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Jharkhand Assembly Election 2019 : उम्मीदवार दिखा रहे पानी का संकट, बेटिकट बना रहे सरकार Jamshedpur News

Jharkhand Assembly Election 2019. चाचा पर आफत आई है तो भतीजा मजा ले रहा है। कहता है क्या किया पांच साल। खाली लड़ते-झगड़ते रहे। ना किसी के घर राशन पहुंचायी ना सब्जी।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 13 Nov 2019 04:31 PM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2019 06:00 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019 : उम्मीदवार दिखा रहे पानी का संकट, बेटिकट बना रहे सरकार Jamshedpur News

जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। धरती गर्म हो रही है। पेड़-पौधे सूख रहे हैं। खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में ही रह गया। किसानों के हलक तक नहीं पहुंचा। सब्जियां खेत में ही मर गईं। बाजार में आग लगी हुई है। पानी के संकट से भोजन की थाली भी सूनी पड़ गई है। यह संकट अब राजनीतिक दलों में भी दिख रहा है। वैसे तो यहां एक दल में पहले से पानी का संकट दिखता था, अब इसमें एक दल और शामिल हो गया।

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इस दल की हाल ही में बैठक थी। दल के काफी लोग पहले से जुटे थे। जब आमंत्रण पर कैमरा वाले पहुंचे, तो बैठने के लिए कोई कुर्सी खाली नहीं मिली। प्यास बुझाने के लिए भी कोई इंतजाम नहीं था। पूरी सभा में एक अदद सिंगल यूज प्लास्टिक की बोतल थी। दुर्भाग्यवश तीन-चार लोगों की नजर उस बोतल पर एक साथ पड़ गई। बस क्या था एक साथ सात-आठ हाथ उस बोतल की ओर ऐसे लपके कि बेचारा बोतल चरमराकर रह गया। सचमुच दोबारा पानी रखने के लायक नहीं बचा। पता चला कि इस दल में पानी का संकट पहले भी था। नेताजी जब अपने घर पर खबरनवीसों को बुलाते थे, तो वहां भी एक ही बोतल पानी रहता था। आज ऐसी जगह पर बैठक की, जहां पहले कभी चोर-डकैतों का आसपास डेरा रहता था। कुछ ने कहा कि जानबूझकर ऐसा किया गया, क्योंकि पता है कि इनके लोग सिर्फ नाम के लिए खड़े हो रहे हैं, चुनाव खत्म होने के बाद भी खड़े रहेंगे। जब इन्हें वहां कुर्सी नहीं मिलेगी, तो ये दूसरों को क्यों कुर्सी दें। इन्हें कोई पानी नहीं दे रहा है, तो ये क्यों पानी दें। जैसे को तैसा। किसी ने कह दिया आपके अंदर पानी बचा है क्या। नेताजी बाथरूम की ओर भागे।

भतीजा ले रहा मजा

ये दुनिया बड़ी जालिम है। बाप-बेटे को लड़ा देती है, चाचा-भतीजा की क्या बिसात। जमाना ही ऐसा है, बाप को आफत आती है, तो बेटा खुश होता है। इधर चाचा पर आफत आई है तो भतीजा मजा ले रहा है। कहता है क्या किया पांच साल। खाली लड़ते-झगड़ते रहे। ना किसी के घर राशन पहुंचायी, ना सब्जी। कितनों के घर चूल्हा नहीं जला, कभी देखे। कितने बिना इलाज के मर गए और आप खाली अस्पताल के चक्कर लगाते रहे। डाक्टर को डांट-डांटकर पतला कर दिया। एक वह था, जो दोबारा अस्पताल नहीं गया। क्योंकि वह जान गया था कि इसे ब्रह्मा भी नहीं सुधार सकते, मैं क्या चीज हूं। वह अपनी औकात समझता था, इसलिए दोबारा झांकने भी नहीं गया। इन्हें भी अपनी औकात समझ लेनी चाहिए थी। ना खुद को कुछ मिला, ना दूसरों को कुछ दिला सके। दरअसल इन्हें यह पता नहीं था कि इसमें वास्तु दोष है। जो इसे सुधारने जाता है, खुद काल के गाल में समा जाता है। बस भतीजा को एयर टिकट मिल गया है, सो हवाई किले बांध-बांधकर मजे ले रहा है।

बेटिकट बना रहे सरकार

चुनाव आ गया है। कुछ को टिकट मिल गया है, तो कुछ वेटिंग लिस्ट में हैं। कुछ की तो ट्रेन छूट रही है, लेकिन टिकट नहीं है। कुछ तो ऐसे भी हैं, जिन्हें काउंटर पर टिकट दिख रहा है, लेकिन हाथ वहां तक पहुंच नहीं रहा है। कुछ तो ऐसे हैं जो निर्विकार होकर टिकट पाने वालों और बांटने वालों को देख रहे हैं। इसके बावजूद यही आप उनके पास थोड़ी देर बैठ जाएं, तो आपको भी टिकट दिला देंगे। एक ने टोक दिया, आप तो खुद बेटिकट यात्रा करना चाहते हैं और दूसरों को टिकट लेने की नसीहत दे रहे हैं। बेचारे को दिल्ली ले गए, उसी का खाया-पीया और बैरंग भेज दिया। बेचारा टिकट की आस मन में ही लिए लौट गया। अब तो नामांकन का समय भी निकला जा रहा है और टिकट का पता नहीं। जिस-जिस दल से ऑफर मिलने की बात कहते थे, उन्होंने भी टिकट बांट दी। अब सोच रहे हैं कि उन्हें क्या मुंह दिखाऊंगा जिनसे वादा किया था कि कुछ भी हो जाए, चुनाव जरूर लड़ूंगा। फिलहाल अड्डे पर उन्हीं की चर्चा हो रही है। एक बार उनकी भारी-भरकम काया ढूंढने सबकी निगाहें घूम जाती हैं। हर चाय के दौर में एक बार उनके नाम पर भुगतान कोई न कोई कर देता है। बस इसी भरोसे में कि नेताजी सुबह-शाम आएंगे तो चाय पिलाएंगे ही, तब तक उनके नाम पर पी लिया जाए। 


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