद फिर घट गया, जब दहाडऩे वाली शेरनी का आगमन होते-होते रह गया। बताया गया कि शेरनी की तबीयत ढीली थी, इसलिए नहीं आ पा रही हैं। हकीकत में शेरनी बिल्कुल ठीक थी। वह अपने मांद से ही ट्विटर-ट्विटर भी खेल रही थी। यहां भी बुलाने वाले की नीयत संदेह के घेरे में है, क्योंकि घर के मालिक को एक दिन पहले तक नहीं बताया गया था कि कोई शेरनी यहां आने वाली है। ऐसा इस शहर में पहले भी कई बार हो चुका है। कई नेता टाइप के लोग बड़े-बड़े नाम का इस्तेमाल करके आयोजन करते हैं, दान-दक्षिणा का इंतजाम करते हैं, बाद में बता देते हैं कि ऐसा हो गया, वरना उन्हें तो आना ही था। सुबूत के तौर पर कैंसल टिकट भी जेब में रखते हैं।
गोल-गोल बात की, बन गया गोला
कई बार ऐसा होता है कि लोग गोपनीय बातें गोल-गोल बैठकर कर लेते हैं। कान में बोल भी देते हैं, किसी से कहना मत। ऐसा कहते समय पता नहीं चलता कि बताने वाले की नीयत सही नहीं है या सुनने वाले का चरित्र। एक कान से दूसरे कान तक बात फैल जाती है, तब वे अपना माथा पटकने लगते हैं कि मैंने क्या कह दिया। वे यह इतना भी नहीं सोच पाए कि जिससे किसी को बताने से मना किया था, वह ढिंढोरा पीट देगा। गांव में कुछ ऐसी औरतें होती थीं, जिससे लोग सबकुछ बताकर कह देते थे कि किसी से कहना मत। बस इसके बाद उनका काम समाप्त हो जाता था और क्षण भर में पूरे गांव को वह गोपनीय बात मालूम हो जाती थी। ऐसा ही पिछले दिनों अपने शहर में हुआ। गोल-गोल बैठकर गोल-गोल बातें की, वह बात गोलाकार आकार में बढ़ते-बढ़ते फैल गई। उसके बाद माथा पीटने लगे कि अरे, मैंने तो कहा था कि यह आपस की बात है। ज्ञानवद्र्धन की बात है, दूसरों का ज्ञान बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन शायद सुनने वालों को भी उनपर यकीन नहीं था कि जब किसी को बताना नहीं था, स्पीकर और माइक क्यों लगाया था।